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भोपाल गैस त्रासदी के 32 साल: 3787 मौतें, हज़ारों बीमार और 10 गुना कैंसर

भोपाल गैस त्रासदी के 32 साल... 2 दिसंबर की काली रात भारत और दुनिया के इतिहास में हजारों मौतों और बीमारियों के एक लंबे सिलसिले की शुरुआत के बतौर याद की जाती है। ऐसी रात जब भोपाल स्थित यूनियन क

लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 02 Dec 2016 07:22 AM

भोपाल गैस त्रासदी के 32 साल...

2 दिसंबर की काली रात भारत और दुनिया के इतिहास में हजारों मौतों और बीमारियों के एक लंबे सिलसिले की शुरुआत के बतौर याद की जाती है। ऐसी रात जब भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट से टनों मिथाइल आइसोसाइनेट(एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ जिसने हज़ारों को मौत की नींद सुला दिया। दम घुटने और हार्ट अटैक से हजारों मौतें हुई और कितने ही लोग आज भी सांस की बीमारियों, अंधेपन और कैंसर से जूझ रहे हैं। 

क्या था मामला
2 दिसंबर 1984 को भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात गैस त्रासदी हुई। यूनियन कार्बाइड कारखाने के 610 नंबर के टैंक में खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनाइट रसायन था। टैंक में पानी पहुंच गया। तापमान 200 डिग्री तक पहुंच गया। धमाके के साथ टैंक का सेफ्टी वाल्व उड़ गया। उस समय 42 टन जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3,787 की मौत हुई। कई एनजीओ का दावा है कि मौत का आंकड़ा 10 से 15 हजार के बीच था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही गैस से करीब 5,58,125 लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से करीब 4000 लोग ऐसे थे जो गैस के प्रभाव से परमानेंट डिसेबल हो गए थे जबकि 38,478 को सांस से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। 


कैसे हुआ हादसा
असल में सरकार और NGO के बीच में हादसा होने की वजहों पर काफी मतभेद रहे हैं। गैर सरकारी संस्थाओं का आरोप है कि कंपनी घाटे में थी जिसकी वजह से उत्पादन पर जोर था और कई मशीनें पुरानी हो चुकी थीं। अगर कंपनी का प्रशासन जिम्मेदार और संवेदनशील होता, तो वह इस जहरीली गैस के सच को स्वीकार करते हुए हादसों की आशंका को भांपकर गंभीर और ठोस कदम उठाता लेकिन कई बार संकेत मिलने के बावजूद किसी ने कुछ नहीं किया। उस दिन संयंत्र में फैक्ट्री का सबसे लोकप्रिय कर्मचारी 32 वर्षीय अशरफ था। अशरफ ही मिथाइल आइसोसाइनाइट का सबसे पहला शिकार बना था। उसकी मौत के बाद भी किसी फैक्ट्री एडमिनिस्ट्रेशन के किसी आदमी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

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अशरफ की मौत से नहीं लिया सबक

अशरफ कंपनी के सबसे भरोसेमंद तकनीशियनों में से एक था। उस दिन हमेशा की तरह ही अशरफ को संयंत्र के कुछ जोड़ अलग कर रहा था। लेकिन जब वह एक नया जोड़ लगा रहा था, तब उसने अपने मास्क से देखा कि पाइप के ऊपरी सिरे से थोड़ी-सी तरल फॉसजीन बाहर निकल रही है। कुछ बूंदें उसके स्वेटर पर गिर पड़ीं। खतरा भांपकर वह अपने कपड़ों पर तेजी से पानी डालने के इरादे से तेजी से एक शॉवर केबिन में घुस गया। गैस की बूंदों का असर पानी की तेज धार से खत्म होने तक का इंतजार करने के बजाया उसने अपना मास्क उतार दिया। तुरंत उसके स्वेटर की ऊन में फंसी फॉसजीन की बूंदे उसके सीने की गरमी से भाप बनकर उसके नथुनों में घुस गईं। उस समय उसे ज्यादा परेशानी महसूस नहीं हुई। सिर्फ आंखो और गले में हल्की जलन महसूस हुई, वह भी तेजी से गायब हो गई। 
यही थी अशरफ की सबसे बड़ी गलती

अशरफ को ये पता ही नहीं था कि फॉसजीन मैकेवली के सिद्धांत की तरह छुपकर अपने शिकार की जान लेती है। पहले तो वह उसमें उल्लास का एक ज्वर पैदा कर देती है। अशरफ की पत्नी साजदा के मुताबिक वो उस दिन बेहद खुश था और ये उस गैस का असर था। हालांकि कुछ ही घंटों में उसके फेफड़ों में मानों उफान आने लगा। साजदा कहती है कि लेकिन फिर वह अचानक गिर पड़ा। उसके फेफड़ों में मानों उफान आने लगा। वह खून मिले पारदर्शी पदार्थ की उल्टियां कर रहा था। घबराकर साजदा ने फैक्टरी में खबर की। 

उसे हमीदिया अस्पताल में कार्बाइड की ओर से ही बनाए गए गहन चिकित्सा कक्ष में उसे ले जाया गया। ऑक्सीजन दी गई। लेकिन उसकी पीड़ा बढ़ती गई। साजदा को अपने ससुराल वालों में से कुछ को धक्का देकर ही पति के पास जाने का मौका मिला। उसने बताया कि अशरफ चादर की तरह सफेद हो गया था। जब उसे होश आया उसने मुस्कराने की कोशिश करते हुए उसने पूछा बेटा मछली पकडऩे के लिए एक यात्रा की कल्पना तुम कैसे कर सकते हो? लेकिन उसकी इस कोशिश ने खांसी का जबरदस्त दौरा शुरू कर दिया। उसके बाद वह थोड़ी देर छटपटाया और मौत के आगोश में चला गया। 

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कौन था इस पूरी घटना का सबसे बड़ा आरोपी

भोपाल गैस त्रासदी के सबसे बड़े आरोपी 92 वर्षीय एंडरसन की मौत 29 सितंबर को अमेरिका के फ्लोरिडा में गुमनामी में हो गई। यहां तक कि उसके परिवार को भी मौत की खबर नहीं दी गई थी। बता दें कि एक अस्पताल से मिले सरकारी रिकॉर्ड से इसकी पुष्टि हुई थी। दिसंबर 1984 में हुआ भोपाल गैस कांड दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी थी। उस वक्त एंडरसन यूनियन कार्बाइड का प्रमुख था। उसे घटना के चार दिन बाद गिरफ्तार किया गया था। लेकिन जमानत मिलने के बाद वह छुपकर अमेरिका लौट गया। फिर कभी भारतीय कानूनों के शिकंजे में नहीं आया। उसे भगोड़ा घोषित किया गया। अमेरिका से प्रत्यर्पण के प्रयास भी हुए। लेकिन कोशिशें नाकाम रहीं। 


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भोपाल गैस पीड़ितों को 10 गुना कैंसर

बता दें कि हाल ही में संभावना ट्रस्ट द्वारा कराये गये शोध के प्रारंभिक नतीजों में सामने आया है कि भोपाल गैस पीड़ितों के इलाके में शहर के अन्य इलाकों की तुलना में 10 गुना ज्यादा कैंसर से पीड़ित हैं। भोपाल के गैस पीड़ित 32 साल पहले हुए भोपाल गैस हादसे के विरोध में 3 दिसंबर को अमरीका का झंडा जलायेंगे।

संभावना ट्रस्ट द्वारा कराये गये शोध से पता चला है कि भोपाल गैस पीड़ितों की बस्ती में रहने वालों को दूसरे इलाकों में रहने वालों की तुलना में किडनी, गले तथा पेफड़े का कैंसर 10 गुना ज्यादा है। इतना ही नहीं भोपाल गैस पीड़ितों की बस्ती में टीबी तथा पक्षाघात भी तेजी से पनप रहा है। उल्लेखनीय है 2-3 दिसंबर 1984 दी दरम्यानी रात को भोपाल के यूनियन कार्बाइट फैक्ट्री से ‘मिक’ गैस का रिसाव हुआ था।

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