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प्रख्यात कथाकार अमरकांत को व्यास सम्मान

के.के. बिरला फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले प्रतिष्ठित व्यास सम्मान के लिए इस बार प्रख्यात लेखक अमरकांत को चुना गया है। उन्हें यह सम्मान उनके उपन्यास ‘इन्ही हथियारों से’ (2003) के लिए दिया...

प्रख्यात कथाकार अमरकांत को व्यास सम्मान
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 18 Mar 2010 12:54 AM
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के.के. बिरला फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले प्रतिष्ठित व्यास सम्मान के लिए इस बार प्रख्यात लेखक अमरकांत को चुना गया है। उन्हें यह सम्मान उनके उपन्यास ‘इन्ही हथियारों से’ (2003) के लिए दिया जाएगा। अमरकांत को वर्ष 2009 के लिए इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इसके तहत ढाई लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती है।                  

प्रतिष्ठित व्यास सम्मान के लिए चुने गए हिन्दी के यशस्वी कथाकार अमरकांत ‘नयी कहानी’ के कथाकारों में अलग और विशिष्ट हैं। उनके कहानीकार-व्यक्तित्व के निर्माण में प्रगतिशील लेखक संघ, ‘कहानी’ पत्रिका और भैरव प्रसाद गुप्त का प्रमुख योगदान है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के नगरा, भगदलपुरद्ध गांव में 1 जुलाई, 1925 को जन्मे अमरकांत की आरम्भिक शिक्षा गांव में हुई। इण्टरमीडिएट की पढ़ाई के लिए ये पहले गोरखपुर गये और बाद में इलाहाबाद। 1942  के आन्दोलन में उन्होंने हिस्सा लिया था और इस आन्दोलन से प्रभावित होकर अमरकांत ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी।

1946 में जब आजादी का मिलना एक प्रकार से निश्चित हो गया, अमरकांत ने फिर से पढ़ाई शुरू की। उनके लिए देश की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण थी। 1946 में इण्टरमीडिएट की पढ़ाई उन्होंने इलाहाबाद से की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही बीए किया।
 
अमरकांत ने नौकरी पत्रकारिता से आरम्भ की। आगरा से प्रकाशित दैनिक पत्र ‘सैनिक’ में उन्होंने कार्य किया। आगरा के बाद अमरकांत का कर्मस्थल इलाहाबाद हुआ। वे इलाहाबाद के दैनिक पत्र ‘अमृत पत्रिका’ के सम्पादकीय विभाग में आये। पत्रकारिता का अनुशासन अनुभव वर्षो बाद उनके कहानीकार बनने में काम आया।

1949 में ‘सैनिक’ के एक विशेषांक में उनकी पहली कहानी ‘बाबू’ प्रकाशित हुई थी और एक प्रमुख कहानी ‘दोपहर का भोजन’ 1955 के ‘कहानी’ विशेषांक में प्रकाशित हुई। अब तक उनके आठ कहानी-संग्रह, दस उपन्यास, तीन बाल साहित्य, तीन प्रौढ़ साहित्य और सम्पूर्ण कहानियां दो खण्डों में प्रकाशित हैं।  
 
‘इन्हीं हथियारों से’ उपन्यास में 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ से लेकर 1947 की राजनीतिक आजादी तक का बलिया जनपद का समय वर्णित है। उपन्यास के प्रमुख पात्र सुरंजनशास्त्री के विचार उपन्यास में चमकते हैं: ‘हम ऐसा जनतंत्र चाहते हैं, जिसमें सभी परिश्रम करें और एक दूसरे की स्वतंत्रता, एक दूसरे के विकास के लिए कार्य करें।’

अगर एक ओर गांधी के विचारों से प्रभावित पात्र नीलेश हैं, तो दूसरी ओर गांधी के आलोचक गोपाल राय हैं। उपन्यास में नेहरू, जयप्रकाश, सुभाष, लोहिया की बार-बार चर्चा है। उपन्यासकार ने सभी विचारधाराओं वाले पात्रों को प्रस्तुत किया है, पर वह स्वयं गांधी विचारधारा के समीप हैं।

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