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Hindi Newsडायरेक्टर ने मारा था राजकपूर को थप्पड़, ऐसे हुई थी शोमैन के करियर की शुरुआत

डायरेक्टर ने मारा था राजकपूर को थप्पड़, ऐसे हुई थी शोमैन के करियर की शुरुआत

भारतीय सिनेमा को एक से बढ़कर एक नायाब फिल्में देने वाले पहले शोमैन राजकपूर बचपन के दिनों से अभिनेता बनना चाहते थे और इसके लिए उन्हें न सिर्फ क्लैपर ब्वॉय बनना पड़ा बल्कि किदार का थप्पड़ भी खाना पड़ा

लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 14 Dec 2016 10:24 AM

भारतीय सिनेमा को एक से बढ़कर एक नायाब फिल्में देने वाले पहले शोमैन राजकपूर बचपन के दिनों से अभिनेता बनना चाहते थे और इसके लिए उन्हें न सिर्फ क्लैपर ब्वॉय बनना पड़ा बल्कि किदार का थप्पड़ भी खाना पड़ा था।
             
14 दिसंबर 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे राजकपूर जब मैट्रिक की परीक्षा में एक विषय में फेल हो गए तब अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से उन्होंने कहा, 'मैं पढ़ना नहीं चाहता और मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूं। मैं एक्टर बनना चाहता हूं। फिल्मे बनाना चाहता हूं।'

बेहद दिलचस्प है नीलकमल में काम करने का किस्सा
राजकपूर की बात सुनकर पृथ्वीराज कपूर की आंख खुशी से चमक उठी। राजकपूर ने अपने करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकार साल 1935 में रिलीज फिल्म 'इंकलाब' से की। बतौर एक्टर 1947 में प्रदर्शित फिल्म 'नीलकमल' उनकी पहली फिल्म थी। राज कपूर का फिल्म 'नीलकमल' में काम करने का किस्सा काफी दिलचस्प है।
              
पृथ्वीराज कपूर ने अपने बेटे राज को केदार शर्मा की यूनिट में क्लैपर ब्वॉय के रूप में काम करने की सलाह दी। फिल्म की शूटिंग के समय वो अक्सर आइने के पास चले जाते थे और अपने बालों में कंघी करने लगते थे। क्लैप देते समय इस कोशिश में रहते कि किसी तरह उनका भी चेहरा कैमरे के सामने आ जाये।

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एक थप्पड़ ने दिलवा दी थी 'नीलकमल'

एक बार फिल्म 'विषकन्या' की शूटिंग के दौरान राजकपूर का चेहरा कैमरे के सामने आ गया और हड़बड़ाहट में चरित्र अभिनेता की दाढ़ी क्लैप बोर्ड में उलझकर निकल गई। बताया जाता है केदार शर्मा ने राजकपूर को अपने पास बुलाकर जोर का थप्पड़ लगाया। हालांकि केदार को इसका अफसोस रात भर रहा। अगले दिन उन्होंने अपनी नई फिल्म 'नीलकमल' के लिए राजकपूर को साइन कर लिया।
       
राजकपूर फिल्मों में अभिनय के साथ ही कुछ और भी करना चाहते थे। साल 1948 में आर.के.फिल्म्स की स्थापना कर 'आग' का निमार्ण किया। साल 1952 में प्रदर्शित फिल्म 'आवारा' राजकपूर के सिने करियर की अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म की सफलता ने राजकपूर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। फिल्म का शीर्षक गीत 'आवारा हूं या गर्दिश में आसमान का तारा हूं' देश-विदेश में बहुत लोकप्रिय हुआ।

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नरगिस के साथ बेहद पसंद की गई जोड़ी

राजकपूर के सिने करियर में उनकी जोड़ी एक्ट्रेस नरगिस के साथ काफी पसंद की गयी। दोनों की जोड़ी सबसे पहले साल 1948 में रिलीज फिल्म 'बरसात' में नजर आयी। इसके बाद 'अंदाज', 'जान पहचान', 'आवारा', 'अनहोनी', 'आशियाना', 'अंबर', 'आह', 'धुन', 'पापी', 'श्री 420', 'जागते रहो' और 'चोरी चोरी' जैसी कई फिल्मों में भी दोनों कलाकारों ने एक साथ काम किया।
      
'श्री 420' फिल्म में बारिश में एक छाते के नीचे फिल्माये गीत 'प्यार हुआ इकरार हुआ' में नरगिस और राजकपूर के रोमांटिक सीन को दर्शक शायद ही कभी भूल पायें।
           
राज कपूर ने अपनी बनाई फिल्मों के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका दिया। इनमें संगीतकार शंकर जयकिशन गीतकार हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र और पार्श्वगायक मुकेश जैसे बड़े नाम शामिल है। साल 1949 में राजकपूर की निर्मित फिल्म 'बरसात' के जरिये राजकपूर ने गीतकार के रूप में शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी और संगीतकार के तौर पर शंकर जयकिशन ने अपने करियर की शुरुआत की थी।

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'मेरा नाम जोकर' हुई फ्लॉप तो शोमैन को लगा था सदमा

'मेरा नाम जोकर' का निमार्ण किया जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गयी। अपनी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' की असफलता से राजकपूर को गहरा सदमा पहुंचा। उन्हें काफी आर्थिक क्षति भी हुई। उन्होंने निश्चय किया कि भविष्य में यदि वह फिल्म का निमार्ण करेगे तो मुख्य अभिनेता के रूप में काम नहीं करेगे।
              
मुकेश को यदि राजकपूर की आवाज कहा जाये तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुकेश ने राजकपूर अभिनीत सभी फिल्मों में उनके लिए पार्श्वगायन किया। मुकेश की मौत के बाद राजकपूर ने कहा था 'लगता है मेरी आवाज ही चली गयी है।'

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करियर में मिला खूब सम्मान

राजकपूर को अपने सिने करियर में मान सम्मान खूब मिला। साल 1971 में राजकपूर पद्मभूषण पुरस्कार और साल 1987 में हिंदी फिल्म जगत के सवोर्च्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किये गए। बतौर अभिनेता उन्हें दो बार जबकि बतौर निर्देशक उन्हें चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
        
साल 1985 में राजकपूर निर्देशित अंतिम फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' रिलीज हुई। इसके बाद राजकपूर अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म 'हिना' के निमार्ण में व्यस्त हो गए लेकिन उनका सपना साकार नहीं हुआ और 2 जून 1988 को वो इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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