स्थिर नहीं रह सकती मतदाता सूची, संशोधन होना चाहिए : शीर्ष कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची स्थिर नहीं रह सकती और इसका संशोधन आवश्यक है। याचिकाकर्ताओं ने एसआईआर को चुनौती दी, जिसे शीर्ष अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21(3) के तहत सही ठहराया।...

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मतदाता सूची ‘स्थिर नहीं रह सकती और उनका संशोधन होना ही चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब की, जब एसआईआर को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि चुनावी राज्य बिहार में एसआईआर का कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इसके साथ एसआईआर को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को एसआईआर प्रक्रिया को उस तरीके से कराने का अधिकार नहीं है, जैसा वह उचित समझे? शीर्ष अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) का हवाला देते हुए यह सवाल किया।
पीठ ने आगे कहा कि निर्वाचन आयोग किसी भी समय, दर्ज किए जाने वाले कारणों से, किसी भी निर्वाचन क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का निर्देश, उस तरीके से दे सकता है जैसा वह उचित समझे। गुरुवार को भी मामले की सुनवाई जारी रहेगी। भगवान ही जाने इसका अंत कहां होगा? सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने पीठ से कहा कि ‘हम सिर्फ प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे रहे हैं। चुनाव अयोग ऐसा कभी नहीं कर सकता था और न ही पहले ऐसा कभी हुआ। इतिहास में ऐसा पहली बार यह (एसआईआर) हुआ है और यदि ऐसा होने दिया गया, तो भगवान ही जाने इसका अंत कहां होगा? पुनरीक्षण तो होना ही है पीठ ने कहा कि हमारे विचार से, मतदाता सूची कभी भी स्थिर नहीं हो सकती। पीठ ने कहा कि पुनरीक्षण तो होना ही है, अन्यथा चुनाव आयोग मतदाता सूची से उन लोगों के नाम कैसे हटाएगा जो मर चुके हैं, पलायन कर गए हैं या दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में चले गए हैं? आपकी दलीलों से धारा 21(3) निरर्थक हो जाएगी जस्टिस सूर्यकांत ने वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन से यह भी कहा कि यदि आपकी दलीलों को स्वीकार कर लिया जाता है तो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21(3) निरर्थक हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कभी नहीं किया जा सकता है, तो उप-धारा (3) निरर्थक हो जाएगी। धारा 21(3) सिर्फ निर्वाचन क्षेत्र की अनुमति देती है इसके जवाब में, वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन ने पीठ से कहा कि धारा 21(3) केवल ‘किसी निर्वाचन क्षेत्र या ‘निर्वाचन क्षेत्र के किसी हिस्से के लिए मतदाता सूची में संशोधन की अनुमति देती है, न कि पूरे राज्य की मतदाता सूची को हटाकर नई मतदाता सूची शामिल करने की। चुनाव आयोग ने सिर्फ ‘गहन शब्द जोड़ा है : जस्टिस बागची इस पर जस्टिस बागची ने कहा कि यदि ऐसा है, तो बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया को धारा 21(3) के तहत राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक ही समय में की जा रही प्रक्रिया के रूप में क्यों नहीं देखा जा सकता? उन्होंने आगे कहा कि निर्वाचन आयोग की अवशिष्ट शक्तियां (रेजुडरी पॉवर) संविधान के अनुच्छेद 324 से भी प्राप्त होती हैं। साथ ही कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून में संक्षिप्त संशोधन और विशेष संशोधन दोनों का उल्लेख है और निर्वाचन आयोग ने केवल ‘गहन शब्द जोड़ा है। अनुच्छेद 324 आयोग को पूरी शक्तियां देता है इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदाता के रूप में पंजीकृत होना भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। उन्हें बीच में टोकते हुए, जस्टिस बागची ने कहा कि निर्वाचन आयोग अनुच्छेद 324 पर जोर दे रहा है, जो उसे चुनाव कराने और मतदाता सूची तैयार करने के लिए पूर्ण शक्तियां प्रदान करता है। मतदान का अधिकार छीना नहीं जा सकता शीर्ष अदालत ने कहा कि यह संवैधानिक अधिकार और संवैधानिक शक्ति के बीच की लड़ाई है। इस पर एडीआर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन ने कहा कि मतदाता सूची में पहले से शामिल व्यक्ति के मतदान के अधिकार को हल्के में नहीं छीना जा सकता। लाल बाबू हुसैन का हवाला दिया वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन ने कहा कि चुनाव आयोग यह मानकर शुरुआत नहीं कर सकता कि मतदाता सूची में शामिल व्यक्ति नागरिक नहीं हैं। इसके लिए उन्होंने शीर्ष अदालत द्वारा लाल बाबू हुसैन मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया और कहा कि यह दर्शाना निर्वाचन आयोग का दायित्व है कि वे नागरिक क्यों नहीं हैं। आयोग ने वेबसाइट से सर्च ऑप्शन क्यों हटा दिया? एडीआर की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निर्वाचन आयोग ने अपनी वेबसाइट से मसौदा मतदाता सूची का खोज योग्य संस्करण (सर्च ऑप्शन) क्यों हटा दिया? उन्होंने कहा कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस करके बड़े पैमाने पर मतदाता सूची आयोग पर गड़बड़ी के आरोप लगाने के अगले ही आयोग ने यह सर्च ऑप्शन वेबसाइट से हटा दिया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उन्हें प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी नहीं है। कार्यालय में आयोग को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित करना होगा जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जहां तक मतदाता पंजीकरण नियम 1960 की बात है, धारा-10 चुनाव आयोग को निर्वाचन क्षेत्र स्थित कार्यालय में ड्राफ्ट रोल की एक प्रति प्रकाशित करने का आदेश देती है। जस्टिस बागची ने कहा कि आयोग को निर्वाचन क्षेत्र स्थित कार्यालय में ड्राफ्ट रोल प्रकाशित करना होगा। यह कानून के तहत न्यूनतम सीमा है। हालांकि, हमें अच्छा लगता अगर इसे व्यापक प्रचार के लिए वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता। 65 लाख मतदाताओं की सूची प्रकाशित करे आयोग : प्रशांत भूषण अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से निर्वाचन आयोग को बिहार में उन 65 लाख मतदाताओं की सूची प्रकाशित करने का आदेश देने की मांग है, जिन्हें मसौदा सूची से हटा दिया गया है। उन्होंने आयोग को मतदाता सूची से लोगों के नाम हटाने का कारण भी प्रकाशित करने का आदेश देने की मांग की है। 11 दस्तावेजों की अनिवार्यता मतदाता के अनुकूल जस्टिस सूर्यकांत और जॉमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि बिहार में पहले किए गए मतदाता सूची के संक्षिप्त पुनरीक्षण में दस्तावेजों की संख्या महज 7 थी और विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में यह 11 है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि एसआईआर के लिए जारी 11 दस्तावेजों की अनिवार्यता मतदाता अनुकूल (फ्रेंडली) है। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि दस्तावेजों की संख्या भले ही अधिक हो, लेकिन उनका कवरेज कम है। उन्होंने कहा कि बिहार में पासपोर्ट धारकों की संख्या एक से महज 2 फीसदी है और राज्य में स्थायी निवासी प्रमाण पत्र देने का कोई प्रावधान नहीं है। पीठ ने कहा कि बिहार में 36 लाख पासपोर्ट धारकों की संख्या अच्छी प्रतीत होती है।

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