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पैरों के निशान दिखे, शेर नहीं

घने जंगलों के बीच पक्षियों का मधुर संगीत सुनना और जानवरों की चहलकदमी देखनी हो तो एक बार जिम कॉर्बेट अवश्य जाएं। जिम कार्बेट देश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय पार्क है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को...

पैरों के निशान दिखे, शेर नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 11 Mar 2010 12:10 PM
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घने जंगलों के बीच पक्षियों का मधुर संगीत सुनना और जानवरों की चहलकदमी देखनी हो तो एक बार जिम कॉर्बेट अवश्य जाएं। जिम कार्बेट देश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय पार्क है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को अपना दीवाना बना देता है। पार्क 1318.54 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। अंग्रेजी शासन से पहले यह स्थानीय शासकों की प्राइवेट प्रॉपर्टी था। मैंने इसके बारे में न जाने कितनी बार किताबों में पढ़ा था, लेकिन कभी देखने का मौका नहीं मिला। इस बार मुझे अपने दोस्तों के साथ यहां जाने का अवसर मिला तो एक नया अनुभव हुआ।

तय कार्यक्रम के अनुसार हम रिजॉर्ट से सुबह 5.45 बजे निकले। पार्क के गेट पर लगभग 50 जिप्सी पर्यटकों को सफारी पर ले जाने के लिए तैयार थीं। पार्क के अंदर बिना पहचान पत्र के जाना मना है। आपके पास कोई पहचान पत्र होना जरूरी है। लगभग आधे घंटे की जांच प्रक्रिया के बाद हम आगे बढ़े। जंगल में प्रवेश करते ही अचानक ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। पूछने पर उसने जमीन दिखाते हुए कहा कि देखिए यहां शेर आया था। गाइड ने हमें शेर के पैरों के निशान दिखाए। यह पूछे जाने पर कि ये निशान शेर के हैं या फिर शेरनी के तो उसने बताया कि शेरनी के। उसने बताया कि शेरनी के पंजे के निशान पांच पैसे के सिक्के की तरह तथा शेर के 10 पैसे के पुराने सिक्के की तरह होते हैं। एक किमी आगे बढ़ने पर हिरण का एक झुंड दिखाई दिया। ड्राइवर ने गाड़ी का इंजन बंद कर दिया। हिरण अपनी मस्ती में घास खा रहे थे और छोटे-छोटे हिरण अठखेलियां कर रहे थे। हमने उनके कई फोटोग्राफ लिए। थोड़ा और आगे बढ़ने पर एक मदमस्त हाथी दिखाई दिया। हम गाड़ी में बैठ कर उसके करतब देख रहे थे, तभी वह अचानक जिप्सी के सामने आकर खड़ा हो गया। ड्राइवर ने बिना देर किए गाड़ी को बैक कर दूसरे रास्ते पर दौड़ा दी। उसने बताया कि हाथी के दोनों कान एकदम तन गए थे, वह बहुत गुस्से में था और उस समय कुछ भी कर सकता था।

पर नहीं दिखा शेर

आपको पता है कि शेर अपने नाखून काटते हैं? हमने यहां शेरों के नेल कटर देखे। जंगल के मजबूत पेड़ शेरों के नेल कटर होते हैं, जिससे वे अपने नाखून काटते हैं। पेड़ों पर शेरों के नाखूनों के निशान आसानी से देखे जा सकते हैं। हमने पार्क में शेर के पैरों के निशान देखे, दहाड़ सुनी, लेकिन वह हमें कहीं दिखाई नहीं दिया। वैसे भी देश में इस समय मात्र 1,411 टाइगर ही बचे हैं। सरकार और निजी संस्थाएं सेव टाइगर अभियान भी चला रहे हैं। 

लोक संगीत का आनंद

रिजॉर्ट्स में ठहरने पर आप स्थानीय लोक संगीत का भी लुत्फ ले सकते हैं। अगर आपको पहाड़ी नृत्य नहीं आता तो भी लोक कलाकार आपको अपने संगीत पर डांस करना सिखा देंगे। हम कार्बेट हाइडवे रिजॉर्ट में रुके थे। यह यहां का सबसे अच्छा रिजॉर्ट है। यहां हमने लोक संगीत और रिवर क्रिकेट का भी आनंद लिया। रात 10 बजे तक बोन फायर के सामने बैठ गप्पें लड़ाते रहे। यहां शांति तो है ही,  मस्ती भी कम नहीं।

क्या रखें ध्यान

आप जब कभी जिम कार्बेट पार्क घूमने के लिए जाएं तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें।

. जंगल के नियमों का पालन करें, जो कि आपको आपका गाइड बताता है। वहां पर बताए गए दिशा-निर्देशों का अवश्य पालन करें।

. जिम कार्बेट में घूमने के दौरान हरे या ब्राउन रंग के कपड़े पहनें। इससे जानवर कम डिस्टर्ब होते हैं।

. पार्क में भ्रमण के दौरान परफ्यूम का इस्तेमाल न करें और न ही धूम्रपान करें। इससे जानवर प्रभावित हो सकते हैं।

. जानवर सबसे अधिक आदमियों की आवाज से डरते हैं, इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका टूर अच्छा बना रहे तो जंगल में शोर न करें, न ही अपनी गाड़ी का हॉर्न बजाएं।

. जंगल के अंदर किसी भी तरह की गंदगी न फैलाएं। इससे जंगली जानवरों को लगता है कि यहां इंसानों की बस्ती है और वे उस जगह से दूर रहने की कोशिश करने लगते हैं।

 ऐसे में उनको देखने की लालसा लिए जंगल में आने वाले लोगों को निराश होना पड़ सकता है और यात्रा बेकार हो सकती है।

कैसे पहुंचे

जिम कार्बेट दिल्ली से 270 किलोमीटर दूर है। अगर आप सड़क मार्ग से जाएं तो दिल्ली-हापुड़ बाईपास और गजरौला-मुरादाबाद बाईपास से चल कर रामपुर-काशीपुर होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। यहां के लिए सीधी बसें हैं। अगर आप ट्रेन से यहां पहुंचना चाहते हैं तो दिल्ली से रामनगर के लिए 5013 रानीखेत एक्सप्रेस पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से रात 10.45 बजे चलती है, जो अगले दिन सुबह 5 बजे यहां पहुंच जाती है। इसके बाद लोकल साधनों से आप गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। वापसी के लिए रामनगर से 5014 रानीखेत एक्सप्रेस 9.15 बजे चलती है, जो पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सुबह 5 बजे पहुंचती है।

कब जाएं 

आप गर्मियों में अपना कार्यक्रम बना रहे हैं तो सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तक होता है। इस समय आप हाथियों को झुंड में देख सकते हैं। सर्दियों में अक्तूबर से मार्च तक का समय बेहतर है। यह मौसम बर्ड वॉचिंग के लिए सबसे अच्छा होता है।

कहां ठहरें :

यहां ठहरने के लिए कई रिजॉर्ट हैं। कुछ साधारण तो कुछ आधुनिक सुख-सुविधाओं से सुसज्जित। यहां कई छोटे-बड़े रिजॉर्ट हैं, जहां एक रात के लिए 500 रुपए से लेकर 10000 रु. खर्च करने पड़ेंगे।

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