शिक्षा निदेशालय से 15 दिन में मंजूरी न लेने पर स्वत: खत्म हो जाएगा शिक्षक का निलंबन : हाईकोर्ट
उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी शिक्षक को कदाचार या अन्य आरोपों में निलंबित करने के 15 दिन के भीतर शिक्षा निदेशालय से निलंबन की मंजूरी लेना अनिवार्य...

नई दिल्ली। प्रभात कुमार
उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी शिक्षक को कदाचार या अन्य आरोपों में निलंबित करने के 15 दिन के भीतर शिक्षा निदेशालय से निलंबन की मंजूरी लेना अनिवार्य है। न्यायालय ने कहा है यदि स्कूल 15 दिन के भीतर शिक्षा निदेशालय से मंजूरी नहीं ले पाता है तो शिक्षक का निलंबन अपने आप समाप्त हो जाएगा।
जस्टिस वी. कामेश्वर राव ने दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम की धारा 8 (4) के प्रावधानों को विस्तार से परिभाषित करते हुए यह फैसला दिया है। उन्होंने कहा है कि इस धारा के प्रावधानों से साफ है कि शिक्षक को निलंबित करने के 15 दिन के भीतर संबंधित स्कूल को शिक्षा निदेशालय से अपने आदेश को मंजूरी लेना अनिवार्य है। न्यायालय ने कहा है कि यदि स्कूल मंजूरी लेने में विफल रहता है तो शिक्षक का निलंबन स्वत: समाप्त माना जाएगा। न्यायालय ने कह है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो प्रतिवादी स्कूल ने तय कानूनी प्रावधानों के तहत निलंबन के आदेश को लेकर 15 दिन के भीतर मंजूरी नहीं ली है, ऐसे में वह स्वत: समाप्त माना जाए। न्यायालय ने कहा है कि 15 दिन बाद निलंबन आदेश को मंजूरी देने का शिक्षा निदेशालय का भी अधिकार खत्म हो जाता है।
उच्च न्यायालय ने दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका की एक शिक्षिका की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश दिया है। शिक्षिका ने अधिवक्ता खगेश झा और शिखा बग्गा के माध्यम से उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर 24 फरवरी, 2020 को स्कूल प्रबंधन द्वारा निलंबित किए जाने के आदेश को चुनौती दी थी। न्यायालय ने इसके साथ ही, स्कूल प्रबंधन को याचिकाकर्ता शिक्षिका को पिछले बकाया वेतन का भी भुगतान करने का आदेश दिया है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता खगेश झा ने न्यायालय को बताया कि स्कूल प्रबंधन ने उनके मुवक्किल को निलंबित करने में दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं किया है। इसके साथ ही उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के पूर्व फैसले का हवाला देकर निलंबन के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
स्कूल की दलील को ठुकराया
उच्च न्यायालय ने दिल्ली पब्लिक स्कूल की ओर से अधिवक्ता पुनीत मित्तल की उन दलीलों को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता को निलंबित करने के दिन ही शिक्षा निदेशालय को मंजूरी के लिए फाइल भेज दी गई थी। उन्होंने कहा कि आदेश को मंजूरी देने में देरी शिक्षा निदेशालय की ओर से हुई है, स्कूल प्रबंधन की ओर से देरी नहीं हुई है, इसलिए स्कूल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय ने स्कूल की इन दलीलों को आधारहीन बताते हुए ठुकरा दिया।
यह मामला है
याचिका के अनुसार एक शिक्षिका ने आरोप लगाया था कि शिक्षा निदेशालय से स्कूल के बारे में शिकायत किए जाने पर उसे निलंबित किया गया। लेकिन, निलंबित करने के लिए तय नियमों का पालन नहीं किया गया। स्कूल ने शिक्षिका को 24 फरवरी, 2020 को निलंबित किया था। लेकिन, शिक्षा निदेशालय ने एक साल बाद जाकर निलंबन को मंजूरी दी थी। शिक्षिका निलंबन के आदेश को मंजूरी देने से पहले, कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुकी थी, इसलिए लाभ मिला।
