दिल्ली : जीटीबी अस्पताल में आरक्षण पर सरकार को फटकार
जीटीबी अस्पताल में दिल्ली के मरीजों के लिए सुविधाएं आरक्षित करने के अपने फैसले को सोमवार को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में जायज बताया। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि मरीजों में भेदभाव नहीं होना...
जीटीबी अस्पताल में दिल्ली के मरीजों के लिए सुविधाएं आरक्षित करने के अपने फैसले को सोमवार को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में जायज बताया। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि मरीजों में भेदभाव नहीं होना चाहिए।
सरकार ने कहा है कि किसी मरीज को इलाज, जांच या ओपीडी की सुविधाएं देने से इनकार नहीं किया गया है, लेकिन अस्पताल यह तय करेगा कि इलाज पहले किसे दिया जाए। इतना ही नहीं, सरकार ने कहा है कि इस फैसले से मरीजों के तीमारदारों द्वारा डॉक्टरों वा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के साथ होने वाली मारपीट की घटना में कमी आएगी।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वी. कामेश्वर राव की पीठ ने सरकार का पक्ष सुनने के बाद कहा कि ‘इस बात की समीक्षा की जाएगी कि सरकार द्वारा दिल्ली के मरीजों को इलाज में प्राथमिकता देने से किसी अन्य मरीजों के समानता और जीवन जीने के संवैधानिक अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है।
पीठ ने कहा कि हम सरकार की इन दलीलों पर भी विचार करेंगे कि जिसमें कर्मचारियों, संसाधनों और धन की कमी का जिक्र किया गया है। पीठ ने कहा कि हम यह देखेंगे कि सरकार की यह दलील उचित है या नहीं। हाईकोर्ट ने इसके साथ ही सरकार द्वारा पहली अक्तूबर, 2018 को जीटीबी अस्पताल में दिल्ली के मरीजों के लिए 80 फीसदी बेड और ओपीडी के 17 में से 14 काउंटर आरक्षित किए जाने के चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने सरकार के इस कदम को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के प्रावधानों के तहत मिले अधिकारों का हनन बताया है। इससे पहले, सरकार की ओर से अधिवक्ता राहुल मेहरा ने पीठ को बताया कि जीटीबी अस्पताल में दिल्ली के मरीजों को इलाज में प्राथमिकता देने के लिए जारी आदेश का किसी भी व्यक्ति ने अब तक शिकायत नहीं की है। मेहरा ने पीठ को बताया कि सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि संसाधनों और धन की कमी है।
सरकार का यह नया प्रयोग
सरकार ने बताया कि जीटीबी अस्पताल में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया यह कदम एक नया प्रयोग है और हाईकोर्ट को जनहित याचिका के आधार पर इसे रद्द नहीं करना चाहिए। अस्पताल में ज्यादा मरीजों से संसाधनों और कर्मचारियों पर बोझ बढ़ता है।
अस्पतालों में अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार
पीठ ने सरकार के वकील मेहरा से पूछा कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है, अदालतें या यह अव्यवस्था है। पीठ ने कहा कि यदि आप (सरकार) व्यवस्था नहीं बना सकते तो सुविधाएं रोक दो, यह समस्या का हल नहीं बल्कि समस्या से भागना है। दूसरी तरफ याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अग्रवाल ने कहा कि सरकार क्षेत्र के आधार पर इलाज जैसी सुविधाओं को नहीं बांट सकती। उन्होंने पीठ के समक्ष हाल ही में गुजरात से बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के भगाए जाने की घटना का जिक्र किया। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।