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पहली छमाही का बॉक्स ऑफिस लेखा-जोखा, कामयाबी बरसी बूंदन-बूंदन

यूं तो इस साल के पहले छह महीनों में ताबड़तोड़ फिल्में आईं, लेकिन हर बार की तरह इनमें से ज्यादातर इस काबिल नहीं थीं कि कोई उन्हें देखता भी। पिछले साल से यह बरस जरूर कुछ बेहतर रहा। आंकड़ों की बात करें...

पहली छमाही का बॉक्स ऑफिस लेखा-जोखा, कामयाबी बरसी बूंदन-बूंदन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 03 Jul 2010 12:32 PM
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यूं तो इस साल के पहले छह महीनों में ताबड़तोड़ फिल्में आईं, लेकिन हर बार की तरह इनमें से ज्यादातर इस काबिल नहीं थीं कि कोई उन्हें देखता भी। पिछले साल से यह बरस जरूर कुछ बेहतर रहा। आंकड़ों की बात करें तो जहां वर्ष 2009 के पहले छह महीनों में सीधे हिन्दी में और हिन्दी में डब हो कर आई 129 फिल्मों में से 1 फिल्म खासी कामयाब रही थी और 7 ने ठीक-ठाक कमाई कर ली थी, वहीं इस साल की पहली छमाही में रिलीज हुई 124 फिल्मों में से 2 ने उम्दा बिजनेस किया और 15 ने औसत तक पहुंचने की हिम्मत दिखाई।

पिछले साल फिल्म इंडस्ट्री की हड़ताल ने कमर तोड़ी थी। 2009 की पहली छमाही में 64 फिल्मों में से कामयाबी 5 के नसीब में थी, जबकि इस बरस 83 में से 12 ने बल्ले-बल्ले किया। आधे साल के इस सफर में सबसे आगे खड़ी दिखाई देती है ‘राजनीति,’ जिसमें मनोरंजन की खुराक कम और गंभीरता ज्यादा दिखती है। इस फिल्म ने पहले सप्ताह में मात्र 340 सिनेमाघरों से करीब 30 करोड़ रु. बटोर डाले। साजिद खान की ‘हाउसफुल’ भी हिट के पायदान पर खड़ी है। अभिषेक चौबे ‘इश्किया’ लेकर आए और ठेठ हिन्दी बैल्ट में सराहे भी गए। दिबाकर बैनर्जी ने ‘लव सैक्स और धोखा’ में सचमुच न्यू एज सिनेमा परोसा और फिल्म के बजट से काफी ज्यादा कमा गए। परमीत सेठी की ‘बदमाश कंपनी’ सनसनी तो नहीं मचा पाई, लेकिन उन्हें एक क्षमतावान निर्देशक के रूप में तो स्थापित कर ही गयी। ‘कार्तिक कॉलिंग कार्तिक’ ने बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स वाले दर्शकों को प्रभावित किया और औसत रही। विवेक ओबरॉय की  ‘प्रिंस’ भी औसत रही। बुरी बीती तो सलमान खान की ‘वीर’ के साथ। करण जौहर की ‘माई नेम इज खान’ को कामयाबी कम मिली और तारीफें ज्यादा। लेकिन असल गोते खाए ‘काइट्स’ और ‘रावण’ ने। अनुराग बसु की ‘काइट्स’ को कटने में दो दिन भी नहीं लगे। पहले हफ्ते में इसने कोई 35 करोड़ रु. बटोरे,  लेकिन 750 थिएटरों से और यह आंकड़ा कोई उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता। उधर मणिरत्नम की ‘रावण’ देखने वाले हैरान थे और न देखने वाले अपने नसीब पर खुश हो रहे थे।

फ्लॉप रही फिल्मों में वे फिल्में होती हैं, जो शोर मचा कर आती हैं और औंधे मुंह गिर जाती हैं। उदय चोपड़ा ने एक बार फिर ‘प्यार इम्पॉसिबल’ से अपना और अपने प्रोडक्शन हाउस का नाम डुबोया। शाहिद कपूर की दो फिल्में ‘चांस पे डांस’ और ‘पाठशाला’ देर से आईं और आते ही नकार दी गईं। रामगोपाल वर्मा ने ‘रण’ का भौंपू तो खूब बजाया, लेकिन इस फिल्म की तूती किसी ने न सुनी। विक्रम भट्ट की ‘शापित’ में कोई हॉरर नजर नहीं आया। तब्बू वाली ‘तो बात पक्की’ काफी हल्के से आकर निकल गई। ‘क्लिक’, ‘रोक’, ‘जाने कहां से आई है’ वगैरह में ऐसा कुछ नहीं था, जो इन्हें पसंद किया जाता। प्रियदर्शन ‘बम बम बोले’ में खुद ही कन्फ्यूज नजर आए तो दर्शक भला कहां से जुटते। ‘लाहौर’ फिल्म तो उम्दा थी और इसे तारीफ भी मिलीं, लेकिन चमकते चेहरों की कमी ने इसे आगे नहीं बढ़ने दिया।

‘दूल्हा मिल गया’ को तो शाहरुख खान की मौजूदगी भी न बचा पाई। ‘रात गई बात गई’, ‘एक्सीडेंट ऑन हिल रोड’, ‘हाईड एंड सीक’, ‘न घर के न घाट के’, ‘राइट या रांग’ जैसी फिल्मों के प्रचार पर कम और मेकिंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता तो अच्छा रहता। ‘रोड टू संगम’ को काफी सराहना मिली, मगर ऐसी फिल्में कैश कहां जुटा पाती हैं। इसके अलावा ‘हम तुम और घोस्ट’, ‘रोड, मूवी’, ‘स्ट्राइकर’, ‘वैलडन अब्बा’, ‘मित्तल वर्सेज मित्तल’, ‘तुम मिलो तो सही’, ‘सिटी ऑफ गोल्ड’ जैसी फिल्में अच्छे एलीमेंट के बावजूद कमा नहीं पाईं।  ‘अपार्टमेंट’ और ‘चेज’ को तो खुद जगमोहन मूंधड़ा ही ले डूबे। राज कंवर ने ‘सदियां’ में और मेहुल कुमार ने ‘क्रांतिवीर-द रिवोल्यूशन’ में बासी माल परोसा और पिटे। ‘हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं’, ‘एक सेकेंड जो जिंदगी बदल दे’, ‘पंगा गैंग’, ‘बर्ड आयडल’, ‘फांस एक जासूस की कहानी’, ‘लव़ कॉम’, ‘थैंक्स मां’ जैसी फिल्में तो लगता है पिटने के लिए ही बनाई गई थीं। इस भीड़ में और भी ऐसी ढेरों फिल्में हैं, जिनकी बात करना ही बेकार है।

डब फिल्मों का हाल भी खस्ता रहा। हॉलीवुड और दक्षिण से 41 फिल्में डब होकर रिलीज हुईं। इनमें से हॉलीवुड की ‘प्रिंस ऑफ पर्शिया-द सैंड्स ऑफ टाइम’ और ‘द ए टीम-खतरों के खिलाड़ी’ को एक्शन और एडवेंचर पसंद करने वाले दर्शकों ने खासा सराहा। ‘महायुद्घ-क्लैश ऑफ द टाइटंस’, ‘आयरन मैन-2’ और ‘द कराटे किड’ को भी कहीं-कहीं पसंद किया गया। ‘द वुल्फमैन’ और ‘नागिन का इंतकाम’ को अंदरूनी इलाकों में थोड़ा देखा गया। गुरिंदर चड्ढा की ‘हाय मरजावां’ को भी लोगों ने पसंद नहीं किया। कुल मिला कर इस दौरान ऐसी फिल्में नहीं आईं, जो बॉक्स आफिस की प्यास पूरी तरह से बुझा सकतीं।

किसने खींची शुरुआती भीड़

इस छमाही में अपने पहले सप्ताह में प्रति सिनेमाघर तीन लाख रुपए से ऊपर बटोरने वाली फिल्में ये रहीं।

क्रम संख्या  फिल्म पहले सप्ताह की प्रति प्रिंट औसत कलैक्शन
                             (लाख रुपए में)
1 वीर                        4.30
2 इश्किया                     3.14
3 माई नेम इज खान     7.51
4 कार्तिक कॉलिंग कार्तिक  3.10
5 हाउसफुल                   7.26
6 बदमाश कंपनी           3.77
7 काइट्स                   4.63
8 राजनीति               8.63
9 रावण                      3.26

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