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एएन तिवारी बने नए मुख्य सूचना आयुक्त

सूचना आयुक्त एएन तिवारी को नया मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त बनाया गया है जो पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद आज सेवानिवृत्त हो रहे निवर्तमान सीआईसी वजाहत हबीबुल्ला का स्थान लेंगे। आधिकारिक...

एएन तिवारी बने नए मुख्य सूचना आयुक्त
एजेंसीWed, 29 Sep 2010 10:41 PM
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सूचना आयुक्त एएन तिवारी को नया मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त बनाया गया है जो पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद आज सेवानिवृत्त हो रहे निवर्तमान सीआईसी वजाहत हबीबुल्ला का स्थान लेंगे।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने आज शाम तिवारी के नाम को मंजूरी प्रदान की। तिवारी 1969 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में सचिव रह चुके हैं। नई नियुक्ति के बारे में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने की संभावना है।

तिवारी केन्द्रीय सूचना आयोग में 26 दिसंबर 2005 में शामिल हुए थे और उनका पांच साल का कार्यकाल इस वर्ष दिसंबर में समाप्त हो रहा है। इसका अर्थ है कि वह मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर मात्र तीन माह रहेंगे। सूचना का अधिकार कानून के तहत जब सूचना आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है तो उसका कार्यकाल सूचना आयुक्त एवं मुख्य सूचना आयुक्त, दोनों की अवधि मिलाकर कुल पांच साल से अधिक नहीं होना चाहिए।

सूचना आयुक्त के रूप में दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में तिवारी ने राजनीतिक दलों द्वारा दाखिल किए जाने वाले आयकर रिटर्न को सार्वजनिक दायरे में लाने का आदेश दिया था। नए मुख्य सूचना आयुक्त का चुनाव प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और केंदीय मंत्रिमंडल के एक सदस्य की एक समिति करती है।

आरटीआई अधिनियम के तहत मुख्य सूचना आयुक्त का चयन केवल समिति से हो सकता है।
 गौरतलब है कि इस बीच एक सूचना आयुक्त को छोड़ कर सभी आयुक्तों ने एक प्रस्ताव पारित किया था कि नया मुख्य सूचना आयुक्त उनके बीच से होना चाहिए।

सात सूचना आयुक्तों की ओर से पारित प्रस्ताव में कहा गया है, आयुक्त यह दोहराना और जोर डालना चाहते हैं कि हबीबुल्ला का उत्तराधिकारी आयोग के बीच से खोजा जाना चाहिए। प्रस्ताव को सूचना आयुक्त शैलेश गांधी का समर्थन नहीं मिला। उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराया। हबीबुल्ला अनुपस्थित रहे।

प्रस्ताव में कहा गया कि अगर मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति आयोग के बाहर से की गई तो यह ना सिर्फ उच्चतम न्यायालय, सीईसी और यूपीएससी जैसी कालेजियल संस्थाओं में स्थापित स्वस्थ परंपरा के विपरीत होगी, बल्कि उन लोगों के लिए अत्यंत मनोबल गिराने वाला होगी जो मिसाली लगन के साथ आयोग की सेवा कर रहे हैं।

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