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विश्व विजेता सुशील का शाही स्वागत

विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचने वाले कुश्ती के बेताज बादशाह सुशील कुमार का मॉस्को से सोमवार आधी रात के बाद स्वदेश लौटने पर ढोल नगाडों के शोर से गूंजता आसमान, फूलों की...

विश्व विजेता सुशील का शाही स्वागत
एजेंसीTue, 14 Sep 2010 03:27 PM
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विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचने वाले कुश्ती के बेताज बादशाह सुशील कुमार का मॉस्को से सोमवार आधी रात के बाद स्वदेश लौटने पर ढोल नगाडों के शोर से गूंजता आसमान, फूलों की वर्षा और भारत माता की जय के नारों के बीच इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर शाही स्वागत किया गया।
 
भारतीय कुश्ती के नए इतिहास पुरुष सुशील के स्वागत में इंदिरागांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन पर मानो लोगों का सैलाब उमड़ आया था। सुशील के इस भव्य स्वागत ने उनके अगस्त 2008 में पेइचिंग ओलंपिक से कांस्य पदक जीतकर लौटने पर हुए स्वागत को पीछे छोड़ दिया।
 
सुशील के गुरु द्रोणाचार्य अवार्डी महाबली सतपाल, उनके पिता दीवान सिंह, मां कमला देवी, परिवार के अन्य सदस्य, मुख्य कुश्ती कोच जगमिंदर, कुश्ती के सरकारी पर्यवेक्षक नरेश कुमार, उसके छत्रसाल स्टेडियम के कोच रामफल, उनके गांव बापरौला के बड़े-बूढे और युवा लोग तथा आसपास के गांवों के लोग भारी संख्या में मौजूद थे।
 
सुशील की मां कमला देवी के साथ गांव की कुछ महिलाएं भी हवाई अड्डे पर मौजूद थी। एक महिला ने हाथों में आरती की थाली ले रखी थी तो दूसरी महिला के हाथों में बुके था।
 
रात ग्यारह बजे से ही लोगों का हवाई अड्डे पहुंचाना शुरु हो गया था। सबसे पहले पहुंचने वालों में महाबली सतपाल और रामफल थे। साढ़े ग्यारह बजे चार बसों और अन्य गाड़ियों में भरकर बापरौला, दिसाऊकला, बक्करवाला, बवाना और आसपास के अन्य गांवों के लोग पहुंचे। उनके पहुंचते ही ढ़ोल नगाडों के बजने का जो सिलसिला शुरु हुआ वह देर रात डेढ़ बजे के आसपास सुशील के हवाई अड्डे से बाहर आने तक चलता रहा।

सुशील की मां कमला देवी की निगाहें अपने लाडले को ढूंढ रही थीं जबकि उनके पिता दीवान सिंह लगातार लोगों की बधाइंया स्वीकार कर रहे थे। हर तरफ जश्न का माहौल था। लोगों के हाथों में फूल मालाएं थी। ढाले नगाडे पर युवा नाचने में लगे थे। भारत माता की जय के साथ सुशील जिन्दाबाद के नारे लग रहे थे। आसपास से गुज़रते विदेशी कौतूहलवश पूछते थे कि यह क्या हो रहा है। सारा माहौल सुशीलमय था।
 
सभी निगाहें टर्मिनल थ्री के गेटों पर लगी हुई थी। महाबली सतपाल सहित कई लोग टर्मिनल के अंदर जा चुके थे। अंदर भी इंतज़ार हो रहा था और टर्मिनल के बारह भी इंतज़ार हो रहा था। मिठाइयां खिलाई जा रही थी। टीवी चैनल के कैमरे मुस्तैद थे और हर घड़ी को कैद कर रहे थे।
 
किसी को स्पष्ट नहीं था कि सुशील ने कितने बजे हवाई अड्डे से बाहर निकलना है। बेताबी बढ़ती जा रही थी और टर्मिनल के बाहर का जनसैलाब भी बढ़ता जा रहा था। थोड़ी थोड़ी देर में जैसे ही कोई सुगबुगाहट होती, हाथों में विशाल तिरंगा लिए युवा उस गेट की तरफ दौड़ पड़ते और ढोल नगाडों की गूंज तेज़ हो जाती।
 
पूरा माहौल जैसे उत्सव में बदल गया था। लेकिन इंतज़ार की घड़ियां खत्म हो रही थी। रात के एक बज चुके थे तभी किसी ने कहा सुशील वीआईपी गेट से निकलेगा। आनन फानन में वीआईपी गेट के बाहर सारा जनसैलाब पहुंच चुका था।

वीआईपी गेट के पास इंतज़ार के 20 मिनट गुज़र गए लेकिन तभी पता चला कि सुशील तो दूसरे गेट पर पहुंच रहा है। अब की बार तो सब्र का बांध टूट गया और जन सैलाब सहित सारा मीडिया टर्मिनल थ्री के अंदर घुस गया। सुरक्षाकर्मी हैरत में थे लेकिन सुशील के दीवानों को रोकना किसी के बस की बात नहीं थी।
 
सुशील जैसे ही टर्मिनल थ्री में आए हर कोई उन्हें नज़दीक से देखने के लिए लपक पड़ी। विश्व विजेता को फूलमालाओं से लाद दिया गया। कुश्ती के दीवानों ने सुशील को इस कदर घेर रखा था कि उनकी मां अपने लाडले का चेहरा तक नहीं देख पाई और दूर से ही सुशील के स्वागत को निहारती रही।
 
हर कोई सुशील के साथ तस्वीर खिंचाने को बेताब था हर कोई उन्हें एक बार छूना चाहता था पानी की लहरों की तरह सुशील के दीवानें और कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ ले जा रहे थे मीडिया एक अदद बाइट के लिए परेशान था और टर्मिनल थ्री में जैसे ही अफरातफरी मची हुई थी।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सतपाल से आग्रह किया कि वह दिनों दीवानों को टर्मिनल से बाहर ले जाए। किसी तरह यह जन सैलाब टर्मिनल से बाहर निकला तो पुलिस कर्मियों और हवाई अड्डा स्टाफ ने राहत की सांस ली। लेकिन वे भी सुशील का फोटो खींचने से नहीं चूंके। आखिर ऐसा मौका बार बार तो नहीं आता है।
 
टर्मिनल के बाहर सुशील को और फूलों तथा नोटों की मालाओं से लाद दिया गया। युवा प्रशंसकों ने सुशील को अपने कंधों पर उठा लिया। सुशील हाथ जोड़कर विनम्रता के साथ सभी का अभिवादन कर रहे थे।
 
सुशील और उनके गुरु सतपाल फिर एक खुली जीप पर सवार हो गए ताकि प्रशंसक उन्हें अच्छी तरह देख सकें। हाथ जोड़े खड़े सुशील ने कहा कि मुझे बहुत खुशी हो रही है मैं इस सम्मान से अभिभूत हूं। मैं राष्ट्रमंडल खेलों में भी देशवासियों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करुंगा।

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