दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स के चिकित्सा अधीक्षक को 25 हफ्ते की गर्भवती महिला की स्थिति का पता लगाने के लिए एक बोर्ड का गठन करने को कहा है। महिला के भ्रूण में गंभीर किस्म की विसंगति आ गई है जिसके कारण उसने गर्भपात के लिए इजाजत देने का अनुरोध किया है।
जस्टिस विभू बाखरू की अवकाशकालीन बेंच ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सा अधीक्षक को चार जनवरी तक रिपोर्ट सौंपकर भ्रूण की चिकित्सकीय स्थिति के बारे में बताने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। भ्रूण में विकार आने के कारण महिला ने 25 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत मांगी है।
महिला की तरफ से पेश वकील स्नेहा मुखर्जी ने हाईकोर्ट को बताया कि भ्रूण टिक नहीं पाएगा क्योंकि उसकी दोनों किडनी अब तक विकसित नहीं हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि तथ्यों पर विचार करते हुए एम्स के अधीक्षक को महिला की जांच करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया जाता है। यह बोर्ड भ्रूण की स्थिति और उसके जीवित रहने की संभावना को लेकर अपनी रिपोर्ट पेश करेगा।
गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम की धारा तीन के तहत 20 हफ्ते के बाद के गर्भ को गिराने की अनुमति नहीं है। याचिका में कहा गया कि 25 वें हफ्ते में अल्ट्रा सोनोग्राफी में महिला को भ्रूण में विकार का पता चला था। वह बच्चे के विकार को देखते हुए अविकसित बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, इसलिए उसे कानूनी तौर पर गर्भ गिराने की अनुमति दी जाए।
हाईकोर्ट ने इस महिला की याचिका पर विचार करते हुए उसके व उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की वर्तमान स्थिति की जांच के आदेश दिए हैं, ताकि गर्भ के विकार को देख महिला की याचिका पर निर्णय करना आसान हो कि गर्भपात कराना उचित है या नहीं।