जरूरी थी बिभव कुमार की गिरफ्तारी, पुलिस ने सही किया; मालीवाल केस में HC ने क्या-क्या कहा
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी बिभव कुमार को दिल्ली हाई कोर्ट ने करारा झटका दिया है। कोर्ट ने बिभव की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि उनकी गिरफ्तारी अवैध थी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी बिभव कुमार को दिल्ली हाई कोर्ट ने करारा झटका दिया है। कोर्ट ने कहा कि आप सांसद स्वाति मालीवाल पर कथित हमले के मामले में बिभव कुमार की गिरफ्तारी आवश्यक थी और पुलिस ने ऐसा करते समय कानून का सख्ती से पालन किया।
हाई कोर्ट ने शुक्रवार को बिभव कुमार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि उनकी गिरफ्तारी अवैध थी। कोर्ट ने अपने लिखित फैसले में कहा कि उनकी याचिका में कोई योग्यता नहीं थी। वर्तमान में न्यायिक हिरासत में बंद बिभव कुमार ने 13 मई को अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास पर स्वाति मालीवाल के साथ कथित तौर पर मारपीट की थी। दिल्ली पुलिस ने उन्हें 18 मई को गिरफ्तार किया था।
अपनी याचिका में बिभव कुमार ने अपनी गिरफ्तारी को अवैध घोषित करने और सीआरपीसी की धारा 41 ए (पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थिति का नोटिस) के प्रावधानों का उल्लंघन और इसे कानून के खिलाफ घोषित करने का निर्देश देने की मांग की थी।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने शनिवार को जारी फैसले में कहा कि गिरफ्तारी के बाद निचली अदालत ने पांच दिनों की पुलिस हिरासत की अनुमति देने से पहले बिभव कुमार के साथ-साथ राज्य को भी सुना। अदालत ने नोट किया कि कानून जांच अधिकारी को यह विवेक देता है कि जांच के दौरान किसी व्यक्ति को गिरफ्तार न करें। लेकिन, वर्तमान परिस्थितियों में बिना नोटिस के आरोपी याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के पर्याप्त आधार मौजूद हैं।
अदालत ने कहा कि तथ्य स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं कि दी गई परिस्थितियों में गिरफ्तारी आवश्यक थी और शीर्ष अदालत द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए सिद्धांतों/दिशानिर्देशों का पालन करते हुए सीआरपीसी, 1973 की धारा 41 के सख्त अनुपालन में की गई है। उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर वर्तमान याचिका में कोई योग्यता नहीं है। इसे खारिज किया जाता है। फैसले में कहा गया है कि पुलिस के अनुसार, सीसीटीवी फुटेज खाली पाया गया और बिभव कुमार पूछताछ के दौरान असहयोग कर रहे थे।
फैसले में कहा गया है कि बिभव कुमार की जमानत याचिका को खारिज करते समय एक अन्य उच्च न्यायालय की पीठ ने "महत्वपूर्ण सबूतों को दबाने" का भी उल्लेख किया था। केवल "चुनिंदा सीसीटीवी फुटेज सौंपे गए थे और आरोपी द्वारा मोबाइल फोन को फार्मेट किया गया था। यह दर्शाता है कि महत्वपूर्ण सबूत छुपाए गए।
अदालत ने कहा कि रिमांड आवेदन की एक प्रति बिभव कुमार को उनकी गिरफ्तारी के बाद ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपलब्ध कराई गई थी, जिस पर उन्होंने जवाब भी दाखिल किया था। उनके खिलाफ आपराधिक इतिहास है, क्योंकि उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश के नोएडा में में एक आपराधिक मामला लंबित है।
बिभव कुमार के खिलाफ एफआईआर 16 मई को विभिन्न भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) प्रावधानों के तहत दर्ज की गई थी, जिसमें एक महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से आपराधिक धमकी, हमला या आपराधिक बल से संबंधित और गैर इरादतन हत्या का प्रयास शामिल था। उनकी जमानत याचिका पहले ट्रायल कोर्ट और फिर हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी। और अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।