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दिल्ली के अस्पताल में कराते हैं मुफ्त इलाज? आपके लिए काम की है यह खबर

राज्य उपभोक्ता आयोग ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में निशुल्क इलाज कराने वाले मरीज उपभोक्ता नहीं माने जाएंगे। ऐसे मरीज तभी उपभोक्ता की श्रेणी में आएंगे, जब उनसे इलाज के बदले शुल्क लिया गया हो।

दिल्ली के अस्पताल में कराते हैं मुफ्त इलाज? आपके लिए काम की है यह खबर
Sudhir Jhaप्रभात कुमार,नई दिल्लीWed, 10 Aug 2022 08:39 AM

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राज्य उपभोक्ता आयोग ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में निशुल्क इलाज कराने वाले मरीज उपभोक्ता नहीं माने जाएंगे। ऐसे मरीज तभी उपभोक्ता की श्रेणी में आएंगे, जब उनसे इलाज के बदले शुल्क लिया गया हो। आयोग ने दिल्ली सरकार द्वारा संचालित जीटीबी अस्पताल के खिलाफ समय से इलाज नहीं करने की वजह से गर्भ में बच्चे की मौत के बदले मुआवजे की मांग को खारिज करते हुए यह फैसला दिया है।

आयोग की अध्यक्ष जस्टिस संगीता धींगरा सहगल और सदस्य राजन शर्मा की पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा, जहां किसी भी व्यक्ति से शुल्क लिए बगैर सेवा दी जाती है, यह ‘सेवा’माना जाएगा। यदि सरकारी अस्पताल/स्वास्थ्य केंद्र/औषधालय में मरीज से इलाज के बदले शुल्क लेने के बाद इलाज करते हैं तो कानूनन यह सेवा की श्रेणी में आएगा। 

इतना नहीं, आयोग ने अपने फैसले में कहा कि यदि कोई मरीज या उसके रिश्तेदार ने चिकित्सक, अस्पताल या नर्सिंग होम की सेवा का लाभ उठाया है और इलाज के लिए बीमा कंपनी या एक कर्मचारी द्वारा खर्च का वहन किया जाता है, तो यह कानून के तहत सेवा की श्रेणी में आएगा। आयोग ने कहा कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो इस में अस्पताल प्रबंधन ने शिकायतकर्ता से इलाज के लिए कोई शुल्क नहीं लिया। इलाज पूरी तरह से निशुल्क किया गया है।

40 लाख का मुआवजा मांगा था
महिला ने 2018 में आयोग में अस्पताल और इसके डॉक्टरों के खिलाफ याचिका दाखिल कर बच्चे की मौत के बदले 40 लाख रुपये मुआजवा की मांग की थी। साथ ही मानसिक परेशानी के लिए 10 लाख रुपये और 75 हजार रुपये मुकदमा खर्च की मांग की थी।

यह था मामला
शिकायतकर्ता मधुबाला ने कहा था कि 7 दिसंबर, 2015 को वह जीटीबी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाने गई थी। उसे 36 सप्ताह का गर्भ था। डॉक्टर ने कहा कि बच्चा उलटा है, लेकिन सामान्य है और 14 दिसंबर को दोबारा आने को कहा। जब वह 14 दिसंबर को गई तो उसका रक्तचाप बढ़ा हुआ था और उसे भर्ती कर लिया। तीन दिन तक उसे कोई दवा नहीं दी। 17 दिसंबर को बच्चे की धड़कन असामान्य होने पर उसे ऑपरेशन थियेटर ले गए, लेकिन वहां भी दो घंटे तक कुछ नहीं किया। इसके तीन दिन बाद सर्जरी करके गर्भ से मृत बच्चे को निकाला।

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