19 महीने से लंबित काम, मुकदमेबाजी से MCD को नुकसान; एल्डरमैन फैसले को लेकर LG का दिल्ली सरकार पर वार
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने सुप्रीम कोरेट के एल्डरमैन को लेकर दिए फैसले को लेकर सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि बेकार की मुकदमेबाजी के कारण एमसीडी को नुसकान पहुंचा है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर सोमवार को उपराज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार की सलाह के बिना एलजी को एमसीडी में एल्डरमैन को नामित करने का अधिकार है। इस आदेश के तीन दिन बाद एलजी वीके सक्सेना ने बुधवार को उन प्रमुख पैनलों के शीघ्र गठन का आह्वान किया जो डेढ़ साल से अधिक समय से लंबित हैं। सक्सेना ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और उसके मंत्रियों की 'शैडो बॉक्सिंग (लगातार छद्म मुक्केबाजी)' और 'मुकदमेबाजी की प्रकृति के कारण महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाएं ठप्प करने' को लेकर आलोचना की।
आरोपों के जवाब में, आप ने कहा कि एलजी कार्यालय ने 'बार-बार सभी संवैधानिक सीमाओं और मानदंडों का उल्लंघन किया' और आरोप लगाया कि उन्हें अदालत जाने के लिए मजबूर किया गया। आप ने एक बयान में कहा, 'दिल्ली सरकार को अदालत से लगातार राहत मिली है। अगर हम गलत होते, तो अदालतें डीईआरसी मामले या दिल्ली मेयर चुनाव को लेकर हमारे पक्ष में फैसला क्यों सुनातीं?'
सोमवार को जस्टिस नरसिम्हा ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के हवाले से फैसला सुनाते हुए कहा कि एल्डरमैन की नियुक्ति एलजी का 'वैधानिक कर्तव्य' है, जो इस मामले में राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह से बाध्य नहीं हैं। एल्डरमैन की नियुक्ति पर विवाद के कारण प्रमुख समितियां, जैसे स्थायी समिति, वार्ड समिति और अन्य विशेष समितियां अधर में लटकी हुई हैं, जिसकी वजह से नीतिगत मामले अटके हुए हैं।
उपराज्यपाल ने बुधवार को कहा, 'एल्डरमैन की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट रूप से निर्णय दिए जाने के बाद, एमसीडी वैधानिक रूप से जरूरी निकायों और प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए तेजी से कदम उठाएगी, जो पिछले लगभग 19 महीनों से लंबित हैं।' एलजी सचिवालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह चिंता का विषय है कि कानून और संवैधानिक स्थिति स्पष्ट होने के बावजूद दिल्ली सरकार ने बेकार में मुकदमेबाजी में उलझने का फैसला किया, जिससे 'एमसीडी को नुकसान पहुंचा, जो जरूरी काम कर सकती थी, बशर्ते वैधानिक समितियों का समय रहते गठन किया गया होता।'
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