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दिल्ली दंगे : यूएपीए मामले में जामिया की छात्रा गुलफिशा फातिमा को झटका, जमानत अर्जी हुई खारिज

दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुए सांप्रदायिक दंगे से जुड़े एक मामले में अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार की गई जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा...

दिल्ली दंगे : यूएपीए मामले में जामिया की छात्रा गुलफिशा फातिमा को झटका, जमानत अर्जी हुई खारिज
नई दिल्ली। एजेंसीWed, 02 Sep 2020 12:57 PM
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दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुए सांप्रदायिक दंगे से जुड़े एक मामले में अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार की गई जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा गुलफिशा फातिमा की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। फातिमा ने इस मामले में जांच की अवधि बढ़ाने के सत्र अदालत के 29 जून के आदेश को चुनौती दी थी। उसने इस आधार पर वैधानिक जमानत मांगी थी कि कानून के अनुसार 90 दिनों के अंदर आरोपपत्र दायर नहीं किया गया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने इस आधार पर जमानत अर्जी खारिज कर दी कि उसमें दम नहीं है। अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने कहा कि जब जांच करने की अवधि 29 अगस्त तक बढ़ाई गई और आवेदक (फातिमा) को सत्र न्यायाधीश ने यूएपीए के प्रावधानों के तहत न्यायिक हिरासत में भेजा तब आवेदक द्वारा यह कहने का कोई कारण नहीं है कि आरोपपत्र दस अगस्त को दायर नहीं किया गया। आवेदक ने सत्र न्यायाधीश द्वारा 29 अगस्त को जांच की अवधि बढ़ाए जाने को यह कहते हुए चुनौती देने की कोशिश की कि वह ऐसा आदेश जारी करने के लिए सक्षम नहीं हैं, लेकिन ऐसा कथन इस अदालत के समक्ष नहीं कहा जा सकता है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा कि 29 जून को आदेश जारी किया गया था और उस आदेश के मुताबिक जांच की अवधि 29 अगस्त तक बढ़ाई गई (बाद में उसे और बढ़ाया गया।) इसलिए इस आधार पर वैधानिक जमानत के प्रश्न पर विचार का कोई अवसर पैदा ही नहीं होता कि अंतिम रिपोर्ट दस अगस्त को नहीं दाखिल की गई। वर्तमान आवेदन में कोई दम नहीं है, इसलिए उसे खारिज किया जाता है।

अदालत ने 29 जून को जांच पूरी करने के लिए पहले 29 अगस्त तक और फिर 13 अगस्त को यह अवधि 17 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी थी। फातिमा की जमानत अर्जी में दावा किया गया है कि सत्र अदालत पुलिस द्वारा यूएपीए की धारा 43डी (2) (बी) के तहत दाखिल आवेदन पर गौर करने और मंजूर करने के लिए सक्षम नहीं है जिसमें जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की गयी थी।

नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 अगस्त को सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में कम से कम 53 लोगों की जान चली गई थी और करीब 200 लोग घायल हो गए थे। 

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