अमेरिका में पढ़ाई के इच्छुक भारतीय छात्रों की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
अमेरिकी सरकार ने नौ प्रमुख विश्वविद्यालयों को विदेशी छात्रों के दाखिले पर 15% की सीमा तय करने का प्रस्ताव दिया है। इससे भारतीय छात्रों को प्रभावित होने की संभावना है, क्योंकि वर्तमान में अमेरिका में...

नई दिल्ली, एजेंसी। अमेरिकी सरकार ने नौ शीर्ष विश्वविद्यालयों को एक नया प्रस्ताव भेजा है, जिसके तहत विदेशी छात्रों के दाखिले पर 15% की सीमा तय की जा सकती है। इसमें किसी एक देश से पांच फीसदी से अधिक छात्र नहीं लिए जाएंगे। यदि यह लागू होता है, तो इसका सीधा असर अमेरिका में पढ़ाई की इच्छा रखने वाले भारतीय छात्रों पर पड़ेगा। अमेरिकी सरकार के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में 2.7 लाख से अधिक भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, जो सभी विदेशी छात्रों का करीब 28% हिस्सा हैं। यदि यह सीमा लागू होती है, तो किसी भी विश्वविद्यालय में भारतीय छात्रों का प्रतिशत पांच प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकेगा।
ऐसे में कई प्रतिभाशाली भारतीय छात्रों को प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में दाखिले से वंचित होना पड़ सकता है। समझौता मानने वाली यूनिवर्सिटी को फंडिंग में प्राथमिकता यह प्रस्ताव फिलहाल मसौदे के रूप में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी), ब्राउन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया, डार्टमाउथ, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया, वेंडरबिल्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना और यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया सहित नौ विश्वविद्यालयों को भेजा गया है। ये सभी संस्थान अमेरिकी सरकार से अरबों डॉलर के शोध अनुदान प्राप्त करते हैं। टेक्सास के इमिग्रेशन वकील चंद पर्वतनैनी के अनुसार, यह कोई कानून नहीं बल्कि एक ‘शर्त आधारित अनुदान समझौता है। यानी जो विश्वविद्यालय इस समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, उन्हें शोध अनुदान और फंडिंग में प्राथमिकता दी जाएगी। बदले में उन्हें विदेशी छात्रों के प्रवेश पर यह सीमा लागू करनी होगी। इसलिए लाई जा रही है यह सीमा व्हाइट हाउस के ऑफिस ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी (ओएसटीपी) ने हाल के वर्षों में यह चिंता जताई है कि एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) शोध में विदेशी छात्रों, खासकर भारत और चीन से आने वालों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ रही है। साथ ही, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक समूहों का मानना है कि एच-1बी वीजा का इस्तेमाल अमेरिकी नौकरियों में विदेशी कामगारों को प्राथमिकता देने के लिए किया जा रहा है। यह प्रस्ताव ‘मेरिट-बेस्ड इक्विटी की दिशा में एक कदम बताया जा रहा है, ताकि विश्वविद्यालयों में विविधता और फंडिंग नीति में संतुलन कायम रखा जा सके। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो यह न केवल विश्वविद्यालयों के प्रवेश ढांचे को बदल सकती है, बल्कि भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका की उच्च शिक्षा तक पहुंच भी सीमित कर सकती है। प्रस्ताव मूल सिद्धांतों के विपरीत : विश्वविद्यालय एमआईटी की अध्यक्ष सैली कॉर्नब्लुथ ने अमेरिकी सरकार को पत्र लिखकर कहा, यह प्रस्ताव हमारे वैज्ञानिक स्वतंत्रता के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। अनुसंधान का आधार योग्यता होनी चाहिए, न कि किसी देश की पहचान। डार्टमाउथ की अध्यक्ष सियान लिया बेलॉक ने भी कहा कि विश्वविद्यालय अपनी अकादमिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगा। हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास ने कहा है कि वह इस प्रस्ताव की समीक्षा करेगी।
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