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धोखाधड़ी और धन

दर्शन के दर्पण में जीवन क्या है? धोखा है। छल है। साया है। झूठ है। माया है। जाहिर है कि ‘सत्यम’ भ्रम हो। जीवन का अनिवार्य अंत अमरता नहीं, मृत्यु है। इन हालात में सत्यम का सच झूठम है तो भला आश्चर्य...

 धोखाधड़ी और धन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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दर्शन के दर्पण में जीवन क्या है? धोखा है। छल है। साया है। झूठ है। माया है। जाहिर है कि ‘सत्यम’ भ्रम हो। जीवन का अनिवार्य अंत अमरता नहीं, मृत्यु है। इन हालात में सत्यम का सच झूठम है तो भला आश्चर्य क्या है? अपन को लगता है कि यह तो होना ही था, कहते भी हैं कि न दौड़ के चलो, न गिर पड़ो। पर हमें तो यकीन है। कितने दिन, कितनों को उसने मुनाफे के मुगालते में रखा। उन्हें खुशी की अनुभूति कराई। यह अपने आप में कोई कमतर उपलब्धि है क्या? शेयर बाजार इकलौता ऐसा बाजार है, जहां कीमत उछाल लेती है तो लोगों की बांछें खिलती हैं। जब बाजार में साग से लेकर दाल-चावल की कीमतें तरक्की करती हैं तो लाखों-करोड़ों अपने ऐसे दु:ख दर्द के दरिया में डूबते हैं। बाजार की एक और बुरी आदत है। एक बार आटे-दाल का भाव चढ़ा तो चढ़ा ही रहता है। फिर भी फायदा किसान को नहीं है। लाभ बड़े आढ़तिए-बिचौलिए ही कमाते हैं। इस नियतिवादी देश में किसान की किस्मत में बस हाड़-तोड़ मेहनत है। अगर बारिश वक्त से हो, तब वह भुगतता है, अगर नहीं, तब भी। आढ़तिया सदा आनंद में है। बारिश हो न हो। फसल कम हो या ज्यादा। बाजार उठे या गिर। उसका नफा तो होना ही होना। आम आदमी का पेट भर न भर, उसे फर्क क्या पड़ता है? उपभोक्ता हमेशा रोता है और आढ़तिया सिर्फ हंसता है। सत्यम जसों के स्वामियों से हमें हार्दिक हमदर्दी है। परशान रहते हैं! कैसे धंधा जमाएं, भारत से विदेशों में पंख फैलाएं, नाम और मुनाफा कमाएं, शेयर की कीमत और शेयर होल्डर का डिविडेंड बढ़े। यह सब कारनामें आसान हैं क्या? खून पसीना एक करना पड़ता है, तब कहीं जाकर धंधा शुरू हो पाता है, अपने देश में। वह तो कोई साहस का सूरमा, हिम्मत का हनुमान ही सत्ता व्यवस्था की लंका में प्रवेश कर सही सलामत, बिना सब गंवाए, जिन्दा लौट पाता है। नहीं तो जानकार बताते हैं कि लंका में सत्ताधारी राक्षस ऐसे लालची हैं कि पैसे तो वसूलें ही, सूट-कमीज के साथ-साथ चड्डी-बनियान भी उतरवा लें। उद्योग-धंधा लगाना हिमालय की चढ़ाई जसा कठिन है। तब कहीं जाकर सफलता के संघर्ष की बारी आती है। वह जी-ाान से उसमें लगते हैं। धंधेवाले के आदर्श सत्ता के धांधलेश्वर हैं जो जीवन भर धांधली कर भी दूध के धुले रहते हैं। जाने उसे ज्ञात है कि नहीं, हमार पाक साफ मुल्क में धांधली अपराध नहीं है। सब करते हैं। बस, पकड़े जाना एक अक्षम्य अपराध है। हमें यकीन है। अब ‘सत्यम’ के लिए मुल्क में माफी मुमकिन नहीं है!

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