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रिश्तों का जोड़

ुछ लोग हमेशा यह शिकायत करते हैं कि अब रिश्तों में पहले समय की-सी बात नहीं रही, अब तो लोगों का खून सफेद हो गया है, आदि। पर क्या वे कभी यह जानने की कोशिश करते हैं कि रिश्तों का क्या मतलब है और वे कैसे...

 रिश्तों का जोड़
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ुछ लोग हमेशा यह शिकायत करते हैं कि अब रिश्तों में पहले समय की-सी बात नहीं रही, अब तो लोगों का खून सफेद हो गया है, आदि। पर क्या वे कभी यह जानने की कोशिश करते हैं कि रिश्तों का क्या मतलब है और वे कैसे बनाए जा सकते हैं? ज्यादातर रिश्तों से तात्पर्य खून के रिश्तों का माना जाता है, पर अंतरंग मित्रों, जानकारों, कई बार आसपास के लोगों या सुबह की सैर पर रो दिखनेवालों, यहां तक कि घर में काम करने आनेवालों से भी रिश्ता जुड़ जाता है। तो मतलब यह हुआ कि संपर्क में आनेवाले सभी लोगों से कुछ संबंध हो ही जाते हैं, पर स्तर अलग-अलग होते हैं। रिश्ते बनाने और मजबूत करने के लिए हमे एक दूसर को सहयोग देना पड़ता है। जब ऐसा न हो तो सोचने की जरूरत है कि इसका क्या कारण हो सकता है, क्योंकि इसमें हमारी कमी भी हो सकती है। एक दूसर के कामों में, निर्णय में सहयोग द्वारा हम उस रिश्ते को मान देते हैं, यहां अहं का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। किसी भी व्यक्ित का रिश्तों के प्रति व्यवहार उसके आचरण और व्यक्ितत्व पर निर्भर करता है। सबके चरित्र अलग होते हैं। इसकी बुनियाद बचपन में ही पड़ जाती है। शुरू में बराबर आलोचना सुनने वाले असुरक्षित और उदास प्रवृत्ति के बन जाते हैं, अपने को असमर्थ समझ कर नाखुश रहते हैं। वे किसी दूसर को खुशी या प्यार कैसे दे सकेंगे। जो अपने में विश्वास रखता है और खुद से प्यार करता है, वह जानता है कि रिश्तों को जीवित रखने के लिए किसी के दोषों या कमियों की विवेचना नहीं करनी चाहिए। प्यार से हमारा दिल, दिमाग और आत्मा खुलते हैं, रिश्ते जुड़ते हैं। आज संसार में अविश्वास, नफरत और अहं का बोलबाला है, यही वजह है कि घरों और समाज में हिंसा का फैलाव है। झूठ की जगह सच, आलोचना की जगह प्रशंसा, डर के स्थान पर निर्भयता को जीवन में लाकर ही रिश्तों को एक नया जीवन दिया जा सकता है।

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