फोटो गैलरी

Hindi Newsअंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में व्यापक सुधार चाहता है भारत

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में व्यापक सुधार चाहता है भारत

भारत ने बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं में व्यापक सुधार की मांग की है ताकि विकासशील देशों में पूंजी और  ढांचागत परियोजनाओं में निवेश तेज किया जा सके। भारत का मानना है कि इससे विश्व अर्थवस्था को नई...

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में व्यापक सुधार चाहता है भारत
एजेंसीMon, 17 May 2010 03:05 PM
ऐप पर पढ़ें

भारत ने बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं में व्यापक सुधार की मांग की है ताकि विकासशील देशों में पूंजी और  ढांचागत परियोजनाओं में निवेश तेज किया जा सके।

भारत का मानना है कि इससे विश्व अर्थवस्था को नई गति देने में मदद मिलेगी जो इस समय 1930 के दशक की महामंदी के बाद सबसे बड़े आर्थिक संकट से उबने का प्रयास कर कर रही है। विदेश मंत्री एसएम कष्णा ने सोमवार को 14वें जी-15 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में व्यापक सुधार के प्रयास तेज करने होंगे ताकि इन्हें ज्यादा समावेशी बनाया जा सके।

एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका के 17 विकासशील देशों के जी-15 समूह का गठन आपसी सहयोग बढ़ाने तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों को सामूहिक सुझाव देने के लिए किया गया था। भारत ने ऐसे समय वित्तीय संस्थानों में सुधारों की बात उठाई है, जब कि अभी एक माह पहले विश्व बैंक के सदस्य देशों ने इस बहुपक्षीय वित्तीय संस्था के परिचालन में विकासशील देशों को अपनी बात रखने का और अधिक अवसर देने की एक योजना मंजूर की है।

विश्व बैंक के मताधिकार के कोटे में भारत का हिस्सा 2.77 प्रतिशत से बढ़कर 2.91 फीसदी कर दिया गया है। इसी तरह चीन का मताधिकार 2.91 प्रतिशत से बढ़कर 4.42 फीसदी हो गया है। विदेश मंत्री कष्णा ने कहा कि देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट का दौर बीत चुका है, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि दुनिया निरंतर आर्थिक वृद्धि के मार्ग पर चल चुकी है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की दशा में निरंतर सुधार कई कारणों पर निर्भर करेगा इसमें विकासशील देशों का प्रदर्शन, बुनियादी ढांचागत विकास में निवेश और विकासशल देशों को पूंजी की स्थिति शामिल है। विश्व बैंक में मताधिकार की दृष्टि से भारत का स्थान अमेरिका, जापान, चीन, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के बाद सातवें नंबर पर है। मताधिकार बढ़ने से भारत को बैंक से अतिरिक्त सहायता लेने में भी मदद मिलेगी।

भारत पहले से विश्व बैंक से सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में है। पिछले चार वित्त वर्षों के दौरान भारत ने विश्व बैंक से हर वर्ष औसतन 2.3 अरब डॉलर का ऋण लिया है। भारत कह चुका है कि उससे अपने बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए 10 खरब डॉलर के निवेश की जरूरत है। कृष्णा ने कहा कि विकासशील देशों को दोहा दौर की वार्ता के संतुलित नतीजों के लिए मिलकर काम करना होगा, जिससे विकासशील देशों की चिंताएं दूर हो सकें।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें