दो टूक
आज के दिन कृपया प्रेम न करं! न देश से, न इंसान से, न जानवर से, न किसी चीज से! करना तो दूर, उसकी बात तक न करं। किसी का फोन आए तो काट दें। कोई फूल दे तो नजरें फेर लें। संस्कृति के तथाकथित रखवाले ऐसा ही...
आज के दिन कृपया प्रेम न करं! न देश से, न इंसान से, न जानवर से, न किसी चीज से! करना तो दूर, उसकी बात तक न करं। किसी का फोन आए तो काट दें। कोई फूल दे तो नजरें फेर लें। संस्कृति के तथाकथित रखवाले ऐसा ही तो चाहते हैं। क्या ट्रेाडी है! लोगों को प्रेम से बचना होगा ताकि कल सुबह इन पन्नों पर कोई अप्रिय समाचार न पढ़ना पढ़े। उन्हें याद रखना होगा कि हम एक खास समाज में रहते है। जिसमें हिंसा जायज है, प्रेम नाजायज है और शादी सजा है। मंगलौर की घटना बता रही है कि प्रेम करने के बाद प्रेमियों के साथ क्या होता है। लेकिन कई सवाल सामने हैं। क्या हम लकीर के फकीरों से डर जाएंगे? क्या दो-तिहाई युवा आबादी वाले मुल्क को चंद अतीतजीवी हांकेंगे? क्या एक फोबिया को कल्चर की हिफाजत की गलतफहमी में रहने दिया जाए? क्या उनके फरमानों को चुपचाप निबाहा जाए?