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18 नहीं, 26 साल की उम्र तक देना होगा बच्चे को पैसा; HC ने दिया बड़ा फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चे को भरण-पोषण के मामले को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ दायर की गई अलग रह रहे पिता की याचिका को खारिज कर दिया।

18 नहीं, 26 साल की उम्र तक देना होगा बच्चे को पैसा; HC ने दिया बड़ा फैसला
Subodh Mishraपीटीआई,नई दिल्लीSat, 03 Aug 2024 10:57 AM
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दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चे को भरण-पोषण को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश पर आपत्ति जताने वाली पिता की अपील को अस्वीकार कर दिया। 

कोर्ट का फैसला एक अलग हो चुके पति की अपील पर सुनवाई करते हुए आया। पति ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश पर आपत्ति जताई थी, जिसमें उसे अपनी पत्नी और बेटे को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया था। पारिवारिक अदालत ने जुलाई 2016 से बेटे को 35000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि यह रकम उसके 26 साल के होने तक या आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाने तक देना होगा। पति ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 के तहत केवल नाबालिग बच्चे ही अंतरिम भरण-पोषण के हकदार हैं, बालिग (18 साल) नहीं। पारिवारिक अदालत 26 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक भरण-पोषण की अनुमति नहीं दे सकती है।

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) की धारा 26 का दायरा केवल तब तक सीमित नहीं किया जा सकता जब तक कि बच्चा वयस्क न हो जाए। रोजगार केवल कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद ही संभव हो सकता है जो 18 साल का होने के बाद भी जारी रहता है। कोर्ट ने कहा कि एचएमए की धारा 26 का इरादा अन्य बातों के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा के लिए भरण-पोषण प्रदान करना है। यह 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर खत्म नहीं होती। 

पीठ ने कहा कि ज्यादातर बच्चा 18 साल की उम्र में हाई स्कूल (कक्षा 12) पास कर चुका होगा और आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज या विश्वविद्यालय में दाखिला लेना चाहता होगा। पीठ ने हाल के एक फैसले में कहा कि कॉलेज या विश्वविद्यालय की डिग्री पूरी करने और कुछ मामलों में स्नातकोत्तर या पेशेवर डिग्री पूरी करने के बाद ही बच्चा रोजगार सुरक्षित करने में सक्षम होगा।

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, हमारे विचार में एक बच्चा जो अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहा है, वह वयस्क होने के बाद भी एचएमए की धारा 26 के तहत भरण-पोषण का हकदार होगा, जब तक कि वह अपनी शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेता और आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जाता।,'' अदालत ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने 1 लाख रुपये के जुर्माने के साथ पति की याचिका खारिज कर दी।

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में पारिवारिक अदालत का आदेश पारित होने के समय बेटा 17 साल का था और 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था। वह वर्तमान में यहां एक निजी विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। इसलिए फैमिली कोर्ट ने बेटे द्वारा किए जाने वाले संभावित शिक्षा और अन्य संबंधित खर्चों को ध्यान में रखते हुए, उसे 26 वर्ष की आयु होने या आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने तक, जो भी पहले हो, 35000 रुपये प्रति माह की राशि प्रदान की। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी और बेटे दोनों को गुजारा भत्ता का बकाया ब्याज सहित आठ सप्ताह की अवधि के भीतर भुगतान किया जाए।