प्रदूषण के घातक प्रभावों से अनजान हैं एमसीडी के कर्मचारी, एक्शन प्लान तक नहीं जानते!
एक अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली नगर निगम के अधिकांश कर्मचारियों को प्रदूषण के जोखिमों के बारे में जानकारी नहीं है। यही नहीं अधिकांश को तो सरकारी एक्शन प्लान के बारे में भी जानकारी नहीं है।

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दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार है, जिसकी वजह हवा में पीएम 2.5 तथा पीएम-10 की मौजूदगी बहुत ज्यादा होना है। इसे कम करने की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की भी है। लेकिन, एक अध्ययन में पता चला है कि एमसीडी के 94.8 फीसदी कर्मचारी वायु प्रदूषण के बारे में तो जानते थे, लेकिन इसको लेकर राष्ट्रीय नीतियों और वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभावों के बारे में कम जानकारी थी। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के तहत वायु प्रदूषण के प्रति जानकारी, जागरूकता और नजरिए को समझने के लिए एमसीडी के विभिन्न पदों पर कार्यरत कर्मचारियों से बातचीत की।
अधिकांश उत्तरदाता (94.8%) 'वायु प्रदूषण' शब्द से तो अवगत थे, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनकैप) और सिटी एक्शन प्लान को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं थी। केवल 72.4 फीसदी इंजीनियर और 53 फीसदी निरीक्षक वायु प्रदूषण से संबंधित राष्ट्रीय नीतियों से अवगत थे। क्लाइमेट ट्रेंड्स और अर्थ रूट फाउंडेशन की साझेदारी में हुए इस अध्ययन में एसडीएमसी और एनडीएमसी क्षेत्रों 'पश्चिम और नजफगढ़ ' को शामिल किया गया था। इसमें पर्यावरण प्रबंधन सेवा विभाग (डीईएमएस), एमसीडी निरीक्षकों और ग्राउंड स्टाफ के तहत काम करने वाले इंजीनियरों को शामिल किया गया था।
उत्तरदाताओं ने बताया कि वाहन प्रदूषण (99%), निर्माण और सड़क की धूल (94%) और पराली जलाना (91.5%) वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन, तकनीकी विवरणों के बारे में पूछे जाने पर एमसीडी के अधिकारी अनभिज्ञ दिखे। शोध से पता चलता है कि पीएम 2.5 प्रदूषण के साथ लंबे समय तक रहना बीमारियों के कारण जल्द होने वाली मृत्यु से जुड़ा है। इन बीमारियों में इस्केमिक हृदय रोग, फेफड़े का कैंसर, सीओपीडी, श्वसन संक्रमण (जैसे निमोनिया), स्ट्रोक और टाइप 2 मधुमेह आदि शामिल हैं। हालांकि अधिकांश उत्तरदाताओं ने वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों के रूप में केवल श्वसन समस्याओं, चक्कर आना और आंखों में जलन को ही जोड़ा।
केवल लगभग 20 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना था कि वायु प्रदूषण कैंसर, हृदय रोग और त्वचा की समस्याओं जैसी बीमारियों के प्रसार को प्रभावित कर सकता है। अर्थ रूट फाउंडेशन के सचिव, डॉ. विवेक पंवार ने कहा कि वायु प्रदूषण शहरी क्षेत्रों में सबसे बड़ी स्वास्थ्य चिंताओं में से एक है। भारत के कई शहर जीवाश्म ईंधन, प्रदूषणकारी स्रोतों जैसे स्मोकस्टैक्स, उद्योगों और कारखानों के कारण वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। अध्ययन बतलाता है कि शहरी निकाय इन समस्याओं से तो अवगत हैं लेकिन उनके कर्मचारी मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों और जोखिमों से बचने के लिए तत्काल कार्रवाई यानी एक्शन प्लान के बारे में बहुत जागरूक नहीं हैं।
इससे नीतियों के कार्यान्वयन में मुश्किलें पेश आती हैं। आईआईटी कानुपर के प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी का कहना है कि शहरी स्थानीय निकायों के साथ तमाम प्रतिष्ठित संस्थान साझेदारी में हैं। एनकैप के तहत जरूरी वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों में वैज्ञानिक सहायता प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त मंत्रालय और उनकी सहयोगी एजेंसियां भी शहरी निकायों के कर्मचारियों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करती हैं। प्रोफेसर त्रिपाठी के मुताबिक गंभीर मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर की नीतियों के कार्यान्वयन के लिए कुशल वायु गुणवत्ता पेशेवरों को नियुक्त करने की दरकार है।