क्या है रिलायंस गैस विवाद?
अंबानी बंधुओं (मुकेश और अनिल) की कंपनियों के बीच जिस विवाद की सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई वह मुख्य रूप से कृष्णा-गोदावरी बेसिन से निकलने वाली प्राकृतिक गैस की आपूर्ति, अवधि और कीमत को लेकर...
अंबानी बंधुओं (मुकेश और अनिल) की कंपनियों के बीच जिस विवाद की सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई वह मुख्य रूप से कृष्णा-गोदावरी बेसिन से निकलने वाली प्राकृतिक गैस की आपूर्ति, अवधि और कीमत को लेकर है।
विवाद की जड़ में जून 2005 में रिलायंस समूह के दोनो भाईयों के बीच बंटवारे के समय गैस की कीमत तय करते हुए मां कोकिला बेन की मंजूरी से हुए पारिवारिक समझौते की वैधता को लेकर उठे सवाल हैं। गैस में सरकार ने भी हिस्सेदारी का दावा किया है।
तटीय आंध्र प्रदेश में स्थित कृष्णा-गोदावरी बेसिन को मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज ने हासिल किया था। हाल के वर्षो में एशिया में खोजे गए सबसे बड़े गैस भंडारों में से यह एक है। अनिल धीरुभाई अंबानी समूह पारिवारिक समझौते के आधार पर अपने बिजली संयंत्रों के लिए गैस में हिस्सेदारी चाहता है।
अनिल अंबानी की रिलायंस नेचुरल रिर्सोसेज का पक्ष-
- दोनों भाईयों के बीच हुए कानूनी रूप से बाध्य पारिवारिक समझौते के तहत रिलायंस इंडस्ट्रीज को प्रतिदिन 2.8 करोड़ यूनिट गैस की आपूर्ति 17 वर्षों तक 2.34 डॉलर प्रति यूनिट की दर से करनी है।
- नई नीति के तहत कंपनियों को अपने हिस्से की गैस के विपणन की पूरी स्वतंत्रता हासिल है और वह गैस की बिक्री की कीमत तय कर सकती हैं। सरकार केवल अपने हिस्से की गैस पर शर्तें तय कर सकती है।
- विवाद में सरकार शामिल नहीं है। यह मामला रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज और रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच का है।
- पेट्रोलियम मंत्रालय, संसद और संसद के बाहर कई बार कह चुका है कि ठेकेदार के पास विपणन की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन मामले की सुनवाई के दौरान इसने अपना रुख बदल दिया।
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज का पक्ष
- रिलायंस इंडस्ट्रीज, रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज को गैस की बिक्री तब तक नहीं कर सकती जब तक कि सरकार इसकी मंजूरी न दे। सरकार ने गैस की कीमत 4.2 डॉलर प्रति यूनिट तय की है।
- रिलायंस इंडस्ट्रीज के निदेशक मंडल की मंजूरी के बिना दोनों भाईयों ने निजी हैसियत से गैस समझौते को पूरा किया और इसलिए यह बाध्यकारी नहीं है।
- 2.34 डॉलर प्रति यूनिट की दर एनटीपीसी द्वारा जारी निविदा के आधार पर तय की गई, जो अपने आप में समझौते को बाध्यकारी बनने में विफल है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय का पक्ष-
- भारत में पाए जाने वाला हाइड्रोकार्बन क्षेत्र सरकार की संप्रभु संपत्ति है, इसलिए सरकार के पास इन संपत्तियों की आपूर्ति, अवधि और कीमत तय करने का पूरा अधिकार है।
- अंबानी बंधुओं के बीच समझौते को अमान्य घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि यह भारतीय कानूनों के प्रतिकूल है।
- मंत्रियों के विशेषाधिकार समूह ने यह स्पष्ट किया है कि किस सेक्टर को और किस कीमत पर गैस की बिक्री की जानी चाहिए। इस पर विचार किया जाना चाहिए।