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दिल्ली: नहीं दे पाए अस्पताल का बिल, मरीज को किया 'कैद', बिलखते रहे परिजन, नहीं पसीजा दिल

34 साल के बिरेंद्र कुमार पीलिया का इलाज कराने के लिए बिहार से यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) आये थे। वहां बिरेंद्र कुमार 15 दिन रहे लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं और उनकी हालत और बिगड़ गई।...

दिल्ली: नहीं दे पाए अस्पताल का बिल, मरीज को किया 'कैद', बिलखते रहे परिजन, नहीं पसीजा दिल
नई दिल्ली। कृष्ण कुमारTue, 01 May 2018 09:40 PM
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34 साल के बिरेंद्र कुमार पीलिया का इलाज कराने के लिए बिहार से यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) आये थे। वहां बिरेंद्र कुमार 15 दिन रहे लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं और उनकी हालत और बिगड़ गई। हालत बिगड़ने के बाद जब परिजनों ने बिरेंद्र कुमार को डिस्चार्ज करने के लिए कहा तो अस्पताल ने मरीज को नहीं छोड़ा। मरीज के परिजनों ने अस्पताल को सारा पैसा नहीं दे पाए थे जिसकी वजह से अस्पताल ने ऐसा किया। इससे मरीज की हालत और भी ज्यादा खराब हो गई। पांच दिन बाद मरीज को छोड़ा गया और तब तक मरीज का पीलिया और भी ज्यादा घातक हो गया है।

पीड़ित बिरेंद्र कुमार पेशे से किसान है और उन्हें 6 अप्रैल को आईएलबीएस में भर्ती किया गया था। 8 महीने से बिरेंद्र कुमार को पीलिया की दिक्कत बनी हुई थी। मरीज का इस दौरान इलाज शुरू हुआ, लेकिन पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी। करीब दस दिन भी अस्पताल ने मरीज को लिवर प्रत्यारोपण के लिए कहा। बिरेंद्र के इलाज पर 2 लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके थे। इसके बाद अस्पताल से उन्होने कहा कि वह ज्यादा बिल नहीं दे सकते हैं, ऐसे में उसे डिस्चार्ज कर दिया जाए। लेकिन अस्पताल ने बिरेंद्र को इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि वह बाकी बचे 83 हजार रुपये नहीं दे पा रहा था। बिरेंद्र की बहन कौशल्या देवी ने बताया कि वह कई बार अस्पताल के सामने रोईं और गिड़गिड़ाईं और यहां तक कहा कि वह किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर सकती हैं, शेष पैसे के लिए वह अपनी जमीन भी बेच देंगे।

अस्पताल प्रशासन उनकी यह बात सुनकर भी नहीं पसीजा। कौशल्या ने बताया कि उसके उनके पास 52 हजार 500 रुपये थे। उन्होंने अस्पताल को 50 हजार रुपये दिये और 2500 रुपये अपने पास रख लिए। लेकिन अस्पताल ने उनसे 2 हजार रुपये भी ले लिए और उनके पास 500 रुपये छोड़े। अस्पताल में जब बिरेंद्र भर्ती हुआ था तो उसे पीलिया का स्तर 12 था लेकिन जब उसे 28 अप्रैल को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया तो पीलिया का स्तर 28 पहुंच चुका था। बाद में उसे ईडब्लूएस कैटगरी के तहत द्वारका स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया है। हालांकि अस्पताल में उसे 22 अप्रैल को भी डिस्चार्ज कर दिया गया था। लेकिन पैसा न देने के कारण 28 अप्रैल तक भर्ती रखा। डॉक्टरों ने उनके भाई से लिखित में लेकर कहा कि मरीज को हम छोड़ रहे हैं लेकिन एक महीने में पेमेंट नहीं हुआ तो कानूनी कार्रवाई करेंगे। इतना ही नहीं बिरेंद्र के परिजनों के अस्पताल की ओर से अभी भी लगातार धमकी मिल रही हैं।

मंत्री के सामने भी लगाई थी गुहार 
कौशल्या देवा ने बताया कि वो लोग 5 अप्रैल आये थे और 6 अप्रैल को उनके भाई रंजीत कुमार केंद्रीय राज्य स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के पास गये थे। बाद में वह  सांसद मनोज तिवारी के पास भी गये थे। दोनों के पत्र के आधार पर वह अस्पताल में दाखिल हो गये। पहले वह एम्स में भर्ती कराने के लिए कह रहे थे। जब उनके भाई को नहीं छोड़ा जा रहा था तब भी वह दोनों ही लोगों से जाकर मिले थे। 

लिवर ट्रांसप्लांट पर बना है संशय
कौशल्या का कहना है कि द्वारका स्थित अस्तपाल के डॉक्टरों ने बताया कि अभी वह देख रहे हैं कि उनके भाई को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है भी या नहीं। पहले उनका पीलिया नियंत्रण में लाना है। हालांकि पीलिया का स्तर काफी ज्यादा है। 

बेहद खराब है अस्पताल का व्यवहार 
कौशल्या ने बताया कि जब अस्पताल से छुट्टी दी गई तो वह शाहदरा स्थित अपने रिश्तेदारों के पास पहुंचे। यहां उन्हें ईडब्ल्यूएस कमेटी के सदस्य अशोक अग्रवाल ने द्वारका स्थित एक अस्पताल में भर्ती किया गया। वहीं अशोक अग्रवाल ने बताया कि इस तरह का मामला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इस बारे में सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।

अस्पताल का पक्ष 
इस बारे में अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि बिरेंद्र कुमार कुछ दिन तक तो अस्पताल का बिल देते रहे लेकिन 21 अप्रैल से उन्होंने बिल देना ही बंद कर दिया था। इसके बाद 21 से लेकर 25 अप्रैल तक उनसे लगातार पैसे और बिल देने के संबंध में लगातार बात होती रही। जब वह बिल नहीं दे पा रहे थे तो प्रबंधन ने उन्हें डिस्चार्ज करने के लिए 27 अप्रैल को बोला गया। इस दौरान उनका बकाया 83 हजार 273 रुपये था। बाद में परिवार कैसे न कैसे करके 50 हजार रुपये देने को राजी हुआ। शेष पैसे देने के लिए 1 महीने का समय दिया गया है।

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