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मनीष सिसोदिया को थाने में देनी होगी हाजिरी, पासपोर्ट कराना होगा जमा लेकिन केजरीवाल वाली बंदिश नहीं

मनीष सिसोदिया को जमानत मिलने के बाद आम आदमी पार्टी में जश्न का माहौल है। पूर्व मुख्यमंत्री 17 महीने बाद जेल से बाहर आएंगे।

मनीष सिसोदिया को थाने में देनी होगी हाजिरी, पासपोर्ट कराना होगा जमा लेकिन केजरीवाल वाली बंदिश नहीं
Aditi Sharmaलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीFri, 09 Aug 2024 11:35 AM
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दिल्ली शराब घोटाले में पिछले 17 महीनों से बंद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदियो को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत देदी है। कोर्ट के इस आदेश के बाद अब मनीष सिसोदिया ठीक 17 महीने बाद जेल से बाहर आ सकेंगे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि  भविष्य में मामले की सुनवाई पूरी होने की संभावना नही है। इस फैसले से एक तरफ जहां आम आदमी पाटी के नेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई तो वहीं ईडी के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। इस बीच कोर्ट ने ईडी की एक और मांग को खारिज कर दिया है। 

दरअसल ईडी ने कोर्ट से मांग की थी कि मनीष सिसोदिया सचिवालय और सीएम कार्यालय जाने की इजाजत ना दी जाए जैसे अरविं केजरीवाल पर प्रतिबंध लगाए गए थे। हालांकि कोर्ट ने ईडी की इस मांग को भी मानने से इनकार कर दिया है। हालांकि उन्हे कुछ नियमों का पालन जरूर करना होगा। जैसे वह गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ करने का कोई प्रयास नहीं करेंगे। वह अपना पासपोर्ट सरेंडर करेंगे और हफ्ते में दो बार सोमवार और गुरुवार को आईओ के समक्ष रिपोर्ट करेंगे। ऐसे में मनीया सिसोदिया पर कुछ नियम जरूर लगाए गए हैं लेकिन उन पर अरविंद केजरीवाल वाली बंदिश नहीं है।  

जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट और फिर हाई कोर्ट जाने के लिए कहना उसे सांप और सीढ़ी का खेल खेलने जैसा होगा। अदालत ने मुकदमा शुरू होने में हुई लंबी देरी और जेल अवधि पहले ही बीत जाने को ध्यान में रखते हुए कहा किसी नागरिक को इधर-उधर दौड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जल्द न्याय की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करता है।

ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को भी सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को भी एक सलाह दी है। कोर्ट ने ट्रायल और हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए जिसमें मनीष सिसोदिया की जमानत खारिज कर दी गई थी, कहा कि अब समय आ गया है कि अदालतों को यह महसूस करना चाहिए कि जमानत नियम है और जेल एक्सेप्शन है। अनुच्छेद 21 अपराध की प्रकृति के बावजूद लागू होता है।