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आरोपी को अपना बचाव करने का अवसर मिलना चाहिए, यौन अपराध के आरोपी की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सच्चाई का पता लगाना और किसी सही व न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचना प्रत्येक अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है ताकि किसी पक्ष को उचित अवसर न मिलने के कारण न्याय से वंचित न होना पड़े।

आरोपी को अपना बचाव करने का अवसर मिलना चाहिए, यौन अपराध के आरोपी की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
Praveen Sharmaनई दिल्ली | भाषाTue, 04 Oct 2022 06:31 PM

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दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निष्पक्ष सुनवाई संवैधानिक लक्ष्य और प्रत्येक व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है, जिससे आरोपी को अपना बचाव करने का अवसर मिलता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सच्चाई का पता लगाना और किसी सही व न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचना प्रत्येक अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है ताकि किसी पक्ष को उचित अवसर न मिलने के कारण न्याय से वंचित न होना पड़े।

अदालत ने यौन अपराध के मामले में एक आरोपी की याचिका पर ये टिप्पणियां कीं। याचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें पीड़िता समेत दो गवाहों से दोबारा पूछताछ करने की आरोपी की याचिका खारिज कर दी गई थी।

आईपीसी की धारा 376, 506 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) एक्ट की धारा 6 के तहत कथित अपराधों के लिए मुकदमे का सामना कर रहे याचिकाकर्ता ने कहा कि उसका वकील दो गवाहों से जिरह नहीं कर पाया और यह बात उसके लिए पूर्वाग्रह पैदा कर रही है क्योंकि इससे मामले का परिणाम प्रभावित होगा। 

याचिकाकर्ता ने कहा कि पीड़िता की आयु को लेकर विवाद है। आरोपी ने मामले को पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं लाने और निचली अदालत के आदेश को रद्द करने की अपील की।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाईकोर्ट अधिवक्ता कल्याण कोष में 5,000 रुपये जमा कराकर गवाहों से जिरह कराने की अनुमति दे दी और कहा कि सत्य का पता लगाने और न्यायसंगत व सही निर्णय पर पहुंचने के लिए किसी भी व्यक्ति के पास पूछताछ, जांच और दोबारा पूछताछ कराने के लिए व्यापक विवेकाधीन शक्तियां हैं, लेकिन इसे विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए न कि मनमाने ढंग से।

अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा कि सच्चाई का निर्धारण करने और एक सही व न्यायसंगत निर्णय तक पहुंचना प्रत्येक न्यायालय का संवैधानिक कर्तव्य है ताकि किसी पक्ष को उचित अवसर न मिलने के कारण न्याय से वंचित न होना पड़े। यदि मामले से संबंधित किसी सबूत को पेश करने की मांग की जाती है, तो सीआरपीसी की धारा 311 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। निष्पक्ष सुनवाई संवैधानिक लक्ष्य और प्रत्येक व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है। 

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