
च्यवनप्राश के विज्ञापनों पर रोक के खिलाफ HC पहुंची पतंजलि, जज ने चुनिंदा लाइनों को हटाने के लिए कहा था
संक्षेप: दो महीने पहले दिए अपने आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि के विज्ञापनों पर अंतरिम रोक लगाते हुए कंपनी को निर्देश दिया था कि वह अपने विज्ञापनों से '40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से ही क्यों संतुष्ट हों?' जैसी कई अन्य पंक्तियों को हटा दे।
योग गुरु स्वामी रामदेव के नेतृत्व वाली कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर अदालत के तीन महीने पहले दिए उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कंपनी को अपने च्यवनप्राश के विज्ञापन चलाने से यह कहते हुए रोक दिया गया था, कि उनमें डाबर कंपनी के च्यवनप्राश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की गईं थीं। इस याचिका पर शुक्रवार को जस्टिस सी. हरिशंकर और ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ के सामने सुनवाई होने की संभावना है। इस याचिका के जरिए हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश के 3 जुलाई को दिए उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया था कि कंपनी द्वारा टीवी और प्रिंट दोनों जगह दिए गए विज्ञापनों में प्रथम दृष्टया विरोधी कंपनी डाबर के अपमान का एक मजबूत मामला बनता है।

दो महीने पहले डाबर कंपनी की याचिका पर सुनवाई करने के बाद जस्टिस मिनी पुष्करणा ने पतंजलि के विज्ञापन पर अंतरिम रोक लगाते हुए कंपनी को निर्देश दिया था कि वह अपने प्रिंट विज्ञापनों से '40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से ही क्यों संतुष्ट हों?' वाली पंक्ति को हटा दे और उसे हिंदी में तदनुसार संशोधित करे।
साथ ही अदालत ने पतंजलि को अपने विज्ञापन से उस पंक्ति को भी हटाने का निर्देश दिया था, जिसमें कहा जा रहा था, 'जिनको आयुर्वेद या वेदों का ज्ञान नहीं, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवनऋषि की परंपरा के अनुरूप, असली च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?'। पतंजलि को अपने विज्ञापन से यह पंक्ति भी हटाने का निर्देश दिया गया था कि 'तो साधारण च्यवनप्राश क्यों?'।
उस वक्त दिए अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि बताए गए संशोधनों के बाद ही पतंजलि को प्रिंट और टीवी विज्ञापन चलाने की अनुमति दी जाएगी। हालांकि अपनी याचिका में पतंजलि ने अदालत से कहा था कि उसके विज्ञापन में कहीं पर भी डाबर के नाम का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
3 जुलाई को दिए अपने आदेश में जज ने कहा था कि टीवी विज्ञापन (TVC) में कंपनी के उत्पादों के बारे में खुद स्वामी रामदेव द्वारा बातें बताई जा रही हैं, जिन्हें योग और वैदिक विशेषज्ञ माना जाता है। न्यायाधीश ने आगे कहा था कि विज्ञापन का कथानक इस क्षेत्र के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाने वाले व्यक्ति के मुख से निकलने के कारण ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।
अदालत ने विज्ञापन में कही गई बातों को झूठा होने के साथ-साथ भ्रामक भी बताया। अदालत ने कहा, पतंजलि और उसके ब्रांड एंबेसडर रामदेव ने यह धारणा बनाई कि केवल उन्हीं को ही आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान है और इसलिए वे परंपराओं के अनुसार च्यवनप्राश बना सकते हैं, जबकि च्यवनप्राश बनाने के लिए किसी भी निर्माता को आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है।
दरअसल अदालत ने यह आदेश एकल पीठ के समक्ष दायर डाबर कंपनी की उस याचिका पर दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि यह कहते हुए कि 'किसी अन्य कंपनी को च्यवनप्राश बनाने का ज्ञान नहीं है' 'पतंजलि विशेष रूप से 'डाबर च्यवनप्राश' और सामान्य रूप से 'च्यवनप्राश' का अपमान कर रही है। इसमें आगे दावा किया गया कि विज्ञापन में अन्य सभी च्यवनप्राशों के लिए 'साधारण' उपसर्ग का प्रयोग किया गया है, जो दर्शाता है कि वे निम्न हैं। साथ ही इस बात पर भी आपत्ति जताई गई थी कि विज्ञापन में यह भी गलत दावा किया गया है कि अन्य सभी निर्माताओं को आयुर्वेदिक ग्रंथों और च्यवनप्राश तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए गए फार्मूले के बारे में कोई जानकारी नहीं है।





