MCD Election: कम मतदान ने बढ़ाई सभी दलों की धड़कनें, क्या कहते हैं आंकड़े
MCD Election: एमसीडी में कम मतदान के आंकड़े राजनीतिक दलों को टेंशन दे रहे हैं। राजनीतिक दलों के दिग्गज अपनी अपनी संभावनाओं को लेकर गणित बैठाने और आकलन में जुट गए हैं। पढ़ें यह रिपोर्ट....

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निगम चुनाव में मतदाताओं की बेरुखी ने राजनीतिक दलों की धड़कने बढ़ा दी हैं। कम मतदान का गणित किसके पक्ष में बैठेगा, इसके लिए गुणा भाग शुरू हो गया है। चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के तमाम प्रयासों के बाद भी निगम में मत प्रतिशत गत चुनावों के मुकाबले घट गया है। दिल्ली नगर निगम का चुनाव इस बार रोचक रहा। भाजपा ने सत्ता बचाने के लिए दिल्ली के नेताओं के साथ साथ दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियो की फौज चुनाव प्रचार में उतार दी। उधर आप ने भी इस बार जमकर जमीन पर काम किया। सीएम अरविंद केजरीवाल के गुजरात में व्यस्त होने के चलते उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने चुनाव की कमान संभाल रखी थी।
एकीकृत में कम, अलग अलग होने पर मतदान ज्यादा
सभी दलों ने अपने ज्यादा से ज्यादा मतदान के लिए प्रयास किया, लेकिन मत प्रतिशत घट गया। घटे हुए मत प्रतिशत में राजनीतिक दल भी परेशान हैं। राजधानी में एकीकृत निगम होने पर मत प्रतिशत कम होने और अलग अलग निगम होने पर मत प्रतिशत बढ़ने का ट्रेंड बरकरार रहा। इस बार चुनाव से पहले तीनों निगमों को एकीकृत कर दिया गया था। इससे पहले 2012 में निगम को तोड़कर तीन निगम बनाए गए थे। एकीकृत निगम के 2007 के चुनाव में 43.24 फीसदी मतदान हुआ था। इसके बाद निगम अलग होने पर 2012 में मत प्रतिशत 53.39 फीसदी रहा। वर्ष 2017 में यह बढ़कर 53.55 प्रतिशत हो गया। इस बार एकीकृत निगम होने पर मत प्रतिशत घटकर करीब 51 प्रतिशत आ गया।
थोड़ा अंतर भी बड़ा असर छोड़ेगा
निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला है। हालांकि कई क्षेत्रों में लोगों को बूथ तक लाने में कांग्रेस के कार्यकर्ता पिछड़ते नजर आए। पूर्वी दिल्ली और शाहीन बाग के आस-पास के इलाके में कांग्रेस के खेमें में उत्साह नजर आया। चुनाव विश्लेषकों की मानें तो मत प्रतिशत में थोड़ा अंतर भी निगम के परिणामों पर बड़ा असर छोड़ेगा।
चुनावी गणित लगाने में जुटे दिग्गज
सूत्रों की मानें तो निगम चुनावों के दिग्गज अब चुनावी गणित लगाने में जुट गए हैं। उम्मीदवार बूथवार वोट प्रतिशत के आधार पर जीत हार का आंकलन कर रहे हैं। हालांकि कई उम्मीदवार अपने पोलिंग एजेंट से मिले फीडबैक के आधार पर वे जीत का दम भर रहे हैं। विश्लेषकों की मानें तो कम मतदान और तगड़े मुकाबले के चलते नतीजें कुछ भी हो सकते हैं।