क्या दिल्ली-NCR में हटेगा पटाखों से बैन? जानिए सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ
दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर स्थायी प्रतिबंध हटाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुक्रवार तक टल गई है, क्योंकि केंद्र सरकार ने पटाखा उद्योग के रोजगार और नागरिकों के स्वच्छ हवा के अधिकार के बीच संतुलन बनाने के लिए और समय मांगा है।

दिल्ली और NCR में पटाखों पर लगे स्थायी प्रतिबंध को हटाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ने नया मोड़ ले लिया है। केंद्र सरकार ने बुधवार को कोर्ट से और समय मांगा ताकि पटाखा निर्माताओं के हित और नागरिकों के स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाया जा सके। अब इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी। दीवाली नजदीक होने के कारण यह मामला और भी रोचक हो गया है।
दीवाली से पहले पटाखा निर्माताओं को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को एक अहम फैसला सुनाते हुए वैध सर्टिफिकेशन वाले निर्माताओं को NCR में ग्रीन पटाखों का उत्पादन शुरू करने की अनुमति दी थी। लेकिन, शर्त यह थी कि इन पटाखों की बिक्री दिल्ली-NCR में नहीं हो सकती। यह फैसला दीवाली से पहले पटाखा उद्योग के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया, लेकिन बिक्री पर प्रतिबंध ने इस खुशी को आधा-अधूरा छोड़ दिया।
सरकार की दुविधा, स्वच्छ हवा या रोजगार?
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "हमें स्वच्छ हवा के अधिकार और पटाखा उद्योग में काम करने वालों के रोजगार के अधिकार के बीच संतुलन ढूंढना होगा। इसके लिए हमें थोड़ा और समय चाहिए।" मेहता ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की ओर से यह बात रखी। चीफ जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने इस प्रस्ताव को सुनने के लिए मामले को शुक्रवार तक के लिए टाल दिया।
सिर्फ पटाखे क्यों निशाने पर?
पटाखा निर्माताओं की ओर से वरिष्ठ वकील बलवीर सिंह ने कोर्ट में तर्क दिया कि दीवाली नजदीक है और इस मामले में जल्दी फैसला जरूरी है। निर्माताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का 3 अप्रैल का आदेश, जिसमें दिल्ली-NCR में पटाखों के निर्माण, भंडारण और बिक्री पर पूरी तरह रोक लगाई गई थी, भेदभावपूर्ण है। उनका तर्क है कि दिल्ली की सर्दियों में प्रदूषण का मुख्य कारण पराली जलाना और वाहनों का प्रदूषण है, न कि पटाखे। उन्होंने कहा, "कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है जो यह साबित करता हो कि पटाखों से प्रदूषण में बड़ी वृद्धि होती है।"
ग्रीन पटाखों का दावा और चुनौतियां
निर्माताओं ने दावा किया कि उनके पास नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) और पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (PESO) से ग्रीन पटाखों के लिए वैध लाइसेंस हैं। NEERI की वेबसाइट के मुताबिक, देश में 1,403 पंजीकृत ग्रीन पटाखा निर्माता हैं, जिनमें से 51 उत्तर प्रदेश, 22 पंजाब और हरियाणा, और 1 दिल्ली में हैं।
लेकिन, कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने 26 सितंबर को अपनी रिपोर्ट में कई खामियां उजागर कीं। CAQM ने बताया कि कुछ पंजीकृत निर्माता अपने QR कोड (पटाखों की पैकिंग पर लगाए गए) गैर-पंजीकृत निर्माताओं को बेच देते हैं। साथ ही, NEERI ने कहा कि ग्रीन पटाखों का सैंपल सिर्फ लाइसेंस देते समय टेस्ट किया जाता है, लेकिन बाजार में बिकने वाले पटाखों की गुणवत्ता की कोई जांच नहीं होती।
सख्त निगरानी की जरूरत
CAQM ने सुझाव दिया कि पटाखों के निर्माण, वितरण और बिक्री पर नजर रखने के लिए एक मजबूत और पारदर्शी तंत्र बनाया जाए। इसके तहत PESO और राज्य प्राधिकरणों को समय-समय पर आकस्मिक निरीक्षण करने और सैंपल इकट्ठा करने की सलाह दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलित दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने कहा था कि पूर्ण प्रतिबंध कोई समाधान नहीं है, जब तक कि इसे लागू करने का कोई ठोस तंत्र न हो। कोर्ट ने बिहार में खनन पर पूरी तरह रोक के उदाहरण का हवाला दिया, जहां प्रतिबंध के बाद अवैध खनन माफिया सक्रिय हो गया था। कोर्ट ने संतुलित दृष्टिकोण की बात कही और MoEFCC से सभी पक्षों को शामिल कर एक ठोस तंत्र प्रस्तावित करने को कहा।




