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नोएडा : सरफाबाद गांव में आज भी 'दंगल' से सुलझाए जाते हैं झगड़े

नोएडा में ऊंची-ऊंची इमारतों वाले सेक्टरों के बीच बसे सरफाबाद गांव में आज भी 'दंगल' (कुश्ती मुकाबला) आपसी विवादों को निपटाने का सबसे आसान तरीका है। सरफाबाद के एक पहलवान ने बताया कि इससे न...

नोएडा : सरफाबाद गांव में आज भी 'दंगल' से सुलझाए जाते हैं झगड़े
वैभव झा,नोएडाTue, 17 Apr 2018 07:16 PM
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नोएडा में ऊंची-ऊंची इमारतों वाले सेक्टरों के बीच बसे सरफाबाद गांव में आज भी 'दंगल' (कुश्ती मुकाबला) आपसी विवादों को निपटाने का सबसे आसान तरीका है।

सरफाबाद के एक पहलवान ने बताया कि इससे न केवल दोनों पक्षों के मामले का निपटान करने के लिए पुलिस को दिए जाने वाले पैसे बचते हैं बल्कि जनता का मनोरंजन भी भी हो जाता है।

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यदि दो लोगों के बीच झगड़ा हो जाता है, तो वो इसे सुलझाने के लिए पुलिस के पास जाने के बजाय बुजुर्गों के साथ बैठते हैं और अपने मुद्दों को हल करने के लिए दोनों पक्षों के बीच एक दंगल की घोषणा करते हैं। 

थोड़ी गहराई में जाएं तो पाएंगे कि इस गांव में 200-250 शौकिया और पेशेवर पहलवान हैं, या इससे भी ज्यादा हैं। हर साल अगस्त में दंगल सीजन शुरू होते ही पश्चिमी यूपी और हरियाणा के कुश्ती प्रेमियों का यहां जमावड़ा लग जाता है।

कुश्ती जोकि सरफाबाद को परिभाषित करती है, जिसमें 'हर घर में एक पहलवान होने' का 275 साल का इतिहास है। सबसे खास बात यह है कि यादव बहुल इस गांव में हर परिवार मर्दों के सीने की चौड़ाई के हिसाब से अपने पहलवानों की बढ़िया 'खुराक' (भोजन) का दावा करता है। 

सरफाबाद पूर्व बाहुबली से राजनेता बने डीपी यादव का मूल निवास स्थान भी है, जो वर्तमान में देहरादून जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है।

सरफाबाद के निवासी और कुश्ती कोच सुरेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि कुश्ती उस गोंद की तरह है, जिसने लगभग तीन सदियों से इस गांव के सामाजिक ढांचे को बरकरार रखा है। यहां हर घर में यह खेल पनपता है क्योंकि हम युवा खिलाड़ियों को पेशेवर एथलीटों के रूप में प्रशिक्षित करते हैं।

हालांकि, नोएडा में तेजी से बढ़ते शहरीकरण के साथ ही यह गांव भी दिल्ली-एनसीआर के किसी भी शहरी गांव की तरह है, जिसने उपभोक्तावाद के आकर्षण को स्वीकार कर लिया है जैसा कि बड़े-बड़े पक्के घरों में छज्जों के नीचे खड़ी एसयूवी गाड़ियों को देखकर स्पष्ट हो जाता है। नतीजतन, यहां के दिग्गज पहलवानों को यह भी डर है कि कॉर्पोरेट नौकरियों का लोभ और उच्च शिक्षा के अवसर अब युवाओं को इस खेल से दूर ले जाएंगे।

गांव में ही आखाड़ा चलाने वाले एक पूर्व फौजी और पहलवान सुखबीर सिंह कहते हैं कि यह सच है कि बीते कुछ सालों में सरफाबाद में पेशेवर और शौकिया पहलवानों की संख्या में गिरावट आई है। अच्छी नौकरी के लिए बहुत से पुरुषों ने गांव छोड़ दिया है, जबकि यहां रहने वाले अन्य लोग सिर्फ कुश्ती का दावा करते हैं जैसे वो उनके पिता से विरासत में मिली है। मैं हमेशा युवाओं को बताता हूं कि जितनी पढ़ाई महत्वपूर्ण है, उतना ही खेल भी महत्वपूर्ण है। कुश्ती आपको अनुशासनित करती है, आपको मानव मूल्यों को सिखाती है और दोषों से भी दूर रखती है।

वहीं, 49 वर्षीय सिंह उर्फ ​​सुखबीर पहलवान ने पिछले 15 सालों से युवाओं को कुश्ती का प्रशिक्षण देने के लिए सरफाबाद की कुश्ती संस्कृति के लिए एक पेशेवर स्पर्श प्रदान किया है। सेना में पहलवान के रूप में कार्यरत रहे सिंह ने 2003 में एक घुटने की चोट के बाद 34 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट ले ली थी।

वह हर रोज अपने अखाड़े में 100 से अधिक नौजवानों की ट्रेनिंग कराने के साथ ही कई राष्ट्रीय खेलों में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। सरफाबाद के ही 27 वर्षीय सुबोध यादव ने एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

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