न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले पर विधेयक टला
चार दशक पुराने न्यायाधीश जांच कानून को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के दुराचरण की शिकायतों से निपटने का तंत्र स्थापित करने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक पर...
चार दशक पुराने न्यायाधीश जांच कानून को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के दुराचरण की शिकायतों से निपटने का तंत्र स्थापित करने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक पर कैबिनेट ने फैसला टाल दिया।
सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में न्यायिक मानदंड एवं जवाबदेही विधेयक 2010 पर चर्चा की गई लेकिन इसे लेकर फैसला टाल दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने का प्रावधान करने वाले इस विधेयक में दशकों पुराने न्यायाधीश जांच कानून, 1968 को निरस्त करने का भी उल्लेख है।
विधेयक में आम आदमी को किसी न्यायाधीश के कथित दुराचरण के खिलाफ शिकायत करने की अनुमति प्रदान की गई है, लेकिन शिकायत करने वाले व्यक्ति को शिकायत में ही अपनी सूचना के स्रोत का खुलासा करना होगा ।
हालांकि दोषी पाए गए न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करने या नहीं करने का अंतिम फैसला सरकार पर निर्भर करेगा। कानून मंत्रालय द्वारा तैयार इस विधेयक में न्यायाधीशों पर संसद के किसी सदन में महाभियोग से पहले उनके खिलाफ आरोपों की जांच के लिए कई समितियों के गठन का प्रावधान है।
विधेयक के प्रावधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की एक जांच समिति होगी तो 21 उच्च न्यायालयों के लिए अन्य समितियां काम करेंगी। विधेयक में राष्ट्रीय न्यायिक पर्यवेक्षण समिति बनाने का प्रावधान है, जिसकी अध्यक्षता उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी राज्यसभा का सभापति होने के नाते करेंगे। समिति में प्रतिष्ठित न्यायाधीश बतौर सदस्य शामिल होंगे और यह समिति कार्यरत न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतें हासिल करेगी। विधेयक में न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता या कुछ अन्य दिशानिर्देशों का भी प्रावधान है।