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मदरसों में पढ़ाए जा रहे हैं राम और कृष्ण

धर्म के प्रति बढ़ रही कट्टरता के इस दौर में उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जिले के कुछ मदरसों ने बच्चों को धार्मिक ग्रन्थ कुरान के साथ कृष्ण और राम सरीखे दूसरे धर्म के पात्रों के बारे में पढ़ाकर...

 मदरसों में पढ़ाए जा रहे हैं राम और कृष्ण
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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धर्म के प्रति बढ़ रही कट्टरता के इस दौर में उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जिले के कुछ मदरसों ने बच्चों को धार्मिक ग्रन्थ कुरान के साथ कृष्ण और राम सरीखे दूसरे धर्म के पात्रों के बारे में पढ़ाकर साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने का अनूठा बीड़ा उठा रखा है। इन मदरसों में अरबी उर्दू के अलावा हिन्दी, अंग्रेजी और कम्प्यूटर का ज्ञान भी दिया जाता है। मदरसों के प्रति लोगों का कौतूहल तब बढ़ा जब पता चला कि इनमें पवित्र कुरान की आयतें तो पढ़ाई ही जा रही हैं इसके साथ ही राम कृष्ण अभिमन्यु सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र और बालक ध्रुव के बारे में भी बताया जाता है। साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक बन गए इन मदरसों को हालांकि इसमें कोई खास कठिनाई नहीं हो रही, लेकिन यदाकदा धार्मिक संगठनों से जुड़े कुछ लोगों का मौखिक विरोध इन्हें झेलना पड़ता है। अम्बेडकरनगर जिले के जहांगीरगंज इलाके में स्थापित मदरसा नियमातुल उलूम के मौलवी मेहराब अली हाशमी ने बताया कि उनके मदरसे में पेगम्बर मोहम्मद साहब के साथ महाभारत के अभिमन्यु, राजा हरिश्चन्द्र आदि शिक्षाप्रद पात्रों के बारे में भी बच्चों को पढ़ाया जाता है। हाशमी ने कहा कि उनके मदरसे में शिक्षा का मूल आधार भाईचारा को बढ़ावा देना और बच्चों को अच्छा इन्सान बनाना है। उन्होंने बताया कि सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा जैसे देशभक्ित के गीत भी उनके मदरसे में गवाए जाते हैं और स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के अवसर पर विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि कक्षा एक से पांच तक के उनके मदरसे को गांव के लोग ही चन्दे से चला रहे हैं। उनका कहना था कि चन्दा इतना आ जाता है कि खर्च आसानी से चल जाता है। इतना सब होने के बावजूद दूसरे धर्म के बच्चों का मदरसे में पढ़ने के लिए नहीं आना उन्हें टीसता है। वह कहते हैं कि उन्हें अच्छा लगेगा यदि गैरमुस्लिम बच्चे भी उनके मदरसे में पढ़ने आए। इस मदरसे से थोड़ी ही दूर स्थित जामिया अरबिया जहारुल उलूम मदरसे में स्नातक तक की शिक्षा दी जाती है। अरबिया जहारुल उलूम मदरसे के मौलाना अब्दुल अजीज फक्र से कहते हैं कि उनकी संस्था पूरी तरह दीनी है, लेकिन इसमें कृष्ण की बाललीला, बालक ध्रुव और राम की मर्यादा भी पढ़ाई जाती है। उन्होंने बताया कि उनके मदरसे में करीब एक हजार छात्र हैं जिसमें लगभग दो सौ छात्रावास में रहते हैं। उन्होंने कहा कि तालीम ऐसी दी जानी चाहिए जिससे बच्चा आगे चलकर अच्छा इन्सान बने। उन्होंने कहा कि संस्था से जुड़े लोगों की पूरी कोशिश है कि उनके मदरसे से पढ़कर निकलने वाले बच्चे सिर्फ स्वयं ही नहीं समाज को भी सही रास्ता दिखाने में सक्षम हों। उन्होंने कहा कि संस्था से जुड़े लोगों की पूरी कोशिश है कि उनके मदरसे से पढ़कर निकलने वाले बच्चे सिर्फ स्वयं ही नहीं समाज को भी सही रास्ता दिखाने में सक्षम हों। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि उनके संस्थान के इस रीति रिवाज का कोई खास विरोध तो नहीं हुआ है, लेकिन कभी कभी कुछ कट्टरपंथी लोग मौखिक रूप से इसका विरोध जरूर करते हैं। उनका कहना था कि हालांकि विरोध करने वाले भी अब मानने लगे हैं कि संस्था का रुख और सिद्धान्त बच्चों को सकारात्मक सीख दे रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि संस्था के पढ़े बच्चे सामाजिक सौहार्द को और मजबूत करें तथा मदरसों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा सकें।

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