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अयोध्या: सुनवाई के लिए पीठ के अध्यक्ष होंगे मुख्य न्यायाधीश

उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ अयोध्या मालिकाना हक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को टाल देने की मांग करती विशेष अनुमति...

अयोध्या: सुनवाई के लिए पीठ के अध्यक्ष होंगे मुख्य न्यायाधीश
एजेंसीSat, 25 Sep 2010 11:04 PM
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उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ अयोध्या मालिकाना हक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को टाल देने की मांग करती विशेष अनुमति याचिका के भविष्य पर मंगलवार को निर्णय करेगी।

इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश के साथ ही न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति क़े एस राधाकृष्णन भी हैं। इस मामले को एजेंडे में सबसे पहले सुबह साढ़े दस बजे के लिये सूचीबद्ध किया गया है।

शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेश चंद त्रिपाठी की याचिका के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर बीते गुरुवार रोक लगा दी थी। इस याचिका में आपसी बातचीत के जरिये मसले का हल निकालने की संभावनाएं तलाशने के मकसद से अदालती फैसला टालने की मांग की गयी थी।

अदालती फैसले पर रोक लगाने के मुद्दे पर न्यायमूर्ति आर वी़ रविंद्रन और न्यायमूर्ति एच एल गोखले के बीच मतभेद होने के बीच शीर्ष अदालत ने अंतरिम रोक के आदेश दिये थे।

त्रिपाठी की याचिका में अनुरोध किया गया था कि 60 वर्ष पुराने राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद का अदालत से बाहर हल निकालने की संभावनाएं तलाशी जायें।

उच्चतम न्यायालय ने एटॉर्नी जनरल जी़ ई़ वाहनवती से भी कहा था कि जब मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई होगी तो वह खुद मौजूद रहें और न्यायालय की मदद करें।

न्यायमूर्ति रविंद्रन का यह मत था कि त्रिपाठी की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया जाये, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि समाधान के विकल्प तलाशने के लिये नोटिस जारी किया जाना चाहिये।

इसके बावजूद, पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति रविंद्रन ने न्यायमूर्ति गोखले का पक्ष लेते हुए समाधान तलाशने की एक कोशिश करने को तरजीह दी।

न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि अगर एक फीसदी भी संभावना है तो आपको वह मामले के हल के लिये देनी होगी। न्यायमूर्ति रविंद्रन ने अपने आदेश में कहा था, पीठ के एक सदस्य का यह मत है कि विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिये, जबकि एक अन्य सदस्य का यह विचार है कि आदेश पर रोक लगा दी जानी चाहिये और नोटिस जारी किया जाना चाहिये।

उन्होंने कहा था कि इस अदालत की यह परंपरा रही है कि जब एक सदस्य यह कहे कि नोटिस जारी होनी चाहिये और दूसरा सदस्य यह कहे कि नोटिस जारी नहीं होना चाहिये तो नोटिस जारी होता है।

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