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‘गिनी पिग’ छोटा और सुन्दर भी

गिनी पिग चूहे जैसा एक छोटा सा जानवर होता है। यह हमारी धरती पर पाये जाने वाले नन्हे और अद्भुत वन्य जीवों में से एक है। देखने में यह खरगोश जैसा सुंदर लगता है। तो आओ उसके बारे में और जाने उस की ही...

‘गिनी पिग’ छोटा और सुन्दर भी
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 26 Aug 2010 12:17 PM
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गिनी पिग चूहे जैसा एक छोटा सा जानवर होता है। यह हमारी धरती पर पाये जाने वाले नन्हे और अद्भुत वन्य जीवों में से एक है। देखने में यह खरगोश जैसा सुंदर लगता है। तो आओ उसके बारे में और जाने उस की ही जुबानी

मैं इस धरती का एक बहुत छोटा सा स्तनपायी जीव हूं। जिसे ‘गिनी पिग’ कहते हैं। वैसे मेरा वैज्ञानिक नाम ‘केविआ पोर्सेलस’ है, इसलिए बहुत से लोग मुझे प्यार से केवी भी कहते हैं।

मूलत: मै दक्षिणी अमरीका महाद्वीप पर पाया जाता था। लेकिन 16वीं शताब्दी में जब यूरोप के व्यापारी उस महाद्वीप पर आये तो मैं उन्हें बहुत अच्छा लगा। इसलिए वह मेरे बहुत से साथियों को अपने साथ यूरोप ले आये। उन्होंने हमें ‘पैट’ यानी पालतू जानवर की तरह बड़े प्यार से रखा। इसलिए वहां हमारी संख्या बढ़ती चली गई। तुम सोचते होगे कि मेरा नाम ‘गिनी पिग’ कैसे पड़ा। यह बात कोई नहीं जानता। मुझे लगता है कि मेरे शरीर की बनावट पिग यानी सूअर के समान दिखती है और मैं बहुत छोटा सा जीव हूं। इसलिए लोगों ने मुझे प्यार से ‘गिनी पिग’ कहना शुरू कर दिया होगा। मेरी गर्दन सूअर के समान मोटी होती है और मेरा मुंह बड़ा दिखता है, लेकिन मेरी पूंछ नहीं होती।

पता है हमारा शरीर बस 8-10 इंच लम्बा होता है, जबकि हमारा वजन 700 ग्राम से 1200 ग्राम के मध्य होता है। हमारे शरीर पर रोंयेदार मुलायम बाल होते हैं। हमारा शरीर भूरे, हल्के भूरे, सफेद या काले रंग का होता है, जिसके मध्य किसी दूसरे रंग के निशान भी होते हैं। हमारी आंखें चूहे के समान गोल और छोटी सी होती हैं। जानते हो, हमारी देखने की क्षमता इंसानों की तुलना में कम होती है, लेकिन हमारी दृष्टि का दायरा उनसे अधिक होता है।

यही नहीं, हमारी सुनने और सूंघने की शक्ति भी तीव्र होती है। हमारे लहराते कान चूहे से बड़े होते हैं। हम सुबह और शाम के समय अधिक गतिशील रहते हैं, क्योंकि उस समय शिकारी जानवरों का खतरा कम होता है ना!

पालतू गिनी पिग के लिए थोड़े बड़े आकार के पिंजरे रखने होते हैं तथा एक बार में कम से कम दो गिनी पिग पाले जाते हैं।
इनका जीवन चक्र सामान्यत: 5 से 7 वर्ष होता है।
कई देशों में इनका मांस खाया जाता है।
17वीं शताब्दी से इनका प्रयोग जीव विज्ञान के शोधों के लिए भी किया जाने लगा। 
यह हमारे देश में नहीं पाया जाता।

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