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अंगद के पैर की तरह जम जाते थे लक्ष्मण

गोल पोस्ट के सामने अंगद की तरह पैर जमाकर भारत को ओलंपिक में दो बार सुनहरी कामयाबी दिलाने वाले शंकर लक्ष्मण की गिनती हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में होती है। माना जाता है कि पचास और साठ के दशक...

अंगद के पैर की तरह जम जाते थे लक्ष्मण
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 28 Apr 2010 05:57 PM
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गोल पोस्ट के सामने अंगद की तरह पैर जमाकर भारत को ओलंपिक में दो बार सुनहरी कामयाबी दिलाने वाले शंकर लक्ष्मण की गिनती हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में होती है। माना जाता है कि पचास और साठ के दशक में इस खेल को देश में विशेष दर्जा दिलाने में उनकी अहम भूमिका थी।

वह हॉकी के इतिहास में पहले ऐसे गोलची थे, जिसने किसी अंतरराष्ट्रीय टीम की कप्तानी का गौरव हासिल किया था। लक्ष्मण को याद करते हुए पूर्व ओलंपियन असलम शेर खान ने बुधवार को कहा कि वर्ष 1964 के तोक्यो ओलंपिक में भारत की 1-0 से पाकिस्तान के खिलाफ खिताबी जीत में लक्ष्मण के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके स्तर का गोलची देश को आज तक नहीं मिल सका है।

खान के मुताबिक लक्ष्मण ने उस जमाने में गोल बचाने की भूमिका को नये सिरे से परिभाषित किया और साबित कर दिया कि एक गोलची भी अपने बूते टीम को जीत दिला सकता है। उन्होंने कहा कि मेरे ख्याल में वह देश के पहले ऐसे हॉकी गोलची थे, जिन पर टीम निर्भर रहने लगी थी।

मध्यप्रदेश के इंदौर से सटे महू में सात जुलाई, 1933 को जन्मे लक्ष्मण ने अपनी सफलता की इबारत उस दौर में लिखी, जब गोलची न तो छाती ढंकने वाला गार्ड पहनता था, न ही सिर बचाने के लिये हेलमेट। उसके पास रक्षा कवच के नाम पर होते थे तो सिर्फ मामूली पैड्स और हॉकी स्टिक। भारतीय टीम के पूर्व गोलची मीर रंजन नेगी हॉकी में लक्ष्मण को अपना प्रेरणा पुंज बताते हैं।

फिल्म चक दे इंडिया से सुर्खियों में आये नेगी ने कहा कि दादा [लक्ष्मण] निडरता का दूसरा नाम थे। वह करामाती तौर पर शरीर के अलग-अलग हिस्सों से गोल रोकते थे, यहां तक कि अपने सिर से भी। तोक्यो ओलंपिक [1964] से पहले लक्ष्मण मेलबर्न [1956] और रोम [1960] में आयोजित ओलंपिक में भी अपने खेल के जौहर दिखा चुके थे। तीनों खिताबी मुकाबलों में खास बात यह भी थी कि इनमें भारत का मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान से था। इनमें भारत को दो बार स्वर्ण और एक बार रजत पदक हासिल हुआ।
भारत के जुझारु गोलची का पैर उनके जीवन की संध्या बेला में गैंगरीन का शिकार हो गया था। डाक्टरों की सलाह थी कि इसे कटवा लिया जाये, ताकि बीमारी शरीर में फैल न सके। मगर उन्होंने इस सलाह को ठुकरा दिया था और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से अपने पैर का ईलाज जारी रखा था। 29 अप्रैल 2006 को अपनी जन्मस्थली महू में लक्ष्मण ने आखिरी सांस ली थी।

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