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हिन्दुओं की तरह दीपावली मनाते हैं अवध नवाबों के वंशज

अवध के नवाबों की मौजूदा पीढ़ी के लोगों की नजर में दीपावली का पर्व महज हिन्दुओं का त्योहार नहीं, बल्कि सभी धर्मों के मानने वालों के बीच सदियों पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब तथा संस्कृति को और मजबूत करने का...

हिन्दुओं की तरह दीपावली मनाते हैं अवध नवाबों के वंशज
एजेंसीWed, 03 Nov 2010 02:55 PM
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अवध के नवाबों की मौजूदा पीढ़ी के लोगों की नजर में दीपावली का पर्व महज हिन्दुओं का त्योहार नहीं, बल्कि सभी धर्मों के मानने वालों के बीच सदियों पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब तथा संस्कृति को और मजबूत करने का मौका है।

अपने पुरखों के गौरवशाली अतीत की यादें संजोए नवाबों के वंश की नई पीढ़ी के लोग दीपावली का पर्व अवध में रहने वाले किसी अन्य हिन्दू की ही तरह मनाते हैं। वे प्रकाश पर्व की परम्परा के अनुरूप मिट़टी के दीये जलाते हैं, खील और बताशे खरीदते हैं और त्योहार के उल्लास में डूब जाते हैं।

नवाबों के खानदान से सम्बन्ध रखने वाले नवाबजादा सैय्यद मासूम रजा ने कहा हम नवाब वाजिद अली शाह के वंशज हैं जो मुहर्रम के महीने में होली का त्यौहार पड़ने पर भी रंग पर्व के उल्लास में शामिल होते थे। हम सभी त्योहारों को भाईचारे और आपसी मुहब्बत के साथ मना कर नवाब वाजिद अली की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।

उन्होंने कहा किसी अन्य हिन्दू परिवार की ही तरह नवाबों के वंशज भी कई दिन पहले से ही त्यौहार की तैयारी शुरू कर देते हैं। वे इसके लिये घर की रंगाई-पुताई और साफ-सफाई कराते हैं। साथ ही घर की साज-सज्जा के लिये सामान भी खरीदते हैं।

महमूदाबाद के राजकुमार अमीर नकी खां ने एक दिलचस्प खुलासा करते हुए बताया कि 1920 के दशक में दीपावली के स्वागत में पहला दीया महमूदाबाद रियासत के सीतापुर स्थित उनके घर में ही जलाया जाता था। उसके बाद ही इलाके के अन्य हिन्दू परिवार अपने यहां दीपावली का दीपक जलाते थे।

खां ने बताया कि हम आज भी दीवाली पर न सिर्फ बिजली से चलने वाली रोशनी जलाते हैं, बल्कि सदियों पुरानी परम्परा का निर्वहन करते हुए मिट्टी के दीये भी जलाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके परिवार के लोग आज भी धरतेरस के मौके पर परम्परानुसार बर्तन खरीदते हैं।

अवध के नवाबों के एक अन्य वंशज नवाब अस्करी हसन ने कहा कि हिन्दू परिवारों में होने वाले लक्ष्मी-गणेश पूजन को छोड़ दें तो नवाबों के परिवारों तथा हिन्दू लोगों के दीपावली मनाने के तरीके में ज्यादा अंतर नहीं है। उन्होंने कहा दीपावली की रात बाहर से देखने पर आप किसी हिन्दू परिवार के मकान तथा नवाबों के कोठियों जैसे सल्तनत मंजिल, शीश महल तथा इकबाल मंजिल में अंतर नहीं लगेगा, क्योंकि ये इमारतें भी रोशनी से जगमगाती हैं।

आमतौर पर युवा पीढ़ी के लिये दीपावली के त्योहार का सबसे बड़ा आकर्षण पटाखे जलाना होता है, वहीं बड़े-बुजुर्गों के लिये यह पर्व अपने गिले-शिकवे भुलाकर त्योहार के उल्लास में खो जाने का मौका होता है। अस्करी ने कहा कि अवध का इतिहास हिन्दू-मुस्लिम एकता और परस्पर सम्मान प्रदर्शित करने की कोशिशों से भरा पड़ा है। उन्होंने कहा कि नवाबों ने ही लखनऊ के अलीगंज में प्रसिद्ध हनुमान मंदिर का निर्माण कराया था वहीं उस वक्त की अहम हिन्दू हस्ती झाउलाल ने ठाकुरगंज इलाके में इमामबाड़ा बनवाया था।

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