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खतरनाक उद्योगों में लगे हैं देश के सवा करोड़ नौनिहाल

जिन नौनिहालों पर देश अपने भविष्य के सपने संजोता है उन बच्चों का वर्तमान खौफनाक है। जिन मासूम हाथों में कॉपी-किताब और खिलौने होने चाहिए वे कालीन बनाने से लेकर खनन तक में लगे हैं। भारत में करीब एक करोड़...

खतरनाक उद्योगों में लगे हैं देश के सवा करोड़ नौनिहाल
एजेंसीThu, 10 Jun 2010 12:41 PM
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जिन नौनिहालों पर देश अपने भविष्य के सपने संजोता है उन बच्चों का वर्तमान खौफनाक है। जिन मासूम हाथों में कॉपी-किताब और खिलौने होने चाहिए वे कालीन बनाने से लेकर खनन तक में लगे हैं। भारत में करीब एक करोड़ 26 लाख बच्चों ऐसे हैं जो खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे हैं।

बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के मुताबिक भारत में बच्चों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। यहां करीब एक करोड़ 26 लाख बच्चों ऐसे हैं जो बीड़ी, कालीन तथा कपड़ा निर्माण तथा खनन जैसे अत्यंत खतरनाक उद्योगों और चाय बागान में काम करते हैं।

बचपन को नष्ट करने की यह विडंबना न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर प्रभावी है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2004 में विश्वभर में करीब 12 करोड़ बच्चे खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे थे, जिससे उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को गंभीर खतरा है।

इन बच्चों में लड़कियों की स्थिति और भी भयावह है। यूनिसेफ के ताजा अनुमान के मुताबिक विश्वभर में करोड़ 10 करोड़ लड़कियां विभिन्न उद्योग धंधों में काम कर रही हैं। इनमें से कई ऐसी हैं, जिनका इस्तेमाल वेश्यावृत्ति, अश्लील फिल्मों के निर्माण और सैन्य हमले के लिए किया जा रहा है।

विशेषज्ञों की मानें तो भारत में बाल श्रम को खत्म करने के लिए हाल में बनाया गया शिक्षा का अधिकार कानून और प्रस्तावित भोजन का अधिकार विधेयक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। राष्ट्रीय बाल आयोग की सदस्य रह चुकी संध्या बजाज ने कहा कि बाल श्रमिक बनने के पीछे गरीबी और अशिक्षा सबसे बड़ा कारण होते हैं। यदि शिक्षा का अधिकार और प्रस्तावित भोजन के अधिकार को भारत में ठीक ढंग से लागू कर दिया जाए तो भारत से बाल श्रम का नामोनिशान मिट सकता है।

बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली प्रतिष्ठित गैर सरकारी संस्था स्माइल फांउडेशन से जुड़े संदीप नायक ने कहा कि बच्चों को जानबूझकर या गरीबी के कारण उद्योग धंधों में झोंका जाता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून सरकार द्वारा उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन इसे ठीक ढंग से लागू करने की जरूरत है। यह कानून भारत में बाल श्रम को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।

नायक ने कहा कि परिवार, सरकार और आम लोग मिलकर काम करें तथा बच्चों में जागरुकता पैदा करें तो इस गंभीर समस्या से निजात मिल सकती है।

बजाज ने बताया कि भारत में 10 लाख बच्चे ऐसे हैं जो गुम होने के बाद आगे चलकर बाल श्रमिक बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में हर साल 4500 बच्चे लापता होते हैं। बजाज ने कहा कि बच्चों के साथ आज अन्याय हो रहा है, उनका बचपन खत्म किया जा रहा है। नौनिहालों को इस भयावह स्थिति से बचाने के लिए सरकार को बहुत ध्यान देना होगा। इसके अलावा सरकार सामाजिक लेखा परीक्षण कराए ताकि बच्चों की वास्तविक स्थिति के बारे में पता चल सके।

उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार समलैंगिकता संबंधी कानून (अनुच्छेद 377) को कमजोर नहीं करे अन्यथा इसका सबसे ज्यादा बुरा असर बच्चों पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे बच्चों को वेश्यावृत्ति के गर्त में ढकेला जा रहा है।

बच्चों पर हो रहे इसी अत्याचार के खिलाफ जागरुकता पैदा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने वर्ष 2002 में 12 जून को बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस के रूप में घोषित किया। तभी यह दिन विश्व स्तर पर बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

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