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कभी गोविंदाचार्य भी थे नक्सली आंदोलन का हिस्सा

कभी नक्सलवादी आंदोलन में सक्रिय रहे प्रख्यात विचारक एवं पूर्व भाजपा नेता के एन गोविंदाचार्य का मानना है कि आज के नक्सल आंदोलन में भटकाव आ गया है और नक्सली अपने उद्देश्य हासिल करने के लिए हिंसा के बल...

कभी गोविंदाचार्य भी थे नक्सली आंदोलन का हिस्सा
एजेंसीFri, 23 Apr 2010 05:32 PM
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कभी नक्सलवादी आंदोलन में सक्रिय रहे प्रख्यात विचारक एवं पूर्व भाजपा नेता के एन गोविंदाचार्य का मानना है कि आज के नक्सल आंदोलन में भटकाव आ गया है और नक्सली अपने उद्देश्य हासिल करने के लिए हिंसा के बल पर कभी सफल नहीं हो सकते और न ही सरकार बंदूक के बल पर उन पर काबू कर सकती है।

गोविंदाचार्य ने माना है कि नक्सल आंदोलन से जुड़े होने के दौरान वह कई बार पुलिस मुठभेड़ में भी शामिल रहे हैं। लेकिन गोविंदाचार्य का साफ तौर पर मानना है कि नक्सल आंदोलन को माओवादी न तो हिंसा के बल पर सफल बना सकते हैं और न ही सरकार इन्हें बंदूक के बल पर अपने काबू में कर सकती है।

उन्होंने माना कि वर्तमान में नक्सलियों के उद्देश्य में भटकाव आया है और सरकार से अपनी बात मनवाने का इनका तरीका भी बदला है। उन्होंने कहा कि अब हिंसा इस आंदोलन का आधार बनता जा रहा है, लेकिन इसके लिए उन्होंने सरकार की विफल नीतियों को जिम्मेदार माना।

गोविंदाचार्य ने कहा कि एक तरफ जहां सरकार और माओवादियों के बीच विश्वास और संवाद में कमी आई है, वहीं राजनैतिक अवसरवाद के दायरे का भी व्यापक प्रसार हुआ है। माओवादी नेताओं द्वारा सरकार के साथ संवाद कायम करने में आनाकानी करने के मुद्दे पर गोविंदाचार्य ने कहा कि सरकार द्वारा कई बार ठगे जाने और उनकी मुख्य समस्याओं को नजरअंदाज किए जाने के चलते वह बंदूक की भाषा बोलने पर मजबूर हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने जोड़ा कि वह माओवादी हिंसा का कभी समर्थन नहीं करते।

यह पूछे जाने पर कि क्या जिस समय वह नक्सल आंदोलन से जुड़े थे और अभी के, नक्सली आंदोलन में कोई विशेष बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि माओवादी नेताओं में अब मनी एंड पावर की महत्वाकांक्षा प्रबल होने लगी है और इसका कारण पूरी तरह से राजनीतिक नेता हैं जो अपने-अपने व्यक्तिगत राजनीतिक हितों को साधने के लिए इन माओवादियों का इस्तेमाल करते हैं और स्वार्थ की पूर्ति होते ही इन्हें नक्सल उग्रवादी कहने से भी परहेज नहीं करते।

गोविंदाचार्य ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा और बारुद के बल पर माओवादी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते, लेकिन अगर सरकार को इस समस्या को सुलझाना है तो उसे भी बल प्रयोग से सफलता की उम्मीद छोड़ देनी होगी।

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