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जेल जाने वाले हरियाणा के पहले डीजीपी नहीं हैं राठौड़

चर्चित रुचिका गिरहोत्रा मामले में जेल की सजा पाने वाले हरियाणा के पूर्व पुलिस प्रमुख एसपीएस राठौड़ राज्य के उन चुनिंदा पुलिस आला अधिकारियों की जमात में शामिल हो गए, जिन्हें उसी कानून ने जेल की सजा...

जेल जाने वाले हरियाणा के पहले डीजीपी नहीं हैं राठौड़
एजेंसीWed, 26 May 2010 07:25 PM
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चर्चित रुचिका गिरहोत्रा मामले में जेल की सजा पाने वाले हरियाणा के पूर्व पुलिस प्रमुख एसपीएस राठौड़ राज्य के उन चुनिंदा पुलिस आला अधिकारियों की जमात में शामिल हो गए, जिन्हें उसी कानून ने जेल की सजा सुनाई है, जिसकी रक्षा के लिए उनकी नियुक्ति हुई थी।

राठौड़ को सजा सुनाने में न्याय व्यवस्था को 20 वर्ष लग गए। राठौड़ ने 1990 में टेनिस प्रेमी किशोरी रुचिका का शारीरिक शोषण किया था और फिर उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया था। रुचिका ने 1991 में आत्महत्या कर ली थी।

राठौड़ के अलावा हरियाणा पुलिस के कई आला अधिकारी जेल की सजा काट चुके हैं। हरियाणा राज्य का गठन एक नवंबर 1966 को हुआ था और तब से लेकर आज तक राज्य में 26 पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति हो चुकी है। इनमें से तीन (राठौड़ को मिलाकर) को जेल की सजा हो चुकी है।

हरियाणा के पूर्व डीजीपी लक्ष्मण दास का नाम इस सूची में पहले स्थान पर है। अगस्त 1994 से अप्रैल 1995 तक डीजीपी रहे दास को अपराधी सरगना जितेंद्र पेहान की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था। जितेंद्र की हत्या 1994 में की गई थी और दास पर उसकी हत्या का षडयंत्र रचने का आरोप साबित हुआ था। दास को सेवानिवृत्त होने के बाद जेल जाना पड़ा था।

जितेंद्र की मां ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय की शरण ली थी कि उसके बेटे की हत्या षडयंत्र के तहत की गई है। हत्या के वक्त जितेंद्र पुलिस हिरासत में था लेकिन पुलिस ने उसकी मौत का कारण मुठभेड़ बताया था।

दास को कई महीने जेल में रहना पड़ा था। जमानत पर रिहा होने के बाद उन्होंने हरियाणा पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर अपनी एक जीवनी लिखी, जिसमें उन्होंने खुद पर लगाए गए आरोपों को निराधार बताया था।

पुलिस की नौकरी के दौरान दास को 1970 में राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। अभी भी उनके खिलाफ कई न्यायालयों में मामले लंबित हैं।

दास के उत्तराधिकारी डीजीपी रमेश सहगल को दिसंबर 1996 में गुड़गांव के एक व्यवसायी से कथित तौर पर रिश्वत लेते गिरफ्तार किया गया था। सहगल ने उस व्यवसायी से उसके एक रिश्तेदार को परोल पर रिहा करने के बदले रिश्वत मांगी थी। सहगल मई 1995 से नवंबर 1996 तक डीजीपी रहे थे।

सहगल दिसंबर 2000 में सेवानिवृत्त हो गए थे और एक वर्ष बाद उनका देहांत हो गया। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें उनके ही साथियो ने जानबूझकर फंसाया।

इस घटना का रोचक पहलू यह है कि सहगल को पंचकुला के सेक्टर-7 स्थित निवास से गिरफ्तार करने वाले दल में कई वरिष्ठ पुलिसकर्मी और आईएएस अधिकारी शामिल थे। सहगल को रंगे हाथों पकड़ा गया था। सहगल की मृत्यू के बाद यह मामला हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया।

राठौड़ के मामले में भी रुचिका के परिवार को न्याय मिलने में 20 वर्ष लग गए। इस दौरान राठौड़ बतौर पूर्व डीजीपी सरकारी पेंशन, भत्तों, अधिकारों और रुतबे का भरपूर उपयोग करते रहे। उन्होंने अपने खिलाफ मामला दर्ज कराने वालों को डराया-धमकाया और उन्हें बेवजह परेशान किया।

मंगलवार को जब निचली अदालत ने जब राठौड़ को 18 महीने के जेल भेजने का आदेश सुनाया, तब रुचिका के परिजनों ने राहत की सांस ली। कानून की रक्षा करने का वचन लेने वाले इस अधिकारी को तत्काल गिरफ्तार कर बुड़ैल जेल भिजवाया गया।

राठौड़ को जेल के 10 नंबर बैरक में रखा गया है। वह जिस कोठरी में रखे गए हैं, उसमें सात अन्य कैदी हैं। खास बात यह है कि उनमें से अधिकांश सजायाफ्ता पुलिसवाले हैं।

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