दिल्ली के असोला भट्टी अभयारण्य को तेंदुओं ने बनाया बसेरा? नई रिपोर्ट में मिला जवाब, कैमरे में कैद हुईं तस्वीरें
दिल्ली की असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य को आठ तेंदुओं और तीन-चार लकड़बग्घा ने अपना बसेरा बनाया है। इसका पता बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और दिल्ली के वन और वन्यजीव विभाग की रिपोर्ट से चला।
दिल्ली के असोला वन्यजीव अभयारण्य को आठ तेंदुओं ने अपना घर बना लिया है। इसका पता बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) और दिल्ली के वन और वन्यजीव विभाग की रिपोर्ट से चला है। तेंदुए एक ही ट्रैक पर हफ्ते में एक बार या दो बार घूमते हुए पाए गए हैं। इससे पता चलता है कि उन्होंने इस शहरी जंगल को अपना स्थायी घर बना लिया है। असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य (एबीडब्ल्यूएस) दक्षिण दिल्ली के रिज का हिस्सा है।
इस अध्ययन के लिए डाटा इकट्ठा करने की शुरुआत जून 2021 में कैमरे का उपयोग करके हुई। इसके जरिए तेंदुओं की 111 तस्वीरें मिलीं। इनमें 32.71 वर्ग किमी में फैले अभयारण्य में आठ यूनिक जानवर देखे गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अभयारण्य अरावली के सरिस्का-दिल्ली वन्यजीव कॉरिडोर का हिस्सा है जो राजस्थान में सरिस्का टाइगर रिजर्व से दिल्ली रिज तक है। असोला भट्टी में तेंदुओं की मौजूदगी इस वन्यजीव गलियारे के महत्व की ओर इशारा करती है।
बीएनएचएस के सहायक निदेशक सोहेल मदान ने कहा, 'अध्ययन किए जाने के कारणों में से एक यह दिखाना था कि असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य एक पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) द्वीप नहीं है। यदि आप एक अभयारण्य बनाते हैं, जिसके चारों ओर एक चारदीवारी, मॉल और राजमार्ग हैं, तो यह एक चिड़ियाघर की तरह हो जाता है, जहां जानवर अंदर फंस जाते हैं और लंबे समय तक रहने लायक नहीं रहते हैं। यह कॉरिडोर सुनिश्चित करता है कि अभयारण्य एक द्वीप नहीं है और वहां जीवन क्षमता है।'
अभयारण्य में लकड़बग्घा भी हैं
रिपोर्ट में कहा गया है, 'एबीडब्ल्यूएस हमेशा आस-पास की बस्तियों और सड़कों के मानवजनित दबावों से प्रभावित रहा है। इसके बावजूद, तेंदुए और अन्य स्तनधारी जीव अब भी इस जंगल के अंदर रह रहे हैं जो एबीडब्ल्यूएस पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है। इस अभयारण्य के कुछ हिस्सों में खनन गड्ढे भी मौजूद हैं।' इसके अलावा यहां लगभग दो-चार धारीदार लकड़बग्घा हैं, जिनकी ज्यादातर उपस्थिति गुड़गांव-फरीदाबाद राजमार्ग के करीब है।
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