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'तेज गाड़ी चलाने वालों और स्कूल वैन में भीड़भाड़ पर अदालत की नजर'

दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि तेज गति से वाहन चलाना, स्कूल वैन में क्षमता से अधिक छात्रों को बैठाने पर अदालत की नजर है। अदालत ने टिप्पणी की कि 1997 में हुई दुर्घटना से कोई सबक नहीं सीखा गया जब...

'तेज गाड़ी चलाने वालों और स्कूल वैन में भीड़भाड़ पर अदालत की नजर'
नई दिल्ली | एजेंसीFri, 13 Sep 2019 05:21 PM
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दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि तेज गति से वाहन चलाना, स्कूल वैन में क्षमता से अधिक छात्रों को बैठाने पर अदालत की नजर है। अदालत ने टिप्पणी की कि 1997 में हुई दुर्घटना से कोई सबक नहीं सीखा गया जब वजीराबाद पुल से एक स्कूल बस यमुना नदी में गिर गई थी जिसमें 28 बच्चों की मौत हो गई और 60 जख्मी हो गए थे।

अदालत ने कहा कि बच्चों से भरी स्कूली गाड़ियों को तेज रफ्तार से चलाना अब आम बात हो गई है जबकि उनकी सुरक्षित यात्रा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में दिशानिर्देश बनाए थे।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लॉ ने गुरुवार को पुलिस आयुक्त और दिल्ली के मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि सुप्रीम कोर्ट और 2017 में दिए गए सीबीएसई के निर्देशों का पालन किया जाए। यह अदालत निचली अदालत के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें चालक को लापरवाही से तेज वाहन चलाने में दोषी ठहराया था। तेज गति के कारण चालक का वाहन पर नियंत्रण नहीं रहा और बस 18 नवम्बर 1997 को वजीराबाद पुल से यमुना नदी में गिर गई।

1997 की घटना से कोई सबक नहीं सीखा गया

अदालत ने स्कूल बस के चालक किरण पाल सिंह की अपील खारिज कर दी जिसे 11 सितम्बर 2017 को लापरवाही से तेज वाहन चलाने के लिए दो वर्ष जेल की सजा सुनाई गई थी। सत्र अदालत ने कहा कि लगता है कि 1997 की घटना से कोई सबक नहीं सीखा गया क्योंकि अभी तक काफी कुछ किया जाना है। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने और कुछ दिशानिर्देश तय किए जाने और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा सर्कुलर जारी किए जाने के बावजूद अभी तक काफी कुछ किया जाना बाकी है क्योंकि पुलिस और स्कूल अधिकारियों सहित विभिन्न एजेंसियों द्वारा इन्हें नहीं लागू किया जाना चिंताजनक है।

स्कूल वैनों में ठूंसकर भरे जाते हैं बच्चे

कोर्ट ने कहा कि आज भी स्कूल वैन, ओम्नी में छोटे स्कूली बच्चे ठूंसकर भरे होते हैं और सड़कों पर तेजी से इनका दौड़ना आम बात है। दुर्भाग्य से हम बस इसे नजरअंदाज करते हैं और लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा गया। न्यायाधीश ने मुख्य मामले को वापस निचली अदालत में भेजते हुए निर्देश दिया कि सत्यप्रकाश रोहिला (स्कूल बस के प्रभारी), हरीकिशन (बस मालिक) और संत राम (स्कूल के प्रिंसिपल) के खिलाफ रिकॉर्ड साक्ष्य पर फिर से गौर किया जाए।

अभियोजन के मुताबिक 18 नवम्बर 1997 को सिंह एक चार्टर्ड बस चला रहे थे जिसे स्कूल ने बच्चों को लाने- ले जाने के लिए किराये पर लिया था। स्कूल शिक्षक शिकायतकर्ता तेजपाल गोकुलपुरी में 11 छात्रों के साथ बस में सवार हुए। ये छात्र लुडलो कैसल में एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। बस के अंदर पहले से करीब 30 बच्चे मौजूद थे। इसके बाद बस में कुछ और बच्चे सवार हुए और वाहन में कुल बच्चों की संख्या 100 से 120 के बीच हो गई।

शिकायत के मुताबिक, आग्रह किए जाने के बावजूद सिंह वाहन को तेज और लापरवाही से चला रहे थे और सुबह सात बजकर 20 मिनट पर बस जब वजीराबाद में यमुना पुल पर पहुंची तो फुटपाथ पार करने के बाद वह रेलिंग तोड़ते हुए नदी में गिर गई। चालक ने खुद को दोषी ठहराए जाने और सजा दिए जाने के खिलाफ अपील की और दावा किया कि निचली अदालत अपराध के दोषियों की पहचान करने में विफल रही जिसे जांच अधिकारी ने बचाया जबकि उन पर मुकदमा चला और उन्हें दोषी ठहराया गया। अदालत ने कहा कि यमुना नदी पर तेज गति से भीड़भरी बस को चलाना काफी खतरनाक है और याचिकाकर्ता की लापरवाही काफी बड़ी है।

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