ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News NCRसमलैंगिक विवाह रजिस्ट्रेशन के खिलाफ HC में याचिका, हिंदू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति नहीं देने की मांग

समलैंगिक विवाह रजिस्ट्रेशन के खिलाफ HC में याचिका, हिंदू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति नहीं देने की मांग

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के समक्ष शुक्रवार को दायर एक याचिका में अनुरोध किया गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के तहत समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) की अनुमति नहीं...

समलैंगिक विवाह रजिस्ट्रेशन के खिलाफ HC में याचिका, हिंदू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति नहीं देने की मांग
नई दिल्ली। भाषाFri, 03 Dec 2021 05:47 PM
ऐप पर पढ़ें

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के समक्ष शुक्रवार को दायर एक याचिका में अनुरोध किया गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के तहत समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि हिंदू धर्म में अनंत काल से केवल एक पुरुष और महिला के बीच विवाह बंधन की अनुमति है।

इस याचिका में तर्क दिया गया है कि प्रथागत कानून में समलैंगिक विवाह को शामिल करने जैसे बदलाव उन विवाहों में बहुत आसान, सुविधाजनक और व्यावहारिक होते हैं जो जीवनसाथियों के बीच एक प्रकार के अनुबंध होते हैं, क्योंकि उनका धर्म से खास संबंध नहीं होता और उनकी प्रकृति अधिक सामान्य होती है। इसमें कहा गया है कि हिंदुओं जैसे समाजों में वैवाहिक बंधन उनके धर्म का हिस्सा होते हैं, जो धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ उनकी दैवीय संस्थाओं से उत्पन्न होते हैं एवं उनसे संबंधित होते हैं और इसीलिए उनके अहम भावनात्मक मूल्य होते हैं।

चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने 'सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन' की इस याचिका को आगे की सुनवाई के लिए तीन फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया, जिसमें समलैंगिक विवाहों की मान्यता संबंधी मुख्य याचिका में पक्षकार बनाए जाने और उसका पक्ष भी सुनने का अनुरोध किया गया है। तीन फरवरी को इस संबंधी याचिकाओं के समूह पर सुनवाई की जाएगी।

धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत हो रजिस्ट्रेशन 

संजीव नेवाड़ और स्वाति गोयल शर्मा के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की स्वीकृति दिए जाने की याचिका न केवल हिंदू विवाह की धार्मिक प्रणाली के खिलाफ है, बल्कि यह अकारण अचानक बदलाव लाए जाने का कृत्य है और यह परिवर्तन उस हिंदू समाज की विरासत एवं धार्मिक पारिस्थितिकी तंत्र जैसे अन्य पहलुओं को प्रभावित करेगा, जो धार्मिक विवाह के संस्कार पर अत्यंत निर्भर हैं। याचिका में संगठन ने कहा कि ऐसे विवाहों को या तो विशेष विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिए या मुस्लिम विवाह कानून और सिख आनंद विवाह अधिनियम जैसे सभी धार्मिक कानूनों के तहत इसकी अनुमति दी जानी चाहिए और इसे धार्मिक आधार पर तटस्थ बनाया जाना चाहिए।

विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच

इस संगगठन के लिए वकील शशांक शेखर झा द्वारा दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि वेदों के अनुसार, विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होता है, ताकि वे अपने सांसारिक एवं धार्मिक कर्तव्यों का निर्वहन करें। दरअसल, हिंदू विवाह के दौरान या विवाह की रस्म का वर्णन करते हुए जिन वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, उनमें से अधिकतर मंत्र एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला का उल्लेख करते हैं। यह प्रथा अनादि काल से लगभग सभी हिंदू संप्रदायों में बिना किसी भिन्नता के विद्यमान है।

यह अर्जी समलैंगिक विवाह से संबंधित अभिजीत अय्यर मित्रा की लंबित याचिका के मद्देनजर दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सहमति से किए गए समलैंगिक कार्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बावजूद समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह संभव नहीं है और इसमें हिंदू विवाह कानून (एचएमए) और विशेष विवाह कानून (एसएमए) के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की घोषणा किए जाने का अनुरोध किया गया है।

संगठन ने अर्जी में कहा है कि हिंदू धर्म के अनुसार, विवाह एक अनुबंध नहीं है, बल्कि एक धार्मिक कार्य है और एचएमए के साथ छेड़छाड़ करने का कोई भी ऐसा प्रयास, जो हिंदुओं की सदियों पुरानी हानिरहित मान्यताओं को प्रभावित करता है, वह संविधान द्वारा दिए गए हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों में धर्मनिरपेक्ष सरकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होगा।

मुख्य याचिका में, केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध किया है कि भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है बल्कि यह जैविक पुरुष और महिला के बीच एक संस्था है। उसने कहा है कि न्यायिक हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन को पूरी तरह बिगाड़ देगा। 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें