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कोरोना के योद्धा : परिवार का दबाब होने के बावजूद कैट्स एम्बुलेंस में ड्यूटी कर रहीं अन्नू चौहान

कैट्स एम्बुलेंस सेवा में बतौर इमरजेंसी मेडिकल तकनीशियन के रूप में काम करने वाली अन्नू चौहान कोरोना वायरस की महामारी के बीच भी हर रोज 12 घंटे काम कर रही हैं। उनका काम एम्बुलेंस के जरिये कोरोना...

कोरोना के योद्धा : परिवार का दबाब होने के बावजूद कैट्स एम्बुलेंस में ड्यूटी कर रहीं अन्नू चौहान
नई दिल्ली। कार्यालय संवाददाताSat, 28 Mar 2020 05:40 PM
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कैट्स एम्बुलेंस सेवा में बतौर इमरजेंसी मेडिकल तकनीशियन के रूप में काम करने वाली अन्नू चौहान कोरोना वायरस की महामारी के बीच भी हर रोज 12 घंटे काम कर रही हैं। उनका काम एम्बुलेंस के जरिये कोरोना संदिग्धों को अस्पताल पहुंचाना है। अन्नू का काम बेहद जोखिम जोखिम भरा है, इसलिए घरवाले उन पर छुट्टी लेने का दबाव बना रहे हैं। वहीं, पड़ोसी तो नौकरी छोड़ने तक की सलाह दे रहे हैं, मगर अन्नू अपने फर्ज से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

उन्होंने बताया कि 12 घंटे की शिफ्ट के लिए सुबह 7 बजे घर से निकलती हूं और रात को 12 बजे तक ही वापस लौट पाती हूं। मेरा काम कैट्स को आने वाली मरीजों की कॉल में से कोरोना के लक्षण वाले लोगों की पहचान कर उन्हें अस्पताल पहुंचाना है। उन्होंने बताया कि तेज बुखार और खांसी-जुकाम के लक्षण के साथ विदेश यात्रा करके आए या फिर ऐसे लोगों के सम्पर्क में आए लोगों की कॉल को हम कोरोना के संदिग्ध की कॉल के रूप में लेते हैं। हम तुरंत एम्बुलेंस लेकर उनके पास जाते हैं। वहां मरीज को एन-95 मास्क और हाथ में पहनने के लिए ग्लव्स देते हैं, ताकि वह गाड़ी को संक्रमित न कर दे। मरीज को गाड़ी में बैठाने से पूर्व उसे समझाया जाता है कि वह किस तरह से खुद को दूसरों से बचा कर रखें।

परिवार वाले बोलते हैं, छुट्टी ले लो

अन्नू ने बताया कि मेरे काम में जोखिम को देखते हुए परिजन कई बार कह चुके हैं कि छुट्टी ले लो। मैं उन्हें समझाती हूं कि इस विपत्ति की घड़ी में जब सभी पुलिसकर्मी, डॉक्टर और नर्स अपनी सेवाएं दे रहे हैं तो मैं कैसे घर बैठ सकती हूं। कई बार तो पड़ोसियों ने यह तक कह दिया कि अपनी नौकरी छोड़ दूं। हालांकि, मैं उन्हें कहती हूं कि अगर हम लोग डरकर घर बैठ गए तो मरीजों को अस्पताल कौन ले जाएगा।

घर जाने के लिए साधन भी नहीं मिलता

अन्नू चौहान ने बताया कि मेरा काम सुबह 8 बजे शुरू होता है और रात 8 बजे खत्म होता है। कई बार तो सुबह 7:30 बजे से ही मरीजों के फोन आने लगते हैं। काम के लिए मुझे सुबह 7 बजे घर से निकलना होता है। रात को वैसे तो ऑफिस के मैनेजर कई बार हमें घर छोड़ने की व्यवस्था करते हैं, लेकिन कई दफा उन्हें साधन तक नहीं मिल पाते। ऐसे में घरवालों का दबाव और बढ़ जाता है, क्योंकि अभी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बंद है। इस कारण अपने किसी सहयोगी या फिर कई बार परिजनों को बुलाकर घर जा पाती हूं।

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