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BJP ने कहा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत, 'आप' पूर्ण राज्य की मांग छोड़े

दिल्ली प्रदेश भाजपा ने उप-राज्यपाल और आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के बीच अधिकारों के लिए रस्साकशी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बुधवार को स्वागत किया। भाजपा ने कहा कि सत्तारूढ़ दल को दिल्ली को...

BJP ने कहा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत, 'आप' पूर्ण राज्य की मांग छोड़े
नई दिल्ली | एजेंसीWed, 04 Jul 2018 05:22 PM
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दिल्ली प्रदेश भाजपा ने उप-राज्यपाल और आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के बीच अधिकारों के लिए रस्साकशी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बुधवार को स्वागत किया। भाजपा ने कहा कि सत्तारूढ़ दल को दिल्ली को पूर्ण राज्य की अपनी 'राजनीतिक' मांग को अब छोड़ देना चाहिए।

भाजपा के विधायक और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आज के निर्णय में आप सरकार को कानून का पालन करने का निर्देश दिया गया है और उम्मीद जताई कि वे ऐसा करेंगे।

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दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच अधिकारों की रस्साकशी पर ऐतिहासिक फैसले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि उप-राज्यपाल अनिल बैजल को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और कैबिनेट की मदद और सलाह पर वह काम करने को बाध्य हैं।

कोर्ट ने कहा कि कैबिनेट के सभी फैसलों से उप-राज्यपाल को अवगत कराया जाना चाहिए  लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी सहमति की जरूरत है।

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गुप्ता ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हैं। दिल्ली सरकार को बिना अदालत के आदेश के भी कानून का पालन करना चाहिए था। हम उम्मीद करते हैं कि फैसले के बाद अब वे ऐसा करेंगे।

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प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा कि फैसले ने यह तय कर दिया है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और आप को शहर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की अपनी राजनीतिक मांग को छोड़ना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अब यह तय हो गया है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है। लिहाजा आप और मुख्यमंत्री को पूर्ण राज्य की मांग को छोड़ देना चाहिए। कपूर ने कहा कि फैसले में उप-राज्यपाल और दिल्ली कैबिनेट के बीच और सहयोग के निर्देश दिए हैं। सभी संबंधित पक्षों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। 

दिल्ली-केंद्र के बीच अधिकारों की रस्साकशी पर घटनाक्रम

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को अपने एक अहम फैसले में सर्वसम्मति से कहा कि दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल को निर्णय लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है और वह कैबिनेट की सलाह से काम करने के लिए बाध्य हैं। केंद्र एवं दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की रस्साकशी से संबद्ध मामले में घटनाक्रम इस प्रकार हैं।

इसकी शुरुआत वर्ष 2014 में उस वक्त हुई थी जब तत्कालीन अरविंद केजरीवाल सरकार ने तत्कालीन यूपीए सरकार में मंत्री एम. वीरप्पा मोइली एवं मुरली देवड़ा सहित रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल), मुकेश अंबानी एवं अन्य के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज कराई थी। इन सभी पर गैस दरों को फिक्स करने का आरोप था।

02 मई, 2014 : आरआईएल एफआईआर रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट पहुंची और केंद्रीय कर्मियों की जांच को लेकर दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को शक्ति प्रदान करने से संबद्ध केंद्र की 1993 की अधिसूचना को चुनौती दी थी।

08 मई : केंद्र ने मंत्रियों के खिलाफ एफआईआर का विरोध करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने दलील दी कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के पास जांच करने का अधिकार नहीं है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

09 मई : मंत्रियों के खिलाफ एफआईआर रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी।

20 मई : हाईकोर्ट ने केंद्र, आरआईएल को इस जांच में सहयोग करने के लिए कहा।

09 अगस्त : एसीबी ने हाईकोर्ट को बताया कि उसे गैस दर मामले में एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है।

19 अगस्त : एसीबी ने हाईकोर्ट को बताया वह आरआईएल एवं यूपीए सरकार के पूर्व मंत्री के खिलाफ गैस दर मामले में जांच नहीं कर सकती क्योंकि 23 जुलाई, 2014 की केंद्र की अधिसूचना ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों की जांच को उसके अधिकार क्षेत्र से हटा दिया था।

16 अक्टूबर : दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि उसका भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को आरआईएल एवं मंत्रियों पर मुकदमा कर सकता है।

28 अक्टूबर : हाईकोर्ट ने एसीबी के अधिकारों पर स्पष्टीकरण के लिए केंद्र को समय दिया।

चार दिसंबर : आरआईएल ने हाईकोर्ट में दलील दी कि गैस दर पर राज्य द्वारा केंद्र के फैसले की जांच बेतुकी है।

25 मई, 2015 : हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र के अंतर्गत आने वाले पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करना एसीबी के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसने कहा कि एसीबी की शक्तियों को सीमित करने से संबद्ध केंद्र की 21 मई की अधिसूचना ''संदिग्ध'' है।

26 मई : दिल्ली में नौकरशाहों की नियुक्ति के लिए उप-राज्यपाल को शक्तियां देने वाली केंद्र की 21 मई को जारी अधिसूचना के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई।

28 मई : दिल्ली सरकार ने उप-राज्यपाल की शक्तियों पर केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। केंद्र ने उसकी अधिसूचना को ''संदिग्ध'' बताने वाले हाईकोर्ट के 25 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

29 मई : हाईकोर्ट ने उप-राज्यपाल को नौ नौकरशाहों के तबादले के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए कहा।

10 जून : हाईकोर्ट का एसीबी के अधिकार पर गृह मंत्रालय की अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार।

27 जून : उप-राज्यपाल द्वारा नियुक्त एसीबी प्रमुख एम.के. मीणा को ब्यूरो के कार्यालय में प्रवेश पर रोक लगाने पर दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट का रुख किया।

27 जनवरी, 2016 : केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि दिल्ली केंद्र के अधीन है और यह पूर्ण राज्य नहीं है।

05 अप्रैल : आप सरकार ने हाईकोर्ट से दिल्ली के शासन पर उप-राज्यपाल की शक्तियों को लेकर अर्जियां वृहद पीठ को हस्तांतरित करने का अनुरोध किया।

06 अप्रैल : दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि वह सीएनजी फिटनेस टेस्ट के लिए लाइसेंस देने में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को लेकर आयोग गठन करने में सक्षम है।

19 अप्रैल : आप सरकार ने हाईकोर्ट में वृहद पीठ के गठन की मांग वाली अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ली।

24 मई : हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर कार्रवाई से रोक वाली आप सरकार की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा। ये याचिकाएं राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति एवं अन्य मुद्दों पर अधिकारों के संबंध में उप-राज्यपाल के साथ तनातनी के चलते दायर की गई थीं।

30 मई : हाईकोर्ट ने आप सरकार की रोक वाली अर्जी पर पहले सुनवाई के उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

01 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट आप सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हुआ, जिसमें कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि वह हाईकोर्ट को इन मुद्दों पर फैसला सुनाने से रोके।

04 जुलाई : तत्कालीन चीफ जस्टिस जे.एस. खेहड़ ने एक राज्य के तौर पर दिल्ली के अधिकारों की घोषणा से संबंधित आप सरकार की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया।

05 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव ने भी दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया।

08 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।

04 अगस्त : हाईकोर्ट ने कहा कि उप-राज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मुखिया हैं।

15 फरवरी, 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली बनाम केंद्र विवाद संविधान पीठ को सौंपा।

02 नवंबर : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की।

08 नवंबर : सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उप-राज्यपाल को सौंपी गई जिम्मेदारियां संपूर्ण नहीं हैं।

14 नवंबर : सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल किया कि क्या केंद्र एवं राज्यों के बीच कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे की संविधानिक योजना केंद्र प्रशासित दिल्ली पर भी लागू होती है।

21 नवंबर : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में आप सरकार की दलील का यह कहकर विरोध किया कि केंद्र प्रशासित राज्यों में दिल्ली को विशेष दर्जा प्राप्त है, लेकिन यह उसे एक राज्य का दर्जा प्रदान नहीं करता।

06 दिसंबर : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली बनाम केंद्र के अधिकारों की रस्साकशी को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की।

04 जुलाई, 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप-राज्यपाल को स्वतंत्र फैसले लेने का अधिकार नहीं है और वह कैबिनेट की सलाह से काम करने के लिए बाध्य हैं। 

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