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आजादी की खातिर नवाबों के खिलाफ भी खड़े हुए भोपाली

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की पहचान आज भी नवाबों की नगरी के तौर पर है, क्योंकि यहां नवाबों का राज रहा है और नवाबों की सल्तन अंग्रेजों के इशारे पर चलती थी। भोपाल के लोगों को यही बात नागवार गुजरती थी...

आजादी की खातिर नवाबों के खिलाफ भी खड़े हुए भोपाली
एजेंसीSat, 14 Aug 2010 10:44 AM
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की पहचान आज भी नवाबों की नगरी के तौर पर है, क्योंकि यहां नवाबों का राज रहा है और नवाबों की सल्तन अंग्रेजों के इशारे पर चलती थी। भोपाल के लोगों को यही बात नागवार गुजरती थी और वे नवाबों के खिलाफ  भी आजादी की लड़ाई लड़ने में पीछे नहीं रहते थे।

इतिहास इस बात का गवाह है कि भोपाल के लोगों ने जंग-ए-आजादी में अहम किरदार निभाया था और अपनी कुर्बानी भी दी थी। 1857 की लड़ाई के वक्त भोपाल की नवाब सिकंदर जहां हुआ करती थीं। तब यहां भी विरोध का बिगुल बजा और इस विरोध को दबाने ब्रिटिश सेना ने जोर लगा दिया। फिर क्या था, यहां के लोगों ने सिपाही बहादुर कंपनी बनाकर ब्रिटिश सैनिकों का मुकाबला किया। इस आंदोलन की आग भोपाल से सागर तक फैली। बाद में 100 देश भक्तों को सिहोर के जेल में फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया।

भोपाल की रियासत पूरी तरह अंग्रेजी हुकूमत के इशारे पर चलती थी। यहां तक कि नवाबों की शादी भी उन्हीं की मर्जी से तय होती थी। सिकंदर जहां बेगम के पहले पति के बाद दूसरी शादी अंग्रेजों की इच्छा के मुताबिक हुई। सिद्दीकी जहां खां ने जब अपनी मर्जी से शासन चलाया तो उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। अंग्रेजों ने भोपाल पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए बाहरी लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। तब यहां भोपाली और गैर भोपाली आंदोलन शुरू हुआ।

भोपाल में चले जंग-ए-आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले एलके नजमी की बेटी और आंदोलन की गवाह नुसरत बानो रूही बताती हैं कि 1934 के बाद लोकतांत्रिक आजादी के लिए यहां आंदोलन जोर पकड़ चुका था। शाकिर अली खां और एलके नजमी सहित कई देशभक्त कभी जेल तो कभी जेल के बाहर वक्त गुजारते रहे थे।

1939 के बाद भोपाल में पहला कॉलेज खुला और उद्योगों की स्थापना का दौर शुरू हुआ। वह बताती हैं कि नवाबों की हमेशा यही कोशिश रही कि भोपाल के लोग देश में चल रही गतिविधि न जान पाएं, इसीलिए जब भी यहां अखबार शुरू हुए, उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा और शिक्षित न हों इसीलिए कॉलेज नहीं खोले गए।

इतिहास बताता है कि 1939-40 के दौरान प्रजामंडल बना और भोपाल में उसकी जिम्मेदारी शाकिर अली खां, केएल नजमी, अबु सईद बजमी ने संभाली। इतना ही नहीं 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अधिकांश नेता जेल में थे, फिर भी आंदोलन जारी रहा।

1947 में जब देश को आजादी मिली तो यहां राज, हमीदुल्ला खां का था। वह यह नहीं सोच पा रहे थे कि अपने राज्य का विलय भारत में करें या पाकिस्तान में। आखिर में जनता के दबाव के चलते भोपाल का भारत में विलय किया गया। भोपाल के नवाब भले ही अंग्रेजों के इशारे पर चलते रहे, मगर भोपाल के लोगों ने उसे कभी स्वीकार नहीं किया। यही कारण था कि भोपाल में आजादी का आंदोलन जारी रहा।

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