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आईआईटी छात्रों पर प्रतिस्पर्धा का गहरा दबाव

आइआईटी कानपुर रिसर्च और अनुसंधान के छात्रों पर अभिभावकों की अपेक्षाओं और कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण गहरा दबाव पड़ रहा है जिसके चलते वे मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं। संस्थान में एमटेक मैकेनिकल...

आईआईटी छात्रों पर प्रतिस्पर्धा का गहरा दबाव
एजेंसीThu, 08 Jul 2010 03:08 PM
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आइआईटी कानपुर रिसर्च और अनुसंधान के छात्रों पर अभिभावकों की अपेक्षाओं और कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण गहरा दबाव पड़ रहा है जिसके चलते वे मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं। संस्थान में एमटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र राकेश कुमार ठाकुर [22 वर्ष] मानसिक रूप से बीमार था। बुधवार को कल हृदयाघात से उसकी मौत हो गई।

संस्थान के रजिस्ट्रार संजीव कशालकर मानते हैं कि यह छात्र मनोरोगी था और अक्सर हास्टल में अपने बाल नोचने लगता था तथा कपड़े फाड़ने लगता था। कई बार वह खुद को भी चोट पहुंचा चुका था। हालत ज्यादा बिगड़ने पर चार दिन पहले उसे शहर के एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया जहां कल सुबह इसकी मौत हो गयी। आईआईटी प्रशासन के लाख प्रयासों के बाद भी संस्थान में छात्रों की मानसिक तनाव के कारण मौत या आत्महत्या का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। पिछले पांच सालों में संस्थान के सात होनहार छात्रों ने तनाव बरदाश्त न कर पाने पर मौत को गले लगा लिया।

कशालकर ने बताया कि अभिभावकों की अपेक्षायें, पढ़ाई का बोझ, आर्थिक मंदी के कारण नौकरी न मिलना, जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा आदि के कारण उत्पन्न मानसिक तनाव से छात्र मानसिक रोगों और अवसाद के शिकार हो जाते हैं। कशालकर कहते है कि संस्थान में कई छात्र ऐसे हैं जो अभिभावकों की इच्छा पूरी करने के लिये आईआईटी में प्रवेश तो ले लेते हैं लेकिन उनका मन यहां नही लगता। ये छात्र मानसिक तनाव में पढ़ाई करते हैं। वह कहते है कि आमिर खान की बहुचर्चित फिल्म थ्री इडियट्स में एक छात्र फोटोग्राफर बनना चाहता है लेकिन उसके मां बाप उसे जबरदस्ती इंजीनियरिंग कालेज भेज देते हैं। आज आपको आईआईटी में ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे।

कशालकर के अनुसार, इनमें से कुछ छात्र तो अपने अभिभावकों से नफरत करने लगे हैं। ये छात्र, अभिभावकों के आने पर न तो उनसे मिलते हैं और न ही उनका फोन उठाते हैं। ऐसे में अभिभावक आईआईटी प्रशासन से मिल कर अपने बच्चों का हाल चाल पूछते हैं और लौट जाते हैं। इससे पहले 23 फरवरी 2009 को आईआईटी कानपुर के पीएचडी सिविल इंजीनियरिंग के मानसिक रूप से बीमार छात्र दुर्गेश विक्रम ने ट्रेन की पटरी पर लेटकर आत्महत्या का प्रयास किया था। लेकिन रेलवे पुलिस ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।

तीन जनवरी 2009 को आंध्र प्रदेश के रहने वाले जी सुमन [24] ने आत्महत्या कर ली थी। वह एम टेक सेकंड इयर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का छात्र था। उसने बीटेक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी लेकिन कैम्पस सेलेक्शन में नाकाम होने पर उसने फांसी लगा ली थी। देश के सर्वोच्च तकनीकी संस्थान आईआईटी कानपुर में पिछले पांच वर्षों में सात छात्रों ने आत्महत्या की है। वर्ष 2008 में तो दो छात्रों ने आत्महत्या की। इनमें से बी टेक चतुर्थ वर्ष की छात्रा टोया चटर्जी ने संस्थान के दीक्षांत समारोह के एक दिन पहले 30 मई 2008 को फांसी लगा ली। वर्ष 2008 में ही 18 अप्रैल को बी टेक प्रथम वर्ष के छात्र प्रशांत कुमार ने आत्महत्या का ली थी।

वर्ष 2007 में अप्रैल माह में जे भारद्वाज, नवंबर 2006 में अभिलाष पिल्लई, अप्रैल 2006 में शैलेष शर्मा तथा नवंबर 2005 में स्वप्निल भास्कर नामक छात्रों ने आत्महत्या की थी। इन सभी मामलों का कारण आईआईटी प्रशासन मानसिक तनाव ही बताता है। यह पूछे जाने पर कि छात्रों को मानसिक तनाव से बचाने के लिए आईआईटी प्रशासन क्या कर रहा है, कशालकर ने बताया कि संस्थान में दो मानसिक रोग चिकित्सक तैनात हैं, एक योगा सेंटर स्थापित किया गया है तथा काउंसलिंग सेन्टर भी चलता है। उन्होंने बताया कि जो छात्र भी तनाव में होता है उसकी नियमित काउंसलिंग होती है, साथ ही छात्रावास के सहयोगी छात्र भी उस पर कड़ी नजर रखते हैं।

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