10 महीने तक बाथरूम में बच्ची से हवस मिटाता रहा बुजुर्ग, ट्रायल कोर्ट के फैसले पर क्यों बिदका HC
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि जब ट्रायल कोर्ट जमानत देने के लिए जरूरी कारणों को नजरअंदाज कर दे तो हाई कोर्ट द्वारा जमानत रद्द करना उचित होगा।
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में 60 साल के रेप के आऱोपी की जमानत रद्द कर दी। आरोपी पर 13 साल की बच्ची के साथ रेप का आरोप है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि भले ही अदालतें आमतौर पर जमानत देने के आदेशों में हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन इस मामले में आरोपी को जमानत पर रिहा करने से समाज पर गलत प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट ने कहा कि जब ट्रायल कोर्ट जमानत देने के लिए जरूरी कारणों को नजरअंदाज कर दे तो हाई कोर्ट द्वारा जमानत रद्द करना उचित होगा।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि कोर्ट की राय है कि ऐसे अपराधियों को जमानत देने से समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा और यह उद्देश्य के विपरीत होगा जिसके लिए POCSO अधिनियम लागू किया गया था। दरअसल हाई कोर्ट उस मामले पर सुनवाई कर रहा था जिसमें पीड़िता के पिता ने ट्रायल कोर्ट के 27 अगस्त 2022 के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें आरोपी को जमानत दे दी गई थी। 60 साल के आरोपी पर आरोप है कि 10 जनवरी साल 2019 से वह बच्ची को एक इमारत के बाथरूम में ले जाता था और उसके कपड़े उतारकर उसके साथ गंदी हरकत करता था। 9 अक्तूबर 2019 को जब वह बच्ची को बाथरूम ले जा रहा था, तभी उसे एक शख्स ने देख लिया और बच्ची को बचा लिया गया।
आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (रेप) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किया गया था। मामले पर विचार करने के बाद, हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि POCSO अधिनियम की धारा 3 के तहत प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ मामला बनता है और ट्रायल कोर्ट ने जमानत देते समय पीड़िता की गवाही पर ध्यान नहीं दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा, "प्रथम दृष्टया यह मानने का उचित आधार है कि प्रतिवादी नंबर 2 ने एक नाबालिग लड़की पर यौन उत्पीड़न का जघन्य अपराध किया है।
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