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दिल्ली हिंसा: अदालत ने कहा- आतंकी फंडिंग के सबूत मिलने पर जमानत होगी रद्द

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के दंगों से संबंधित मामलों में अदालत में जमानत याचिकाओं का अंबार लग गया है। कई आरोपियों को अदालत ने वर्तमान हालात व आरोपी की दंगों में भूमिका को देखते हुए जमानत भी दे दी...

दिल्ली हिंसा: अदालत ने कहा- आतंकी फंडिंग के सबूत मिलने पर जमानत होगी रद्द
हेमलता कौशिक,नई दिल्लीThu, 25 Jun 2020 07:20 AM
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उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के दंगों से संबंधित मामलों में अदालत में जमानत याचिकाओं का अंबार लग गया है। कई आरोपियों को अदालत ने वर्तमान हालात व आरोपी की दंगों में भूमिका को देखते हुए जमानत भी दे दी है। लेकिन, अब दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की तरफ से अदालत को बताया गया है कि इन दंगों में आतंकी फंडिंग व आपराधिक साजिश के सबूत सामने आए हैं। इस पर अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि यदि ऐसा पाया जाता है तो पुलिस आरोपियों की जमानत रद्द कराने की प्रक्रिया तुरंत शुरू करे।

कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दंगों से संबंधित 700 से ज्यादा मामलों में जांच चल रही है। अगर अपराध शाख या अन्य किसी विभाग द्वारा इस मामले में आतंक के लिए फंडिंग या आपराधिक साजिश की बात सामने आती है तो पुलिस उन आरोपियों की जमानत रद्द कराने की प्रक्रिया शुरु करे, जो इस मामले में पहले जमानत ले चुके हैं। अदालत ने इसके लिए उदाहरण के तौर पर राजधानी पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल फैजल फारुख का नाम लिया। 

झूठा शपथपत्र होने पर दर्ज करें मुकदमा
हिंसा के आरोपी शाहरुख ने जमानत की गुहार लगाते हुए दलील दी थी कि 24 फरवरी को जब दंगे हुए वह उस समय कहीं और नमाज पढ़ने गया था। वहीं से एक रिश्तेदार के यहां चला गया। अपनी बात को सच साबित करने के लिए उसने अपने एक परिचित का शपथपत्र भी अदालत के समक्ष पेश किया। अदालत ने जांच करने को कहा था। अब जांच अधिकारी ने इस आरोपी की मौजूदगी के साक्ष्य पेश किए हैं। इसके बाद अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि इन दंगों में सरकारी व निजी संपति के नुकसान के साथ ही 53 लोगों की जान गई है। इस तरह के दंगे किसी भी हालात में बर्दाश्त के लायक नहीं हैं। साथ ही अदालत ने दिल्ली पुलिस को कहा है कि वह झूठे शपथपत्र को लेकर तफ्तीश करें। शपथपत्र के झूठे पाए जाने की स्थिति में शपथपत्र देने वाले व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 193(न्यायिक प्रक्रिया में झूठा बयान या शपथपत्र देना) के तहत कार्रवाई करे। इस आरोप के साबित होने की स्थिति में अधिकतम सात साल तक की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है।

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