व्यभिचारी जीवनसाथी कोई अक्षम माता-पिता के समान नहीं, बच्चों की कस्टडी से इनकार नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट
पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी गैर-जिम्मेदार है, क्योंकि वह बच्चों की देखभाल नहीं करती है और अपना अधिकतर समय अवैध संबंध मे बिताती है। उसने तर्क दिया कि उसकी पत्नी व्यभिचार में लिप्त है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसला में कहा है कि व्यभिचारी जीवनसाथी (Adulterous Spouse) एक अक्षम अभिभावक के समान नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का विवाहेत्तर संबंध उसे बच्चे की कस्टडी से वंचित करने का एकमात्र निर्धारण कारक नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि तलाक की कार्रवाई और बच्चों की कस्टडी के मामले आपस में जुड़े हो सकते हैं, लेकिन वे हमेशा 'परस्पर असंबद्ध' होते हैं।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा कि भले ही माता-पिता में किसी के विवाहेत्तर संबंध साबित हुए हैं तो भी उसे बच्चों की कस्टडी प्राप्त करने से तब तक वंचित नहीं कर सकते जब तक कि यह साबित करने के लिए कुछ और न हो कि इस तरह के व्यभिचारी कृत्य से बच्चे का कल्याण प्रभावित हुआ है।
हाईकोर्ट एक व्यक्ति और उसकी पत्नी द्वारा उनकी 12 और 10 साल की दो नाबालिग बेटियों की जॉइंट कस्टडी देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।
महिला ने आरोप लगाया कि उसका पति लापरवाह और गैर-जिम्मेदार था और लगभग ढाई साल तक उसे और दो बच्चों को छोड़कर किसी आश्रम व अज्ञात स्थान पर चला गया था। वहीं, पति ने दावा किया कि पत्नी की ओर से बच्चों की कस्टडी के लिए दायर याचिका तलाक की याचिका के जवाब में थी, जो उसने क्रूरता और व्यभिचार के आधार पर मांगी थी।
महिला ने दावा किया कि बच्चों का उनकी बुआ ने अपहरण कर लिया था और उसे उसके ससुराल से निकाल दिया गया था। उसने आरोप लगाया कि उसे अपनी बेटियों से बात करने की भी अनुमति नहीं दी गई, जिसके कारण बच्चों की कस्टडी प्राप्त करने के लिए याचिका दायर करनी पड़ी।
पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी गैर-जिम्मेदार है, क्योंकि वह बच्चों की देखभाल नहीं करती है और अपना अधिकतर समय अवैध संबंध मे बिताती है। उसने तर्क दिया कि उसकी पत्नी व्यभिचार में लिप्त है, जिसकी वजह से वह बच्चों की देखभाल नहीं करती।
हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि यह साबित हो चुका है कि मां का विवाहेत्तर संबंध था, यह अपने आप में उसे अपने बच्चों की हिरासत से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता है जब तक कि यह स्थापित करने के लिए कुछ और न हो कि उसके हित दूसरी तरफ बच्चों के कल्याण को प्रभावित करते हैं।
रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों से पता चलता है कि मां अक्सर अपना समय तीसरे व्यक्ति के साथ बिताती थी जिसमें उसकी विशेष रुचि थी, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं था कि वह किसी भी तरह से बच्चों की देखभाल और उनकी जरूरतों का ध्यान रखने में विफल रही हो।
अदालत ने आदेश में कहा, मां भले ही अपने पति के प्रति वफादार या अच्छी पत्नी नहीं रही हो, लेकिन यह अपने आप में यह इस नतीजे पर पहुंचने के लिए काफी नहीं है कि वह नाबालिग बच्चों की देखभाल के लिए अयोग्य है, खासकर तब जब यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं लाया गया है कि उसने किसी भी तरह से बच्चों की देखभाल करने में उपेक्षा की है या उसके आचरण के कारण बच्चों पर किसी भी प्रकार का बुरा प्रभाव पड़ा है।
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