पुलिसवालों की गवाही पर भरोसा नहीं, जज ने क्यों टिप्पणी कर दिल्ली दंगे के आरोपियों को किया बरी
Delhi riots : घटना के तुरंत बाद इन दोनों ने कोई बयान नहीं दिया और ना ही आरोपियों की पहचान को लेकर डेली डायरी में कोई एंट्री की। दोनों कॉन्स्टेबलों ने 6 मार्च, 2020 को एक वीडियो क्लिप देख पहचान किया।

Delhi riots : दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली दंगे के तीन आरोपियों को यह कहते हुए आरोपों से बरी कर दिया कि पुलिस की गवाही पर भरोसा करना सुरक्षित नहीं है। साल 2020 में नॉर्थईस्ट दिल्ली में हुए दंगों के मामले में तीन आरोपियों पर दंगा में शामिल होने तथा आगजनी करने का आरोप लगा था। अदालत ने कहा कि जिन दो पुलिसवालों ने इन आरोपियों की पहचान की है उनकी गवाही पर भरोसा करना सेफ नहीं है। एडिशनल सेशल जज पुलत्स्य प्रमाचला इस मामले में तीन आरोपियों अकरम, मोहम्मद फुरकान और मोहम्मद इरशाद के खिलाफ दर्ज केस पर सुनवाई कर रही थीं।
इन तीनों पर साल 2020 में हुए दिल्ली दंगे में शामिल रहने तथा 24 फरवरी, 2020 को शिव विहार तिराहा के नजदीक एक किताब की दुकान को जलाने का आरोप था। दुकान जलाने के आऱोपों से तीनों आरोपियों को बरी करते वक्त अपना फैसला सुनाते हुए जज ने कहा, 'मैंने पाया है कि अभियोजन गवाह 2 (कॉन्स्टेबल पवन कुमार) और गवाह 7 (कॉन्स्टेबल अमित) कि इस गवाही पर भरोसा करना सुरक्षित नहीं है कि सभी आरोपी भीड़ में उस वक्त मौजूद थे।'
अदालत में जज ने क्या कहा...
जज ने आगे कहा, 'मैंने पाया है कि सभी तीनों आरोपियों के खिलाफ जो चार्ज लगाए गए हैं वो साबित नहीं हो रहे हैं। लिहाजा दुकान में हुई घटना के संदर्भ में आरोपियों पर लगे चार्ज से उन्हें बरी किया जाता है।' कोर्ट ने गौर किया कि हालांकि, विश्वसनीय सूबत यह साबित करते हैं कि एक आक्रोशित भीड़ ने तोड़फोड़ की और आगजनी की पर दोनों कॉन्स्टेबलों के बयानों में कुछ विसंगतियां हैं।
अदालत ने कहा कि घटना के तुरंत बाद इन दोनों ने कोई बयान नहीं दिया और ना ही आरोपियों की पहचान को लेकर डेली डायरी में कोई एंट्री की। दोनों कॉन्स्टेबलों ने 6 मार्च, 2020 को एक वीडियो क्लिप देखने के बाद आरोपियों की पहचान की थी। हालांकि, कॉन्स्टेबलों द्वारा देखी गई उस खास वीडियो क्लिप को लेकर भी कुछ स्पष्ट नहीं है।
अदालत ने कहा कि दोनों पुलिस अधिकारियों ने कहा कि घटना से पहले से वो दोनों आरोपियों को जानते हैं और उनके वर्कप्लेस के बारे में भी जानते हैं। लेकिन उन्होंने इसे लेकर कोई लीड जांच अधिकारी को नहीं दी ताकि उन जगहों पर रेड मार कर उन्हें पकड़ा जा सके।
गवाहों और शिकयतकर्ता के बयान में स्थिरता नहीं - कोर्ट
अदालत ने कहा कि दुकान के मालिक या शिकायतकर्ता ने कहा कि उन्होंने अपना बुकस्टोर घटना के दिन करीब 2 बजे बंद किया था। वो दो पुलिस अधिकारी, सुबह से ही वहां तैनात थे और उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया कि उन्होंने सुबह से दुकान खुली देखी थी। अदालत ने कहा कि इसलिए दुकान को लेकर असली स्थिति के बारे में शिकायतकर्ता और दोनों गवाहों के बयानों में स्थिरता नहीं है। अदालत ने कहा, 'सिर्फ एक वाक्य में बयान देना कि उन दोनों गवाहों ने दुकान पर हुई घटना में आरोपियों को देखा था, यह विश्वास जगाने के लिए काफी नहीं है।'